महाभारत सीरियल की पटकथा लिखने वाला कौन था, जानेंगे तो चौंक जाएंगे
गाँव कनेक्शन 1 Sep 2018 5:57 AM GMT

राही मासूम रज़ा का नाम आते ही जो उन्हें जानते है उनके सामने तुरंत 'आधा गांव' उपन्यास और मशहूर टीवी सीरियल महाभारत का दृश्य तैरने लगता है। उपन्यास 'आधा गांव' व बी. आर. चोपड़ा निर्मित टीवी सीरियल महाभारत की पटकथा राही मासूम रज़ा ने ही लिखी थी। और जो उन्हें नहीं जानते वो आधा गांव का नाम सुनते ही समझ जाते है अच्छा वो राही मासूम रज़ा जिन्होंने महाभारत सीरियल की पटकथा भी लिखी थी।। 15 मार्च, 1992 को उनका निधन हो गया था। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 64 वर्ष थी। राही मासूम रजा का जन्म 1 सितंबर, 1927 को जिला गाजीपुर में हुआ था।
राही मासूम रजा के लिखे उपन्यास आधा गांव ( वर्ष 1966) की लोकप्रियता इस कदर है कि आज भी युवा आपस में चर्चा करने लगते हैं। आजादी के समय होने वाला देश विभाजन इसका विषय है। गंगौली गांव मुस्लिम बहुल गांव है और यह उपन्यास इस गांव के मुसलमानों का बेपर्द जीवन यथार्थ के विषय में है। इस उपन्यास की शैली पूरी तरह सच, बेबाक और धारदार है। पूरे उपन्यास को पढ़ने के बाद आप अवाक से रह जाते हैं। राही मासूम रजा के अन्य उपन्यासों में दिल एक सादा कागज, टोपी शुक्ला, ओस की बूंद और कटरा बी आरजू आज भी चर्चित हैं।
नीम का पेड़ का नाम लेते ही 45 साल उम्र के बाद वाले सभी लोग उछाल पड़ेंगे, राही मासूम रजा ने इसकी कहानी लिखी, इसमें बुधई का पात्र जाने-माने अभिनेता पंकज कपूर ने निभाया, उस पर मरहूम और हरदिल अजीज गायक जगजीत सिंह ने शायर निदा फाजली के लिखे'मुंह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन, आवाजों के बाजारों में खामोशी पहचाने कौन'का टाइटल गीत गाया तो टीवी पर इसके बोल सुनते ही लोग टीवी के सामने बैठ जाते थे कि अब सीरियल शुरू होने जा रहा है।
राही मासूम रजा ने अपने कलम के जादू से कई कामयाब फिल्में भी लिखीं। फिल्म आलाप, गोलमाल और कर्ज आज देखी जाती हैं। फिल्म गोलमाल में जुड़वां कहानी (पटकथा) का ऐसा तानाबाना बुना कि यह पता ही नहीं चलता है कि फिल्म कब खत्म हो गई है। इसके निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी थे।
अब हम उस विषय पर बात करते हैं जो काफी ज्वलंत मुद्दा रहा और इस काम को करने के बाद उन्हे, उनके ज्ञान और कलम के जादू ने ढेर सारी लोकप्रियता हासिल की है। वह है बीआर चोपड़ा और रवि चोपड़ा के लिए ऐतिहासिक कृति महाभारत की पटकथा लिखना। जब यह सीरियल टीवी पर शुरू होता था तो सड़कें-मुहल्ले सब खाली हो जाते थे। टीवी उस जमाने कम होते थे लोग कहीं न कहीं जुगाड कर इस सीरियल का देखते जरूर थे। मैं समय हूं यह डायलाग जैसे टीवी पर आता लोगों के शरीर में सुरसुरी फैल जाती थी। महाभारत सीरियल की वजह से बहुत सारे लोगों ने अपने घरों के लिए टीवी भी खरीदा।
राही मासूम रजा की लिखी ये पांच गजलें पढ़ें
1. हम तो हैं परदेस में :-
हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद
अपनी रात की छत पर, कितना तनहा होगा चांद
जिन आँखों में काजल बनकर, तैरी काली रात
उन आँखों में आँसू का इक, कतरा होगा चांद
रात ने ऐसा पेंच लगाया, टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जाकर, अटका होगा चांद
चांद बिना हर दिन यूँ बीता, जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चांद
2.क्या वो दिन भी दिन हैं :-
क्या वो दिन भी दिन हैं जिनमें दिन भर जी घबराए
क्या वो रातें भी रातें हैं जिनमें नींद ना आए।
हम भी कैसे दीवाने हैं किन लोगों में बैठे हैं
जान पे खेलके जब सच बोलें तब झूठे कहलाए।
इतने शोर में दिल से बातें करना है नामुमकिन
जाने क्या बातें करते हैं आपस में हमसाए।।
हम भी हैं बनवास में लेकिन राम नहीं हैं राही
आए अब समझाकर हमको कोई घर ले जाए ।।
क्या वो दिन भी दिन हैं जिनमें दिन भर जी घबराए ।।
3. जिनसे हम छूट गये :-
जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्बू के मकाँ कैसे हैं।
ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं।
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहां कैसे हैं।
मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं।
4. गंगा और महादेव :-
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
मेरे उस कमरे को लूटो जिसमें मेरी बयाने जाग रही हैं
और मैं जिसमें तुलसी की रामायण से सरगोशी करके
कालीदास के मेघदूत से यह कहता हूँ
मेरा भी एक संदेश है।
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
लेकिन मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है
मेरे लहू से चुल्लू भर महादेव के मुँह पर फेंको
और उस योगी से कह दो-महादेव
अब इस गंगा को वापस ले लो
यह जलील तुर्कों के बदन में गढा गया
लहू बनकर दौड़ रही है।
5. दिल मे उजले काग़ज पर :-
दिल मे उजले काग़ज पर हम कैसा गीत लिखें
बोलो तुम को गैर लिखें या अपना मीत लिखें
नीले अम्बर की अंगनाई में तारों के फूल
मेरे प्यासे होंठों पर हैं अंगारों के फूल
इन फूलों को आख़िर अपनी हार या जीत लिखें
कोई पुराना सपना दे दो और कुछ मीठे बोल
लेकर हम निकले हैं अपनी आंखों के कश-कोल
हम बंजारे प्रीत के मारे क्या संगीत लिखें
शाम खड़ी है एक चमेली के प्याले में शबनम
जमुना जी की उंगली पकड़े खेल रहा है मधुबन
ऐसे में गंगा जल से राधा की प्रीत लिखें ।
साभार :- सभी गजलें कविता कोष से हैं
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