मेघालय की इस जनजाति से जुड़े सदियों पुराने राज का हुआ खुलासा

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शिलांग (भाषा)। मेघालय के री-भोई जिले में मिली प्राचीन शिलाएं और औजार यह संकेत देते हैं कि राज्य की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक खासी जनजाति इस राज्य में 1200 ईसा पूर्व से मौजूद है।

पुरातत्ववेत्ता मार्को मित्री और नॉर्थ ईस्टर्न हिल्स यूनिवर्सिटी के शिक्षाविदों के एक दल ने एनएच-40 के पास सोहपेटबनेंग चोटी की उत्तरी ढलानों पर बसे लुमावबुह गाँव के पास एक पुरातत्व स्थल की खुदाई की। मित्री ने कहा कि उन्होंने शिलानुमा आकृतियां और लोहे की सामग्री बरामद की, जो प्रगैतिहासिक काल की हैं। पहाड़ का यह हिस्सा डेढ़ किलोमीटर के दायरे में फैला है।

मित्री ने बताया, ''हमने 20 औजार और अनाज समेत अन्य सामग्री मियामी की प्रयोगशाला बीटा एनालेटिक में भेजी थी ताकि इनकी उम्र की पुष्टि के लिए रेडियोकार्बन डेटिंग की जा सके। परीक्षणों से पुष्टि हुई है कि ये 12वीं सदी ईसापूर्व के हैं।'' शिलाओं की ये आकृतियां पारंपरिक शवगृह में इस्तेमाल की जाती थीं। कुछ दशक पहले तक यह प्रथा आदिवासियों में चर्चित थी।

उन्होंने कहा, ''ये नवपाषण कालिक संरचनाएं सबसे पहले वर्ष 2004 में खोजी गई थीं और आज से लगभग 200 साल पहले इस इलाके में बस्ती होने की पुष्टि में कम से कम दस साल लग गए।'' ब्रिटिश आर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट्स ने वर्ष 2009 में मित्री के काम 'आउटलाइन ऑफ नियोलिथिक कल्चर ऑफ खासी एंड जैन्तिया हिल्स' को प्रकाशित किया था और पुरातत्ववेत्ता ने वर्ष 2010 में प्रकाशित किताब 'कल्चरल-हिस्टॉरिकल इंटरेक्शन एंड द ट्राइब्स ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया' का संपादन भी किया था।

 

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