मधुमक्खियों ने घुमाए पांच राज्य

vineet bajpaivineet bajpai   21 Dec 2015 5:30 AM GMT

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मधुमक्खियों ने घुमाए पांच राज्यगाँव कनेक्शन

गोपालपुर (सीतापुर)। 50 वर्षीय शिवाजी भगत मधुमक्खियों की वजह से पिछले करीब 15 वर्षों से पांच राज्यों के चक्कर लगा रहे हैं। वो कुछ महीने बिहार, कुछ महीने झारखण्ड, कुछ महीने छत्तीसगढ़, कुछ महीने मध्य प्रदेश तो कुछ महीने उत्तर प्रदेश में रह-रह कर अपनी जि़न्दगी बिता रहे हैं। इनका पूरा साल ऐसे ही गुज़रता है।

दरअसल ये पूरा साल अलग-अलग राज्यों में इसलिये बिताते हैं, क्योंकि शिवा जी भगत पिछले करीब 15 वर्षों से मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। वो बताते हैं, ''अगर हम मधुमक्खियों को एक ही जगह रखे रहेंगे तो शहद नहीं निकलेगा। इनको न तो ज़्यादा धूप चाहिये होती है और ना ही ज़्यादा छांव और फिर एक ही जगह पर हमेशा फूलों वाली फसल रहती नहीं, इसलिये हम मौसम और फसल के अनुसार मधुमक्खियों की जगह बदलते रहते हैं।" शिवाजी बिहार राज्य के मुजफ्फरनगर जि़ले के खेमई पट्टी गाँव के रहने वाले हैं और इस समय लखनऊ जि़ला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर सीतापुर जि़ले के सिधौली ब्लॉक के गोपालपुर गाँव में अपनी मधुमक्खियों के साथ पिछले एक महीने से रुके हुए हैं।

शिवाजी बताते हैं, "इस समय यहां सरसों, अरहर और लिप्टिस में फूल हैं इसलिये यहां पर हैं। अगर यहां सब कुछ सही रहा और शहद अच्छा निकलता रहा तो तो फरवरी तक यहां रुकेंगे, नहीं तो 15-20 दिन बाद यहां से बलिया चले जाएंगे।" वो आगे बताते हैं, "पहले मेरे पास छोटी वाली मक्खी थी तो उसको लेकर नहीं घूमना पड़ता था, लेकिन उसमें इतना फायदा नहीं होता है। ये बड़ी वाली मक्खी है, इनको लेकर इधर उधर घूमना तो पड़ता है, लेकिन इनसे शहद भी ज़्यादा मिलता है।"

सिर्फ शिवाजी ही अकेले ऐसे नहीं हैं जो बिहार से आकर सीतापुर में टिके हुये हैं बल्कि उनके जैसे ही सैकड़ों लोग इस समय सीतापुर जिले में रुके हुये हैं। 

गोपालपुर से करीब पांच किमी दूर भरौना गाँव में अपनी करीब 250 बक्से मधुमक्खियों के साथ रुके राजेश कुमार (45 वर्ष) बताते हैं, "इस समय यहां करीब 5,000 ट्रक मधुमक्खी आयी है। यहां पर सब अलग-अलग जगहों पर रुके हुये हैं।" राजेश अपनी सात सौ बक्से मधुमक्खियों के साथ यहां पर रुके हुये हैं, वो बताते हैं, "हम लोग पता करते रहते हैं कि किस समय कहां पर कौन सी फसल होती है, फिर जहां पर हमें सही दिखता है वहीं पर जा कर बस जाते हैं।" राजेश भी बिहार से ही आये हैं।

गाँव कनेक्शन के रिपोर्टर ने जब ये पूछा कि आप लोगों को बार-बार यहां से वहां ले जाने में कोई परेशानी नहीं होती, आपको ये काम मुश्किल नहीं लगता? तो इस पर पास में ही बैठे नवल कुमार (25 वर्ष) बताते हैं, "काम मुश्किल तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं है और फिर वर्षों से यही करते आ रहे हैं तो अब आदत हो गयी है और फिर अब और कुछ करने का मन भी नहीं करता, क्योंकि इसमें अगर सब कुछ अच्छा रहे तो अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है।" विनय बताते हैं, "हमारे पास 230 बक्से हैं, इतने में अगर सब कुछ ठीक रहे तो दस दिन में करीब 12 से 13 कुन्तल शहद निकल आता है और फिर शहद बेचने में भी कोई दिक्कत नहीं होती। शहद खरीदने वालों से हम लोगों का सम्पर्क रहता है, बस उन्हें फोन कर देता हूं और वो खुद आकर शहद ले जाते हैं। अभी इस बार तो रेट नहीं आया है, पिछली बार 100 रुपए किलो शहद बिका था।"

 

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