कर्मा नृत्य - एक फोक डांस जो खुशियों का संदेश देता है 

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कर्मा नृत्य - एक फोक डांस जो खुशियों का संदेश देता है फोक कनेक्शन सीरीज़ का पहला भाग ।

गाँव कनेक्शन की सीरीज़ 'फोक कनेक्शन' में हर हफ्ते हम बताएंगे एक लोकनृत्य, एक फोक डांस के बारे में। सीरीज़ के पहले हिस्से आज बात अादिवासी लोकनृत्य 'कर्मा' की।

सदियों से चली आ रही परंपराएं यूं ही नहीं बनतीं... हर देश की कला, संस्कृति और आर्ट फॉर्म्स के पीछे कोई ना कोई कहानी होती है। एक ऐसे देश में, जहां 'कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी' ऐसे देश में शायद कला, संगीत, नृत्य और ये पुरानी परंपराएं ही हैं, जो लोगों को जोड़कर रखती हैं।

देश के हर राज्य और क्षेत्र की अपनी ख़ास परंपराएं हैं, रीति-रिवाज हैं, फोक डांस हैं। अपने इलाक़े की परंपराओं से शायद हम वाकिफ़ भी हों, पर शायद बहुत कुछ ऐसा है जो हमें जानना बाकी है, हमें जानना चाहिए। गांव कनेक्शन की इस सीरीज़ 'फोक कनेक्शन' में हर हफ्ते हम बताएंगे एक लोकनृत्य, एक फोकडांस के बारे में। सीरीज़ के पहले हिस्से आज बात अादिवासी लोकनृत्य 'कर्मा' की।

कर्मा नृत्य-

घुंघरुओं की झनकार, ढोलक की थाप और सामूहिक रूप से एक ही स्वर में गाने को गाकर नाचना... यही है कर्मा नृत्य। गोंड आदिवासी, ग़ैर-आदिवासी, ये सभी का मांगलिक नृत्य है। कर्मा, यानी कर्म... कर्म के देवता को खुश करने के लिए देश के कई ट्राइब्स में सदियों से कर्मा नृत्य किया जाता रहा है। कोई शुभ काम हो, खुशी का कोई मौका हो, कर्मा नृत्य के बिना अधूरा माना जाता है।

यह नृत्य गोंडवाना की लोक-संस्कृति का पर्याय है। कर्मा नाच, सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच दूर-दराज़ के गाँवों से लेकर छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और महाराष्ट्र के कई इलाक़ों तक प्रचलित है। सोनभद्र के गोंड और बैगा व कोरकू, खरवार और परधान जातियां कर्मा के ही कई रूपों में नाचती हैं।

कर्मा नृत्य में स्त्री-पुरुष सभी हिस्सा लेते हैं। यह वर्षा ऋतु को छोड़कर सभी ऋतुओं में नाचा जाता है। शादी, या बच्चों के पैदा होने से लेकर नई फसल आने तक की खुशी में ये ये नाच किया जाता है, इसके अलावा दीपावली, रक्षा-बंधन जैसे त्योहारों की खुशी भी आदिवासी इलाक़ों में कर्मा नाच के साथ ही मनाई जाती है। (देखिए वीडियो)

कई शैलियों में किया जाता है कर्मा नृत्य

यूं तो कर्मा नृत्य की अनेक शैलियां हैं, लेकिन सोनभद्र में पांच शैलियां प्रचलित हैं, जिसमें झूमर, लंगड़ा, ठाढ़ा, लहकी और खेमटा हैं। जो नृत्य झूम-झूम कर नाचा जाता है, उसे 'झूमर' कहते हैं। एक पैर झुकाकर गाया जाने वाल नृत्य 'लंगड़ा' है। लहराते हुए करने वाले नृत्य को 'लहकी' और खड़े होकर किया जाने वाला नृत्य 'ठाढ़ा' कहलाता है। आगे-पीछे पैर रखकर, कमर लचकाकर किया जाने वाला नृत्य 'खेमटा' है।

वस्त्र और वाद्य यंत्रों से सजे कलाकार हैं इस नृत्य की पहचान -

कर्मा नृत्य में मांदर और झांझ-मंजीरा, घुंघरू प्रमुख वाद्ययंत्र हैं। इसके अलावा टिमकी ढोल, मोहरी आदि का भी प्रयोग होता है। कर्मा नर्तक पगड़ी पहनते हैं, पगड़ी में मयूर पंख के कांड़ी का झालदार कलगी खोंसते हैं। इसके अलावा कलाकार रुपया, सुताइल, बहुंटा और करधनी जैसे आभूषण भी पहनते हैं। कलई में चूरा और बांह में बहुटा पहने हुए युवक की कलाइयों और कोहनियों का झूल, नृत्य की लय में बड़ा सुन्दर लगता है। मांदर, घुंघरू और झांझ की लय-ताल पर नर्तक लचक-लचक कर भांवर लगाते हुए वृत्ताकार नृत्य करते हैं।

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