अपनी फिल्मों के जरिए देश की अनजान प्रतिभाओं को दुनिया के सामने लाना मेरा मकसद : राहुल बोस 

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   31 March 2017 5:31 PM GMT

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अपनी फिल्मों के जरिए देश की अनजान प्रतिभाओं को दुनिया के सामने लाना मेरा मकसद :  राहुल बोस फिल्म ‘पूर्णा’ के निर्माता व निर्देशक व अभिनेता राहुल बोस।

नई दिल्ली (आईएएनएस)। अभिनेता राहुल बोस ने फिल्म 'पूर्णा' से एक बार फिर निर्देशन की कमान संभाली है। वह 'पूर्णा' के साथ एक लंबे अर्से बाद निर्देशन की ओर लौटे हैं और इसकी वजह वह पूर्णा की कहानी का प्रेरणात्मक और भावनात्मक होना बताते हैं।

बकौल राहुल, वह अपनी फिल्मों के जरिए देश की उन प्रतिभाओं को दुनिया के सामने रखना चाहते हैं, जिनसे लोग अनजान हैं और इसी कड़ी में पहली फिल्म है 'पूर्णा' जो आज रिलीज हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म में पूर्णा के मेंटर आर.एस. प्रवीण कुमार का किरदार निभा रहे राहुल को पूर्णा की कहानी इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसका निर्देशन और निर्माण करने का मन बना लिया।

राहुल बताते हैं, “जब मैंने पूर्णा की कहानी सुनी तो खुद को इसका निर्देशन करने से रोक नहीं पाया। कौन नहीं जानना चाहेगा उस बच्ची की कहानी, जिसने 13 साल की उम्र में एवरेस्ट फतह कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। यह पूरी तरह से व्यावसयिक फिल्म साबित होगी।”

राहुल बोस ने बताया, "पूर्णा ने तेलंगाना के छोटे से पकाला गाँव की झोपड़ी से निकलकर एवरेस्ट छूने का सफर तय किया है। मुझे निर्देशक के नाते लगा कि जब एक गरीब जनजातीय लड़की इस तरह का कानामा कर सकती है तो कौन नहीं कर सकता और इस वजह से इस कहानी को लोगों तक पहुंचाना जरूरी लगने लगा, क्योंकि जब लोग इसे देखेंगे तो उन्हें पता लगेगा कि वे भी वही सपना देख सकते हैं जो पूर्णा ने देखा।"

इस फिल्म की शूटिंग राहुल के जीवन की सबसे मुश्किल और पेचीदा शूटिंग रही है। वह कहते हैं, "इस फिल्म की शूटिग मेरे करियर की सबसे मुश्किल शूटिंग रही है। मुझे इसके लिए सैन्य अभियान की भांति योजना बनानी पड़ती थी, जो थका देने वाली थी। हमने दार्जिलिंग की हसीन वादियों और माउंट एवरेस्ट की चोटी व भोंगी जैसे पहाड़ों पर शूटिंग की। भोंगी में ही पूर्णा ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लिया था।"

अभिनेता राहुल बोस।

उन्होंने बताया, "हैदराबाद से पांच-छह किलोमीटर दूर पकाला गाँव से शूटिंग की शुरुआत की। वहां बुनियादी ढांचागत सुविधाएं नहीं थी। गाँववालों ने बहुत सहयोग दिया। हमने 45 डिग्री तापमान में काम किया। हमें 650 फुट ऊंचे भोंगी पहाड़ पर शूटिंग करनी पड़ी। चट्टान का तापमान 40-50 डिग्री सेल्सियस था। 300 फुट की ऊंचाई वाली चट्टान पर शूटिंग की जो बहुत थकाने वाली रही।"

उन्होंने आगे कहा, "सैन्य ऑपरेशन की तरह शूटिंग की योजना बनानी पड़ती थी। भारत-चीन सीमा के पास शूटिंग सबसे अधिक थकाने वाली रही। शूटिंग के लिए मैंने दो महीने पहले रेकी की थी। यह मेरी जिंदगी की सबसे मुश्किल भरी शूटिंग रही है।"

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राहुल कहते हैं कि वह इस फिल्म के माध्यम से दिखाना चाहते हैं कि ऐसा रोजाना नहीं होता है, लेकिन ऐसा हुआ है और आगे भी हो सकता है।

इस फिल्म को देखने के बाद अब तक कोई भी शख्स आंखें गीली कर बाहर नहीं निकला है। चाहे फिर वह शबाना आजमी, विद्या बालन, सोनाक्षी सिन्हा, विराट कोहली ही क्यों न हों। यह दुख भरी कहानी नहीं है, बल्कि उम्मीदों से भरी हुई फिल्म है।
राहुल बोस अभिनेता

राहुल बोस फिल्म में डॉक्टर आर.एस. प्रवीण कुमार का किरदार निभा रहे हैं, जो इस पूरे सफर में पूर्णा के प्रेरणास्रोत रहे हैं। राहुल अपने किरदार के बारे में बताते हैं, "आर.एस. प्रवीण कुमार पूर्णा के मेंटर हैं। वह तेलंगाना के सोशल वेल्फेयर स्कूल का जिम्मा संभालते हैं। पूर्णा ने उन्हीं के माध्यम से एवरेस्ट फतह करने का सपना बुना।"

अब काल्पनिक नहीं, वास्तविक एवं सच्ची कहानियां देखना पसंद करते हैं लोग

फिल्म जगत में बायोपिक्स के इस नए ट्रेंड के बारे में वह बताते हैं, "इस नए ट्रेंड के शुरू होने के पीछे की वास्तविकता को समझना जरूरी है। दरअसल, हमारी आम जिंदगी में इतनी नकारात्मकता और निराशा फैल गई है कि लोग अब काल्पनिक नहीं, बल्कि वास्तविक एवं सच्ची कहानियां देखना और सुनना पसंद करने लगे हैं। हम काल्पनिक कहानियों के दौर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। इन बायोपिक के जरिए देश की प्रतिभाओं की सच्ची कहानियां बाहर निकल कर आ रही हैं।"

राहुल उन प्रतिभाओं की सच्ची कहानियां दुनिया को बताना चाहते हैं, जिनसे लोग महरूम हैं। वह कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि इस तरह के और भी लोगों के बारे में दुनिया जाने, जिन्होंने इतिहास बना दिया है लेकिन अब भी वे गुमनाम हैं।"

फिल्म के कारोबार को लेकर चिंतित नहीं

वह कहते हैं, "मैं फिल्म के कारोबार को लेकर चिंतित नहीं हूं, क्योंकि मैंने दुनिया को पूर्णा मालावत की मौजूदगी व उसकी उपलब्धि बताने के लिए फिल्म बनाई है। यह बहुत ही प्रेरणादायक कहानी है जब 13 साल की लड़की एवरेस्ट फतह करती है तो कौन आपनी भावनाओं पर काबू रख पाएगा। मैंने जीवन में एक बात सीखी है कि भारतवासियों का दिल बहुत भावुक होता है और यह फिल्म उस दिल को छुएगी।"

          

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