तीजनबाई ने दिलाई पंडवानी को अलग पहचान

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तीजनबाई ने दिलाई पंडवानी को अलग पहचान

लखनऊ। छत्तीसगढ़ राज्य लोक कलाओं से समृद्ध राज्य है। यहां की ऐसी बहुत सी लोक कलाएं हैं। ऐसा ही एक लोक नृत्य है, पंडवानी। इसका मतलब होता है पांडववाणी- अर्थात पांडवकथा, यानी महाभारत की कथा।

ये एकल नाट्य कला छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है। "एक समय था जब पंडवानी एक खास समुदाय तक ही सीमित था लेकिन अब नए लोग भी इससे जुड़ रहे हैं। कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने इसे देश-विदेश तक पहुंचाया। इनमें से तीजनबाई एक बड़ा नाम है जिन्हें पंडवानी और पंडवानी को तीजनबाई के नाम से जाना जाता है।"

पंडवानी में मां कुंती को कहा जाता है माता कोतमा

पंडवानी नाट्य शैली में महाभारत की कहानी का मंचन किया जाता है लेकिन कुछ बदलाव के साथ। एक ओर जहां महाभारत के नायक अर्जुन हैं वहीं पंडवानी के नायक भीम को दिखाया जाता है। भीम ही पाण्डवों की सभी विपत्तियों से रक्षा करते हैं। पंडवानी में पांडवों की मां कुन्ती को माता कोतमा कहा गया है और गान्धारी को गन्धारिन। गन्धारिन के 21 बेटे बताए गए हैं। पंडवानी में जिस क्षेत्र को दिखाया गया है, वह छत्तीसगढ़ ही है। पांडव जहां रहते थे उसे जैतनगरी कहा गया है।


इकतारा लेकर सुनाई जाती हैं कहानियां

इसमें आंगिक क्रियाओं (शरीर के अंगों के साथ भाव लाकर अभिनय करना) के साथ-साथ गायन भी एक ही व्यक्ति द्वारा एकतारा लेकर किया जाता है। इसमें नर्तक पाण्डवों की कथा को वाद्ययंत्रों की धुन पर गाता जाता है। इसके साथ ही उनका अभिनय भी करता जाता है। आज के समय में यह काफ़ी लोकप्रिय नृत्य शैली है।

तीजनबाई ने दिलाई पंडवानी को अलग पहचान

पंडवानी नाट्य कला की आज जो देश-विदेश तक पहचान है, उसमें तीजनबाई का नाम पहले आता है। तीजनबाई को इसके लिए कई बार सम्मानित भी किया गया है। तीजन ने बचपन से ही पंडावनी कला को सीखना शुरू कर दिया था। अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते-सुनाते देखतीं और धीरे-धीरे उन्हें ये कहानियां याद होने लगीं। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार मंच पर प्रदर्शन किया फिर मुड़ कर नहीं देखा।

एक समय था जब महिला गायिका केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई ऐसी पहली महिला थीं जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। इस कला ने उन्हें विश्व प्रसिद्धि दिलाई। अब तक फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, लंदन, मालटा, साइप्रस,ट्यूनीशिया, टर्की, यूरोप, इटली, यमन, बंगलादेश, मॉरिशस आदि देशों में पंडवानी गा चुकी हैं। साल 1988 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और 2003 में कला के क्षेत्र में पद्मभूषण से अलंकृत की गईं।

तीजनबाई को अपनी उपलब्धियों का जरा सा भी गुरूर नहीं है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "मैं आज भी गांव की औरत हूं। दिल में कुछ नहीं है, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर कुछ नहीं। मैं सभी से एक जैसे ही मिलती हूं, बात करती हूं। बच्चों-बूढ़ों के बीच बैठ जाती हूं। इससे दुनियादारी की कुछ बातें सीखने तो मिलती है। ऐसे में कोई कुछ-कह बोल भी दे तब भी बुरा नहीं लगता। मैं आज भी एक टेम बोरे बासी (रात में पका चावल पानी में डालकर) और टमाटर की चटनी खाती हूं।"

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