महिलाओं के हक के लिए आवाज उठाने वाली इस्मत चुगताई के योगदान से नाटक के जरिए रूबरू हुए लोग
Vinay Gupta 16 Sep 2017 10:01 PM GMT

लखनऊ। जब मैं जाड़ों में "लिहाफ " ओढ़ती हूं तो पास की दीवार पर उसकी परछायी हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है। और एकदम से मेरा दिमाग बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौड़ने - भागने लगता है। न जाने क्या कुछ याद आने लगता है।
ये लाईने भले ही आज के युवा पीढ़ी को याद न हो लेकिन आज भी साहित्यिक दुनिया में अपने रंगों से लोगों के ज़हन में जिंदा है। उर्दू की मशहूर कहानीकार ‘इस्मत चगुताई' अपने विद्रोही व्यक्तित्व, तल्ख़ और बेख़ौफ लेखन के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने हमेशा महिलाआें के हक के लिए आवाज उठाई। उनके इसी योगदान को नाटक के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गयी।
लखनऊ में संगीत नाटक अकादमी में दर्पण संस्था की ओर से इस्मत चुगताई की आत्मकथा " काग़जी है पैरहन " के माध्यम से लोगों को उनके बारे में भी जानने का मौका मिला। नाटक में उनकी कहानी लिहाफ के बारे में बताया गया है, जिसको लेकर लाहौर हाईकोर्ट में उनके ऊपर मुक़दमा चला। जो बाद में ख़ारिज हो गया।
नाटक के निर्देशक उर्मिल कुमार थपलियाल ने बताया कि इस्मत चुगताई का कहना था कि कला और साहित्य ही इंसान को मशीन बनने से रोकता है। उन्हाेंने कहा कि वे उर्दू की पहली फेमिनिस्ट लेखिका हैं, उनकी कथा संवेदना के बीच एक आज़ाद औरत का आकार उभरता है जो पुरुषवादी सत्ता के विरोध में नहीं है। उन्होंने कहा कि नाटक के माध्यम से उनकी कहानियों के कुछ अंशों को लेकर एक नाट्य कोलाज बनाने की कोशिश की है।
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