बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला

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बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला

लखनऊ। मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला, एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला, दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते, बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।

आज़ादी से पहले ही हरिवंश राय बच्चन ने अपनी कविता से इस समस्या का हल बड़े ही अनोखे अंदाज़ से निकल दिया था। ये खूबसूरत लाइनें मधुशाला के रचयिता हरिवंश राय बच्चन की है।

बालीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबू पट्टी में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। यह जिला इलाहाबाद से 62 किलोमीटर की दूरी पर है। वर्ष 1926 में हरिवंश राय की शादी श्यामा से हुई थी जिनका टीबी की लंबी बीमारी के बाद वर्ष 1936 में निधन हो गया। इस बीच वे नितांत अकेले पड़ गए। वर्ष 1941 में बच्चन ने तेजी सूरी से शादी की।

हरिवंश राय बच्चन के दो पुत्र अमिताभ बच्चन और अजिताभ हुए।

अमिताभ बच्चन की आवाज़ में सुने मधुशाला...

वर्ष 1952 में हरिवंश राय बच्चन पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए, जहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य/काव्य पर शोध किया। 1955 में कैम्ब्रिज से वापस आने के बाद आपकी भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त हो गई।

हरिवंश राय बच्चन राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे और 1976 में आपको पद्मभूषण की उपाधि मिली। 'दो चट्टानें' (कविता-संग्रह) के लिए 1968 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था। हरिवंश राय बच्चन का 18 जनवरी, 2003 को मुंबई में निधन हो गया था।

हरिवंश राय बच्चन को सबसे अधिक लोकप्रियता 'मधुशाला' से मिली। हरिवंश राय बच्चन की यह रचना 1935 में लिखी गई थी। हरिवंश राय बच्चन की लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वे बहुत ही गंभीर मुद्दों को सरल अंदाज में बयां करते थे।

मधुशाला के कुछ अंश आपके लिए....

1. धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,

मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,

पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,

कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।

2. सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला,

सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला,

धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,

जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।

3. बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,

पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,

दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,

विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।

4. सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,

सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,

शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से

चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।

5. कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,

बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,

एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,

देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!

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