सावन की सुंदरता को बताती है 'कजरी 'जानिए इस लोकगीत से जुड़ी बातें

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सावन की सुंदरता को बताती है कजरी जानिए इस लोकगीत से जुड़ी बातेंसावन में गाया जाता है कजरी लोकगीत।

लखनऊ। सावन का महीना आते ही हर तरफ हरियाली छा जाती है, झूले पड़ने लगते हैं और इस खास मौके पर गाया जाने वाला गीत कजरी लोकगीत कहलाता है। नागपंचमी, रक्षाबंधन के त्यौहार में महिलाएं खासकर लड़कियां कजरी गुनगुनाने लगती हैं।

कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है। यह अर्ध-शास्त्रीय गायन की विधा के रूप में भी विकसित हुआ और इसके गायन में बनारस घराने की ख़ास दखल है। शहरी क्षेत्रों में भले ही संस्कृति के नाम पर फ़िल्मी गानों की धुन बजती हो वहीं ग्रामीण अंचलों में भी ये लोकविधाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। 'लोकगीतों की रानी' कजरी सिर्फ़ गाने भर ही नहीं है बल्कि यह सावन की सुन्दरता और उल्लास को दिखाती है।

चरक संहिता में है वर्णन

चरक संहिता में तो यौवन की संरक्षा व सुरक्षा हेतु बसन्त के बाद सावन महीने को ही सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। सावन में नई ब्याही बेटियां अपने पीहर वापस आती हैं और बगीचों में भाभी और बचपन की सहेलियों संग कजरी गाते हुए झूला झूलती हैं।

गोण्डा जिले से लगभग 25 किमी दूर चरवाई गाँव की जावित्री देवी 55 बताती हैं, कजरी गाँवों में सावन के समय गाया जाता है। अब तो कम हो गया है लेकिन पहले गाँवों में सावन के आते ही बड़े बड़े झूले पड़ जाते थे, औरतें रात के समय इकट्ठा होती थीं कजरी गीत गाती थीं और झूले झूलती थीं।

पहले के समय मे ये सब ही मनोरंजन के साधन थे। कजरी के मूलतः तीन रूप हैं- बनारसी, मिर्जापुरी और गोरखपुरी कजरी। बनारसी कजरी अपने अक्खड़पन और बिन्दास बोलों की वजह से अलग पहचानी जाती है। इसके बोलों में अइले, गइले जैसे शब्दों का बखूबी उपयोग होता है, इसकी सबसे बड़ी पहचान 'न' की टेक होती है।

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भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने कजरी की रचना संस्कृत में भी की

भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ब्रज और भोजपुरी के अलावा संस्कृत में भी कजरी रचना की है। लोक संगीत का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। साहित्यकारों द्वारा अपना लिये जाने के कारण कजरी गायन का क्षेत्र भी अत्यन्त व्यापक हो गया। इसी प्रकार उपशास्त्रीय गायक-गायिकाओं ने भी कजरी को अपनाया और इस शैली को रागों का बाना पहना कर क्षेत्रीयता की सीमा से बाहर निकाल कर राष्ट्रीयता का दर्ज़ा प्रदान किया। वहीं 'भारतरत्न' सम्मान से अलंकृत उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ांन की शहनाई पर तो कजरी और भी मीठी हो जाती थी।

कजरी गाने के लिए मालिनी अवस्थी, शारदा सिंहा, चंदन तिवारी व सीमा घोष का नाम लिया जाता है। इनके वीडियो आपको यूट्यूब पर भी मिल जाएंगे।

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कजरी के इस गीत में सुनिए ननद-भाभी का संवाद

हिंडलवा लागल हइ कदमवा
भौजी, चलहु झूले ना
पियवा सावन में विदेशवा
ननदो, हिंडोलवा भावे ना
आवइ पानी के छिटकवा
भौजो, जियरा हुलसइ ना
मनवा कुहुँके हे ननदिया
सैंया पतिया भेजे ना
लागल सावन के फुहरवा
भौजो, पपिहा बोलइ ना
बंदुवा लागइ मोरा तनमा
जिया मोरा झुलसइ ना

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