पुण्यतिथि विशेष: ऐसा फनकार न कभी था न होगा

Mohit AsthanaMohit Asthana   31 July 2017 3:33 PM GMT

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पुण्यतिथि विशेष: ऐसा फनकार न कभी था न होगामो. रफ़ी।

लखनऊ। ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे...’ इन बोलों को अपनी आवाज देने वाले शख्स को भी ये गाना रिकॉर्ड करते वक्त नहीं पता होगा कि वाकई वो कुछ ऐसा कर जायेगा कि सदियों तक उन्हें भुलाना आसान नहीं होगा। हम बात कर रहे हैं सुरों के सम्राट मरहूंम मोहम्मद रफीं साहब की। 31 जुलाई 1980 की शाम आसमान रो रहा था उसके आसुओं ने पूरे देश को भिगो दिया था।

पूरी कायनात में सन्नाटा पसरा हुआ था आखिर 'शहंशाह ए तरन्नुम' को सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जा रहा था। 31 जुलाई1980 को रफ़ी को शायद यह एहसास हो गया था कि अब उनके पास वक्त नहीं है इसीलिये गाने की रिकॉर्डिग के दौरान उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कहा 'ओके नाऊ आई विल लीव'। किसी को क्या पता था कि सुरों का सम्राट हमेशा के लिये आराम करने जा रहा है। उसी दिन शाम 7.30 बजे दिल का दौरा पड़ा और दुनिया को छोड़ गये और अपने पीछे छोड़ गये अपनी आवाज।

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स्वभाव से शर्मीले थे

मरहूंम रफ़ी साहब ने लगभग हर भाषाओं में 26 हजार गीत रिकार्ड किये। रफ़ी बहुत ही शर्मीले स्वभाव के थे न किसी से ज्यादा बातचीत न कोई मतलब बस अपने काम से काम। रफ़ी साहब को पार्टियों में जाने का भी शौक नहीं था।

मो. रफ़ी ने की थी दो शादियां

शायद ही लोग ये जानते होंगे कि रफ़ी ने दो शादियां की थी। ये बात सिर्फ उनके घर वाले ही जानते थे। ये बात तब पता चली जब रफ़ी की पुत्रवधू यास्मीन ख़ालिद रफ़ी की पुस्तक 'मो. रफ़ी मेरे अब्बा...एक संस्मरण' में इस बात का खुलासा किया गया। इस किताब में लिखा है कि 13 साल की उम्र में रफ़ी की पहली शादी उनके चाचा की बेटी बशीरन बेगम से हुई थी दोनों से उनका बेटा सईद हुआ।

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निकाह के कुछ साल बाद ही उनका तलाक हो गया था। सिवाय घर वालों के किसी को भी उनके इस निकाह के बारे में नहीं पता था।घर में इस बात का जिक्र करना भी मना था क्यों कि उनकी दूसरी बीवी बिलकिस बेगम इस बात को बिल्कुल नापसंद करती थीं। यदि कभी कोई इसकी चर्चा करता भी था, तो बिलकिस बेगम और रफी के साले जहीर बारी इसे अफवाह कहकर बात को वहीं दबा देते थे।

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