99 फिल्में लिखने वाला वो लेखक, जो शतक बनाना चाहता था ...
गाँव कनेक्शन 6 Oct 2016 7:11 PM GMT

राखी सिन्हा: छुटपन का हमारा संडे किसी बेतक़लुफ्फ़ शायर सा होता था। कोई घिसा-पिटा रूटीन नहीं, जब जी चाहा टी.वी खोलकर जम जाओ। पता नहीं आपको याद है या नहीं, पर तब के दूरदर्शन राज में रविवार सुबह एक सीरियल आया करता था, ‘चंद्रकांता’। क्या बच्चे क्या बड़े सब उसके दीवाने थे। उस सीरियल को लिखने वाले थे ‘कमलेश्वर’ पूरा नाम कहें तो ‘कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना’
यू.पी के मैनपुरी में एक आम मध्यवर्गीय परिवार जन्में कमलेश्वर अपने समय के बहुत बड़े कथाकार थे। उन्होंने सैकड़ों कहानियाँ लिखीं, करीब दर्जन भर उपन्यास रचे, सीरियल-फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी। उनके गढ़े किरदार बड़े आम से होते थे जैसे हम और आप हैं, लेकिन उन किरदारों के जीने का नज़रिया, सामाजिक ताने-बाने में छिपी जद्दोजहद, उन्हें ख़ास बना देती थी।
कमलेश्वर की लेखन यात्रा उनकी पढाई के दौरान ही शुरू को गई थी। आगे चलकर उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिंदी में एम.ए किया और फिर 1954 में जानी-मानी पत्रिका ‘विहान’ के साथ बतौर संपादक जुड़ गये। उसके बाद सारिका , कथायात्रा जैसी कई बड़ी पत्रिकाओं का संपादन भी किया
कभी फुर्सत में तो हों कमलेश्वर की कहानियाँ ज़रूर पढ़ियेगा, नीली झील, तीसरा आदमी, राजा निरबंसिया, आसक्ति, नागमणि और ऐसी ही कितनी कहानियाँ हैं जो पढ़ने वाले को एक अलग दुनिया दिखाती हैं, जहाँ भावनाएं हंसाती-रुलाती हैं, अभाव खटकते हैं, तकलीफ़ भी होती है और आखिर में आपको लगता है, कहीं मैं इस किरदार से मिलता-जुलता तो नहीं!
सँकरी सी गली में उनका मकान है। अंधेरा उतरता है तो मकान जैसे नीचें धँसने लगता है। रात-भर वह डूबते हुए जहाज़ की तरह धँसता जाता है... सुबह होते ही जब पश्चिम वाली उँची दीवार पर धूप का एक टुकड़ा तिकोनी झंडी की तरह झिलमिलाने लगता है, तो उनका मकान धीरे-धीरे उपर उठने लगता हैकमलेश्वर की कहानी ‘ऊपर उठता हुआ मकान’ से
उपन्यास पर चर्चा करें तो ‘कितने पाकिस्तान’ उनकी कालजयी रचना है। बुद्धिजीवियों, चिंतको की मानें तो कमलेश्वर ने महज़ ‘कितने पाकिस्तान’ नहीं बल्कि एक महागाथा रची थी जिसमें हर व्यक्ति एक कटघरे में खड़ा है और उसे ही निर्णय भी देना है, कौन बड़ा? हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के बीच की तनातनी, नफ़रत-भाईचारे और दोस्ती में छिपा प्रेम! हमारी मिट्टी के टुकड़े क्यों हुए, किसने किये? कमलेश्वर ने इस उपन्यास के ज़रिये सबसे सवाल किये और जवाब तलाशने को सबको छोड़ भी दिया। कमलेश्वर की लेखन शैली का एक और मज़ेदार रंग है और वो है हास्य-व्यंग्य। अपने ग्रेजुएशन के ज़माने में मैंने उनकी एक कहानी पढ़ी थी, ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ यकीन मानिए इस कहानी को पढ़ते हुए मैं बार-बार मुस्कुराती रही थी।
कमलेश्वर ने अपने जीवनकाल में 99 फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी, हालांकि वो सौ फिल्में करना चाहते थे लेकिन सेहत ने साथ नहीं दिया। । आंधी, अमानुष, मिस्टर नटवरलाल उनकी लिखी कुछ सफ़ल फिल्मों में हैं। दूरदर्शन को उन्होंने एक नई उंचाई दी। चंद्रकांता के अलावा युग और बेताल-पच्चीसी घर-घर देखे जाने वाले धारावाहिक थे।
कमलेश्वर ताउम्र लिखते रहे, कभी थके नहीं, रुके नहीं. साल 2007 में वो इस दुनिया को अलविदा कह दूसरे सफ़र पर निकल गये पर उनके इस सफ़र की कतरनें जोड़ने वाले जोड़ ही लेते हैं जैसे अब भी हम और आप साथ-साथ जोड़ रहे हैं। इन जैसे कथाकारों से ही महफ़िल गुलज़ार है और हमेशा रहेगी।
- इसे लिखा है गाँव कनेक्शन की साथी राखी सिन्हा ने, जो खुद भी लेखिका हैं, तमाम कहानियां और समाचार पत्रों के लिए लेख लिखती हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।
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