मौसमी फल, स्वाद के साथ सेहत भी

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मौसमी फल, स्वाद के साथ सेहत भीगाँव कनेक्शन

वनों पर आश्रित वनवासियों के लिए स्वस्थ रहने का एक मात्र साधन जंगल और जंगल से प्राप्त संसाधन ही होते हैं। मकानों को बनाने के लिए लकड़ियों की बात की जाए या घरों के फर्निचर्स ये सभी वन संपदाओं से प्राप्त होते हैं। घरों में चूल्हे जलाने की बात हो, खेतों में जुताई के लिए हल की व्यवस्था करना ऐसे हर एक काम के लिए वनवासियों को प्रकृति की ही शरण में जाना होता है।

बेहतर स्वास्थ्य और रोग मुक्ति के लिए ये वनवासी जंगली जड़ी, बूटियों, पेड़-पौधों और उनके अंगों जैसे जड़ पत्तियां और फलों आदि का इस्तेमाल करते हैं। भुमका और भगत कहलाने वाले आदिवासी जड़ी-बूटी जानकार पौधों के समस्त अंगों का उपयोग कर रोग निवारण करने का दावा करते हैं और इनके इस हुनर को एक हद तक विज्ञान भी सराहता है। गाँव कनेक्शन के जरिए इस सप्ताह हम जिक्र करेंगे कुछ जंगली पेड़ पौधों का जो हमें मीठे खट्टे फल देते हैं और इन फलों पर नमक का छिड़काव करके स्वाद लिया जाए तो जहां एक तरफ  आपके शरीर के लिए आवश्यक तत्वों की भरपाई होगी वहीं फलों के नए स्वाद का आप सभी आनंद ले पाएंगे। 

फालसा

फालसा मध्यभारत के वनों में प्रचुरता से पाया जाता है। फालसा का वानस्पतिक नाम ग्रेविया एशियाटिका है। गर्मियों में इसका शर्बत ठंडक प्रदान करता है और लू और गर्मी के थपेड़ों से भी आराम दिलाता है। जिन्हें पेट दर्द और अपचन की शिकायत हो उन्हें इसके शर्बत में नमक डालकर दिया जाए तो तेजी से राहत मिलती है। हृदय की कमजोरी की दशा में लगभग 20 ग्राम फालसा के पके फल, 5 काली मिर्च, चुटकीभर सेंधा नमक, थोड़ा सा नींबू रस लेकर अच्छी तरह से घोट लिया जाए और इसे एक कप पानी में मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित रूप से पिया जाए तो हृदय की दुर्बलता, अत्यधिक धड़कन आदि विकार शान्त हो जाते हैं। डाँग, गुजरात के आदिवासी इसी मिश्रण को शरीर में वीर्य, बल वृद्धि के लिए उपयोग में लाते है। खून की कमी होने पर फालसा के पके फल खाना चाहिए। अगर शरीर में त्वचा में जलन हो तो फालसे के फल या शर्बत को सुबह-शाम लेने से अतिशीघ्र आराम मिलता है। फालसा के पके फलों के सेवन से शरीर के दूषित मल को बाहर निकाल आता है। 

शहतूत

शहतूत को ‘मलबेरी’ के नाम से भी जाना जाता है। मध्य भारत में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम मोरस अल्बा है। शहतूत के फलों का रस में नमक डालकर पीने से आंखों की रोशनी तेज होती है। पातालकोट के आदिवासी गर्मी के दिनों में शहतूत के फलों के रस में चीनी और स्वादानुसार नमक मिलाकर पीने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार शहतूत की तासीर ठंडी होती है जिससे गर्मी में होने वाले सन स्ट्रोक से बचाव होता है। शहतूत का रस हृदय रोगियों के लिए भी लाभदायक है। शहतूत में विटामिन ए, कैल्शियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम अधिक मात्रा में मिलता हैं। इसके सेवन से बच्चों को पर्याप्त पोषण मिलता है, साथ ही यह पेट के कीड़ों को भी समाप्त करता है। शहतूत खाने से खून से संबंधित दोष समाप्त होते हैं। शहतूत, अंतमूल, अंगूर और गुलाब की पंखुड़ियों से बना रस चीनी और थोड़ा सा नमक मिलाकर पीने से शरीर में खून शुद्ध होता है। शहतूत का रस पीने से हाथ-पैर के तालुओं में जलन से राहत मिलती है।

करौंदा

जंगलों, खेत-खलिहानों के आस-पास कंटली झाड़ियों के रूप में करौंदा प्रचुरता से उगता है हालांकि करौंदा के पेड़ पहाड़ी भागों में अधिक पाए जाते हैं। इसके पेड़ कांटेदार और 6 से 7 फुट ऊंचे होते हैं। करौंदे के फलों में लौह तत्व और विटामिन ‘सी’ प्रचुरता से पाए जाते है। आम घरों में करौंदा सब्जी, चटनी, मुरब्बे और अचार के लिए प्रचलित है। करौंदे का वानस्पतिक नाम कैरिस्सा कंजेस्टा है। पातालकोट में आदिवासी करौंदा के फलों का रस तैयार कर इसमें नमक मिलाकर बुखार और लू से त्रस्त रोगी को देते हैं, कहा जाता है कि गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फलों का जूस और स्वादानुसार नमक का सेवन बेहद असरदार होता है और तुरंत आराम मिलता है। फलों को सुखा लिया जाए और कुचलकर नमक मिलाकर चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है। करौंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त भी बंद करता है। खट्टी डकार और अम्ल पित्त की शिकायत होने पर करौंदे के फलों का चूर्ण और नमक का मिश्रण काफी फायदा करता है। आदिवासियों के अनुसार यह चूर्ण भूख को बढ़ाता है पित्त को शांत करता है। करौंदा के फल खाने से मसूढ़ों से खून निकलना ठीक होता है, दाँत भी मजबूत होते हैं। फलों से सेवन रक्तअल्पता में भी फायदा मिलता है।

गुंदा

गुन्दा मध्यभारत के वनों में देखा जा सकता है। यह एक विशाल पेड़ होता है। जिसके पत्ते चिकने होते है। आदिवासी अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते है और इसकी लकड़ी इमारती उपयोग की होती है। इसे रेठु के नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम कार्डिया डाईकोटोमा है। इसके फलों का अचार भी बनाया जाता है। कच्चे गुन्दा के फलों को कुचलकर रस तैयार किया जाए और नमक और थोड़ी मात्रा में गुड़ मिलाकर देने से अतिसार से पीड़ित व्यक्ति को आराम मिलता है। डाँग, गुजरात के आदिवासी गुन्दा के फलों को सुखाकर चूर्ण बनाते है और मैदा, बेसन, घी और स्वादानुसार नमक और गुड़ के साथ मिलाकर लड्डू बनाते है। इनका मानना है कि इस लड्डू के सेवन शरीर को ताकत और स्फूर्ती मिलती है। 

 

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