जब कबीर के छंदों को रॉक संगीत में ढाला गया

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जब कबीर के छंदों को रॉक संगीत में ढाला गयाकबीर कैफे रॉक संगीत

वाराणसी (भाषा)। अनेक शास्त्रीय गाने कबीर की कालनिरपेक्ष कविता से प्रेरित हैं और अब मुंबई का कबीर कैफे रॉक संगीत के जरिये उनके छंदों की व्याख्या करके सूफीवादी कविता को आधुनिक रंग दे रहा है।

कबीर कैफे की प्रेरणा 15वीं शताब्दी का जुलाहा कवि है। इस बैंड की गिटार वादक नीरज आर्या ने इसे बनाया है। इस बैंड के अन्य सदस्य सारंगी बजाने वाले रमन अय्यर, वायलिन वादक मुकुद रामास्वामी और तबला वादक विरेन सोलंकी हैं। बैंड रॉक और कर्नाटक संगीत शैली के फ्यूजन के जरिये कबीर के लोकप्रिय छंदों जैसे ‘चदरिया झीनी रे बीनी' ‘मोको कहां ढंूढोगे रे बंदे' और ‘मन लागो यार फकीरी में' को लयबद्ध कर रहा है।

रामास्वामी ने कहा, ‘‘हम इन छंदों की बुनियादी लय नहीं बदलेंगे और उसके बोल भी वही रहेंगे। हम केवल गीत के आसपास के संगीत बनाएंगे। हम प्रह्लाद सिंह तिपनया जी के संगीत का अनुशरण करेंगे। जो उन्होंने गाया है, हम भी वही गाएंगे। हम केवल इन छंदों को युवा पीढी की रचि के अनुसार ढाल रहे हैं।'' वायलिन वादक ने कहा कि शास्त्रीय संगीत कालनिरपेक्ष होता है। कबीर एक महत्वपूर्ण कवि हैं और उनके गीत संगीत युवाओं तक पहुंचने चाहिये।

उन्होंने कहा, ‘‘बहुत से लोगों ने कबीर को गाने के हमारे तरीके पर सवाल किये गये हैं। हम कबीर पर प्रयोग करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इस तरीके से संगीत की तुलना होने का खतरा है। बहुत से लोग हैं, जो ऐसा पसंद नहीं करते, लेकिन इस तरह से भी हम बहुत से लोगों तक पहुंच गये हैं।'' सालाना कबीर यात्रा के दौरान कोलकाता, चेन्नई, पुणे, मुंबई और अनेक गावों में प्रस्तुतियों के बाद यह बैंड काफी लोकप्रिय हो गया है।

उन्होंने बताया, ‘‘हम कबीर यात्रा में जाते हैं और हर साल गावों में प्रस्तुतियां देते हैं। ऐसी जगहों पर लोगों को संगीत के प्रकार के ज्यादा पता नहीं होता है, लेकिन वह इसका आनंद लेते हैं। इस तरह से कबीर को गाना एक अलग अनुभव है। यहां लोग बस संगीत का आनंद लेते हैं।'' संगीतकार ने बताया कि कबीर ने सदियों पहले जो बात कही थी, वह आज भी प्रासंगिक है।

     

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