आर.के. लक्ष्मण : जिसने कार्टून के माध्यम से रचा आम आदमी को

Divendra SinghDivendra Singh   24 Oct 2017 4:40 PM GMT

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आर.के. लक्ष्मण : जिसने कार्टून के माध्यम से रचा आम आदमी कोआरके लक्ष्मण

लखनऊ। देश के मशहूर व्यंग्य-चित्रकार जिसने अपने चित्रों के जरिए आम आदमी को जगह दी, आम आदमी के जीवन की मायूसी, अंधेरे, उजाले, खुशी और ग़म को शब्दों और रेखाओं को समाज के सामने रखा। आज उन्हीं आर. के. लक्ष्मण का जन्मदिन है।

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इनका पूरा नाम रासीपुरम कृष्णस्वामी लक्ष्मण था और 23 अक्टूबर 1921 को मैसूर में लक्ष्मण का जन्म हुआ था। आर. के. लक्ष्मण भारत के एक प्रमुख व्यंग्य-चित्रकार रहे हैं। आम आदमी की पीड़ा को अपनी कूची से गढ़कर, अपने चित्रों से इसे वे तकरीबन पिछले पचास सालों से लोगों को बताते रहे थे। असाधारण व्यक्तित्व के धनी आर. के. लक्ष्मण ने वक़्त की नब्ज को पहचान कर देश, समाज और स्थितियों की अक्कासी की। लक्ष्मण के कार्टूनों की दुनिया व्यापक है और इसमें समाज का चेहरा तो दिखता ही है, साथ ही भारतीय राजनीति में होने वाले बदलाव भी दिखाई देते हैं।

समाज की विकृतियों, राजनीतिक विदूषकों और उनकी विचारधारा के विषमताओं पर भी वे तीख़े ब्रश चलाते थे, लक्ष्मण सबसे ज्यादा अपने कॉमिक स्ट्रिप ‘द कॉमन मैन’ जो उन्होंने द टाईम्स ऑफ़ इंडिया में लिखा था, के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। रासीपुरम कृष्णस्वामी लक्ष्मण को भारत के एक प्रमुख व्यंग-चित्रकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। अपने कार्टूनों के ज़रिए आर. के. लक्ष्मण ने एक आम आदमी को एक व्यापक स्थान दिया और उसके जीवन की मायूसी, अंधेरे, उजाले, ख़ुशी और ग़म को शब्दों और रेखाओं की मदद से समाज के सामने रखा।

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मैसूर में जन्मे लक्ष्मण के पिता एक स्कूल के संचालक थे और लक्ष्मण उनके छः पुत्रों में सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई आर. के. नारायण एक प्रसिद्ध उपन्यासकार रहे हैं और इस समय केरल केएमजे विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर हैं। बचपन से ही लक्ष्मण को चित्रकला में बहुत रूचि थी, बचपन में लक्ष्मण वे फर्श, दरवाज़ा, दीवार, आदि में चित्र बनाते थे। बचपन में ही एक बार उन्हें अपने अध्यापक से पीपल के पत्ते के चित्र बनाने के लिए शाबाशी मिली थी, तबसे उनके अन्दर एक चित्रकार बनने की इच्छा ने जन्म लिया। वे ब्रिटन के मशहूर कार्टूनिस्ट सर डेविड लौ से बहुत प्रभावित थे। लक्ष्मण अपने स्थानीय क्रिकेट टीम “रफ एंड टफ एंड जॉली” के कप्तान भी रहे थे।

जब बचपन का छिन गया सुख

लक्ष्मण के बचपन में ही उनके पिता पक्षाघात के शिकार हो गए थे और उसके एक साल बाद उनका देहांत हो गया। बचपन का सुख छिन जाने के बावजूद लक्ष्मण ने अपनी स्कूली शिक्षा को जारी रखा। अपने कार्टूनों के जरिए आर.के. लक्ष्मण ने एक आम आदमी को एक ख़ास जगह दी। हाशिये पर पड़े आम आदमी के जीवन की मायूसी, अंधेरे, उजाले, खुशी और गम को शब्द चित्रों के सहारे दुनिया के सामने रखा। लक्ष्मण के कार्टूनों की दुनिया काफ़ी व्यापक है और इसमें समाज का चेहरा तो दिखता ही है, साथ ही भारतीय राजनीति में होने वाले बदलाव भी दिखाई देते हैं। भ्रष्टाचार, अपराध, अशिक्षा, राजनीतिक पार्टियों के छलावों से जो तस्वीर निकल कर आती है वो है आर. के लक्ष्मण का आम आदमी की।

आम आदमी खामोश रहता है

आम आदमी सिर्फ जिंदगी की मुश्किलों से लड़ता है, उसे चुपचाप झेलता है, सुनता है, देखता है, पर बोलता नहीं, यही वजह है कि आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी ताउम्र खामोश रहा। आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी शुरू-शुरू में बंगाली, तमिल, पंजाबी या फिर किसी और प्रांत का हुआ करता था लेकिन काफ़ी कम समय में आम आदमी की पहचान बन गया ये कार्टून टेढा चश्मा, मुड़ी-चुड़ी धोती, चारखाना कोट, सिर पर बचे चंद बाल। लक्ष्मण का आम आदमी पूरी दुनिया में ख़ास बन गया था। 1985 में लक्ष्मण ऐसे पहले भारतीय कार्टूनिस्ट बन गए जिनके कार्टून की लंदन में एकल प्रदर्शनी लगाई गई। लंदन की उसी यात्रा के दौरान वो दुनिया के जाने-माने कार्टूनिस्ट डेविड लो और इलिंगवॉर्थ से मिले- ये वो शख्स थे जिनके कार्टून को देखकर लक्ष्मण को कार्टूनिस्ट बनने की प्रेरणा मिली थी।

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जब मिला बड़ा ऑफर

लक्ष्मण की काबीलीयत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि लंदन का अखबार ‘दि इवनिंग स्टैंडर्ड’ ने उन्हें एक समय डेविड लो की कुर्सी संभालने का ऑफर दिया था। लक्ष्मण के कार्टून फिल्मों में भी इस्तेमाल हुए। फ़िल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज’ और तमिल फ़िल्म ‘कामराज’ के लिए लक्ष्मण ने कार्टून बनाए। लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के. नारायण की कृति ‘मालगुडी डेज’ को जब टेलीविज़न पर दिखाया गया तो उसके लिए भी लक्ष्मण ने स्केच तैयार किये। लक्ष्मण का आम आदमी उस वक़्त फिर ख़ास हो उठा जब डेक्कन एयरलाइंस की सस्ती विमान सेवा शुरू हुई। एयरलाइंस के संस्थापक कैप्टन गोपीनाथ अपने सस्ते विमान के लिए प्रतीक चिह्न की तलाश में थे, और इसके लिए उन्हें लक्ष्मण के आम आदमी से बेहतर कुछ और नही मिल सकता था।

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