#PoetryProject की नई पेशकश, नीलेश मिसरा की आवाज़ में सुनिए Shikha Sinha की कविताएँ
गाँव कनेक्शन 12 Oct 2016 1:37 PM GMT

1 - पन्ना
मैं पन्ना हूँ
'पन्ना ', नहीं, किसी की आँख का नूर नहीं
'पन्ना' जो हर रोज़ पलटता है
एक कोरा पन्ना
जिसपर कोई कुछ भी लिख गया
हर रोज़ ... कुछ नया
कभी प्यार
कभी यातना
कभी इतिहास
कभी कितनी ही अनलिखी कहानियाँ
और लिख डाली मेरी जीवनी
अपनी कलम से
और फिर मेरी ही 'लौ' से
जल गए वो सारे पन्ने
राख को अब माथे पर मढ़े
देखा जब आईना सोचती हूँ
खुद ही संभाली होती कलम तो
इन सूनी आँखों में एक काजल की कमी पूरी हो जाती।
2 - लालिमा
तुम्हारे संग एक अध्याय समाम्प्त हुआ
छोटे से जीवन में अध्याय और भी हैं
रचना है उन्हें
लिखना है अब नीला, हरा, पीला, गेरुआ, गुलाबी और काला
जीवन संध्या में लाल वस्त्र पहन
बैठ किसी पहाड़ के टीले
मेहं बरस रहा हो नयन से
धूप खिली हो हृदय में
दिखेगा एक सतरंगी
और लौट जाएगी लाल किरण मुझे छू कर तुम तक
हो जाउंगी मैं तब कामुकता से मुक्त
लाल रंग तुम्हे लौटा कर
बाकी के सब रंग पी जाउंगी
रख लूंगी आँखों में बस तेरे नाम की एक लालिमा
3 - एक मिसरा कहीं अटक गया है
दरमियान मेरी ग़ज़ल के
जो बहती है तुम तक
जाने कितने ख्याल टकराते हैं उससे
और लौट आते हैं एक तूफ़ान बनकर
कई बार सोचा निकाल ही दूं उसे
तेरे मेरे बीच ये रुकाव क्यूँ?
फिर से बहूँ तुझ तक बिना रुके
पर ये भी तो सच है
की मिसरे पूरे न हों तो
ग़ज़ल मुक्कम्मल नहीं होती...
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