मौसम के बदलाव से अब नहीं डरती महिला किसान

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मौसम के बदलाव से अब नहीं डरती महिला किसानगाँव कनेक्शन

लखनऊ। कोड़ीबला गाँव की रहने वाली श्रीकांति (40 वर्ष) दस वर्षों से गोभी, आलू और टमाटर जैसी फसलों की खेती कर रही हैं। खेती में पहले उन्हें मौसम का अनुमान नहीं लग पाता था, जिससे उनकी सब्जियां बर्बाद हो जाती थीं। अब उनके गाँव का महिला कृषक मंडल महीने में दो बार पास के कृषि ट्रेनिंग सेंटर में कुशल खेती के गुर सीख रहा है, जिससे अब उनकी मुश्किलें हल हो गई हैं।

गोरखपुर जिले के कोड़ीबला गाँव की महिला कृषक श्रीकांति बताती हैं, ''पहले जाड़े में टमाटर की खेती के दौरान अचानक बरसात हो जाने से फसल में कीड़ा लग जाता था। जीइएपी (गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन प्लान) संस्थान में ट्रेनिंग लेने के बाद हमने अपने खेतों में स्टेकिंग प्रक्रिया की मदद से टमाटर उगाना सीखा, जिससे अब कम नुकसान होता है।"

देश में महिला किसानों को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन के आधार पर कृषि के विकास पर काम कर रही संस्था जीइएपी (गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन प्लान) प्रदेश भर के दो लाख किसानों को उन्नत कृषि से जोड़ चुकी है, जिसमें डेढ़ लाख महिला किसान शामिल हैं।

लखनऊ स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में 29 दिसंबर को आयोजित महिला किसान केंद्रित जलवायु अनुकूलित कृषि विस्तार समारोह में प्रदेश भर से आईं 150 महिला किसानों को खेती में जागरूकता लाने की बात कहते हुए अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में जेंडर स्पेशलिस्ट सुगंधा मुंशी ने बताया, ''महिला किसानों के सामने आज सबसे बड़ी मुसीबत है जलवायु परिवर्तन। हालांकि देश में जीइएपी और आईआरआरआई जैसे संस्थानों ने इस विषय पर काफी काम किया है और लाखों महिला किसानों को कुशल खेती की तरफ मोड़ा है, जिसका नतीजा यह हुआ है कि अब महिला किसानों का मौसम के बदलाव के प्रति डर कम हुआ है।"

भारत की सबसे बड़ी सर्वेक्षण रिपोर्ट एनएसएसओ 2011 के अनुसार भारत में सात करोड़ से ज़्यादा महिलाएं खेती के व्यवसाय से जुड़ी हैं। ऐसे में महिला किसानों को जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों को गंभीरता से लेने पर देश में कृषि विकास नए आयाम तक पहुंचाया जा सकता है। समारोह में संतकबीर नगर जिले के मेंधावल गाँव से आई सम्मानित महिला किसान गुजराती

देवी (50) कद्दू और तरोई जैसी सब्जियों और धान-गेहूं जैसी फसलों की खेती करती हैं। वो बताती हैं, ''हम अब जान गए हैं कि रसायनिक खादों के प्रयोग से फसल को सिर्फ नुकसान ही होता है, इससे कोई लाभ नहीं होता। अपने खेतों में हम अब केंचुआ खाद, गोबर व गोमूत्र जैसी जैविक खाद ही इस्तेमाल करते हैं।" ''500 रुपए का एक किलो केंचुआ खरीदे हैं।" गुजराती मुस्कुराते हुए आगे कहती हैं। 

गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन प्लान संस्था द्वारा गोरखपुर जिले में चलाया जा रहा आरोह अभियान अभी तक क्षेत्र में 100 से ज़्यादा कृषक सेवा केंद्र खोले गए हैं। इन केंद्रों का मुख्य उद्देश्य महिला किसानों को जलवायु परिवर्तन के हिसाब से कुशल खेती से जोडऩा और उनका सामाजिक विकास है। ''महिला किसानों में अभी भी ज़मीनी ज्ञान की कमी है। इसका मुख्य कारण है गलत जागरूकता का होना। अगर महिला किसान सब्जियों की खेती के बारे में अच्छे से जानती हैं तो उन्हें धान की ट्रेनिंग देने से कोई लाभ नहीं है। यह बात ट्रेनिंग संस्थानों को जाननी होगी। ताकि किसानों को बेहतर बनाया जा सके ।" सुगंधा मुंशी आगे बताती हैं।

 

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