नुक्कड़ नाटक के जरिए सफ़दर हाशमी बयां करते थे लोगों का दर्द
गाँव कनेक्शन 2 Jan 2019 6:45 AM GMT

एक नाटककार, कलाकार, निर्देशक, गीतकार जैसी कई प्रतिभाओं के साथ जीने वाले सफदर हाशमी जिनकी मात्र 35 वर्ष की उम्र में हत्या कर दी गई। सफदर हाशमी जो लोगों के बीच में जाकर लोगों की समस्या को समझते और उनकी पीड़ा को नुक्कड़ नाटक व गीतों के माध्यम से प्रदर्शित करते थे।
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नुक्कड़ को देश में अलग पहचान दिलाने वाले सफदर हाशमी का जन्म 12 अप्रैल 1954 को दिल्ली में हुआ था। दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से अंग्रेज़ी में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया। यही वह समय था जब वे स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की सांस्कृतिक यूनिट से जुड़ गए और इसी बीच इप्टा से भी उनका जुड़ाव रहा।
हाशमी जन नाट्य मंच (जनम) के संस्थापक सदस्य थे, यह संगठन 1973 में इप्टा से अलग होकर बना, सीटू जैसे मजदूर संगठनों के साथ जनम का अभिन्न जुड़ाव रहा। इसके अलावा जनवादी छात्रों, महिलाओं, युवाओं, किसानों इत्यादि के आंदोलनों में भी इसने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।
हमारे घर पर खाने को नहीं होता था लेकिन हजारों किताबें रखी रहती थी। मेरे वालिद स्वतंत्रा सेनानी थे और और वालिदा भी काफी पढ़ी लिखी थी। मेरे वालिद को फैज़ और साहिर के लगभग सारे नज्म याद थे। वो गुनगुनाते रहते थे। घर के अंदर बराबरी का माहौल था। सफदर जब कॉलेज में गए थो शुरू में ही उनका झुकाव एसएफआई की तरफ हुआ। सफदर कभी किसी पार्टी में बंध के नहीं रहे। सफदर बहुत रचनात्मक थे। घर में कभी किसी तो किसी अभिनय किया करते थे। आज जो देश में महौल है ऐसे में सफदर हाशमी होते तो ज़रूर लड़ रहे होते।शबनम हाशमी, सफदर हाशमी की छोटी बहन
1975 में आपातकाल के लागू होने तक सफदर जनम के साथ नुक्कड़ नाटक करते रहे और उसके बाद आपातकाल के दौरान वे गढ़वाल, कश्मीर और दिल्ली के विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी साहित्य के व्याख्याता के पद पर रहे। आपातकाल के बाद सफदर वापस राजनैतिक तौर पर सक्रिय हो गए और 1986 तक जनम भारत में नुक्कड़ नाटक के एक महत्वपूर्ण संगठन के रूप में उभरकर आया। एक नए नाटक 'मशीन' को दो लाख मजदूरों की विशाल सभा के सामने आयोजित किया गया।
इसके बाद और भी बहुत से नाटक सामने आए, जिनमें निम्न वर्गीय किसानों की बेचैनी का दर्शाता हुआ नाटक 'गाँव से शहर तक', सांप्रदायिक फांसीवाद को दर्शाते (हत्यारे और अपहरण भाईचारे का), बेरोजगारी पर बना नाटक 'तीन करोड़', घरेलू हिंसा पर बना नाटक 'औरत' और मंहगाई पर बना नाटक डीटीसी की धांधली इत्यादि प्रमुख रहे। सफदर ने बहुत से वृत्तचित्रों और दूरदर्शन के लिए एक धारावाहिक 'खिलती कलियों का निर्माण भी किया'। उन्होंने बच्चों के लिए किताबें लिखीं और भारतीय थिएटर की आलोचना में भी अपना योगदान दिया।
सफदर हाशमी की लिखी एक कविता
किताबें करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक पल की
ख़ुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में खेतियां लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में राकेट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों में कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥
नाटक के दौरान ही कर दी गई थी हत्या
एक जनवरी, 1989 वो मनहूस दिन था, जब दिल्ली से सटे साहिबाबाद के झंडापुर गाँव में ग़ाज़ियाबाद नगरपालिका चुनाव के दौरान नुक्कड़ नाटक 'हल्ला बोल' का प्रदर्शन किया जा रहा था, तभी 'जनम' के समूह पर एक राजनैतिक पार्टी से जुड़े कुछ लोगों ने हमला कर दिया।
इस हमले में सफ़दर हाशमी बुरी तरह से जख्मी हुए। उसी रात को सिर में लगी भयानक चोट की वजह से सफ़दर हाशमी की मृत्यु हो गई।
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