“और अब, रामलीला के मंच से सात साल का बच्चा ‘शारुक’, शायरी सुनाएगा”

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“और अब, रामलीला के मंच से सात साल का बच्चा ‘शारुक’, शायरी सुनाएगा”शाहरुख खान, रामलीला

दिल्ली में होने वाली रामलीला का इतिहास काफी पुराना है। कहते हैं इसकी जड़े मुग़लिया दौर के आखिरी बादशाह बहादुर शाह ज़फर के दौर से जाकर मिलती है। उस दौर से इस दौर तक रामलीला जारी है। रामलीला के बारे में एक मज़ेदार तथ्य ये भी है कि हमारी फिल्मी दुनिया के तमाम सितारों ने अपने करियर की शुरुआत रामलीला से की है। इसी फेहरिस्त में एक नाम शाहरुख़ ख़ान का भी आता है, वो ना सिर्फ रामलीला में एक्टिंग करते थे बल्कि मंच पर अपनी शायरी भी सुनाते थे।

shahrukh Khan

शाहरुख के वालिद मीर ताज मोहम्मद दिल्ली में छोटा सा कारोबार करते थे। उन दिनों शाहरुख़ सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ाई करते थे और खेलकूद के अलावा एक्टिंग का शौक भी रखते थे। उन्हें बचपन से ही फ़िल्मों का शौक था। यही शौक़ शायद उन्हें रामलीला तक ले गया। वो अपने दोस्तों के बीच मिमिक्री किया करते थे और दिल्ली की रामलीला में बंदर का रोल करते थे। लेखक मुश्ताक़ शेख की किताब 'कहानी शाहरुख़ ख़ान की' में शाहरुख़ का कथन है

मुस्लिम परिवार से होने की वजह से मेरे इर्द-गिर्द हर कोई उर्दू बोलता था। मेरे पिता हमारे सोने के वक्त हमें उर्दू में कहानियां सुनाते थे और कभी-कभी ग़ालिब और इक़बाल की शायरी भी सुनाते थे। मेरा अंदाज़ा है कि इसी वजह से मुझमें शायरी लिखने की दिलचस्पी पैदा हुई

इसी किताब में मुश्ताक़ लिखते हैं कि शाहरुख़ जब छोटे थे तो उनके पिता उन्हे ‘चच्चा साब’ की रामलीला देखने जाने देते थे। ये उनके घर के ठीक पीछे होती थी। कभी-कभी शाहरुख़ उसमें अपनी शायरी सुनाते थे या रामलीला में बंदर का रोल करते थे। तड़के एक या दो बजे जब रामलीला के कलाकारों का दल चाय पी रहा होता था तो धुंधली आँखों वाला एक उद्घोषक मंच पर आता था और कहता था “अब आएगा एक छोटा सा सात साल का बच्चा शारुक जो अपको थोड़ी सी शायरी सुनाएगा" और शाहरुख़ स्टेज पर जाकर अपनी शायरी सुनाते थे। एक शायरी कुछ यूं थी

परिंदे उड़ते हैं, मैं देखता हूं, लोग चलते हैं, मैं देखता हूं, अपने हुलिये को देखकर मैं रोता हूं, किसे क्या मालूम मैं किन सपनों में खोता हूं
शाहरुख़, सात साल की उम्र में

Shahrukh Khan

और फिर आवाज़े गूंजती, गुप्ता साहब की तरफ से ये रहा नकद इनाम... ये इनाम कभी-कभी 500 भी होता था। रुपए पकड़े हुए शाहरुख़ घर आते थे और अगली कविता और शायरी के बारे में सोचने लगते थे।

एक टीवी कार्यक्रम में शाहरुख़ ने कहा था कि शायरी के अलावा जब वो रामलीला के दौरान मंच पर एक्टिंग कर रहे होते थे तो उनकी ख्वाहिश होती कि उन्हे ख़ूब सारे डायलॉग मिलें, लेकिन अफ़सोस ये कि उनका डायलॉग सिर्फ एक लफ्ज़ का होता था। जब वो वानर सेना का हिस्सा बनकर रामलीला में मंच पर आते थे, तो सेनापति कहता था – सियापति राम चंद्र की ... जिसपर पीछे भीड़ में वानर बने खड़े शाहरुख कहते थे ‘जयशाहरुख़ कहते हैं कि वो उस जय को पूरे जोश के साथ कहते थे, इस उम्मीद में कि शायद उन्हें अगली बार और ज़्यादा डायलॉग मिल जाएं।

     

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