क़िस्सा मुख़्तसर: “मैं रात को एक बजे अमृता के सामने चाय रख देता था, और ये सिलसिला चालीस साल तक चला”
Jamshed Qamar 8 Oct 2016 1:54 PM GMT

दुनिया में हर आशिक़ की तमन्ना होती है कि वो अपने इश्क़ का इज़हार करें लेकिन अमृता और इमरोज़ इस मामले में अनूठे थे। उन्होंने कभी भी एक दूसरे से नहीं कहा कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं।
इमरोज कहते हैं, ''जब प्यार है तो बोलने की क्या ज़रूरत है...रवायत ये है कि आदमी-औरत एक ही कमरे में रहते हैं. हम पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहते रहे। वो रात के समय लिखती थीं। जब ना कोई आवाज़ होती हो ना टेलीफ़ोन की घंटी बजती हो और ना कोई आता-जाता हो, उस समय मैं सो रहा होता था. उनको लिखते समय चाय चाहिए होती थी। वो ख़ुद तो उठकर चाय बनाने जा नहीं सकती थीं इसलिए मैंने रात के एक बजे उठना शुरू कर दिया. मैं चाय बनाता और चुपचाप उनके आगे रख आता। वो लिखने में इतनी खोई हुई होती थीं कि मेरी तरफ़ देखती भी नहीं थीं। ये सिलसिला चालीस-पचास सालों तक चला।"
इमरोज़ और अमृता की नज़दीकी दोस्त और 'अमृता एंड इमरोज़- ए लव स्टोरी' लिखने वाली उमा त्रिलोक ने किताब में लिखा है कि इस सवाल के जवाब में अमृता कहती थी, "कमरों से एक दूसरे की खुश्बू तो आती ही है"
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