शायर मखदूम मोहिउद्दीन के जन्मदिन पर पढ़िए उनकी पांच नज़्म

Anusha MishraAnusha Mishra   4 Feb 2019 5:02 AM GMT

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शायर मखदूम मोहिउद्दीन के जन्मदिन पर पढ़िए उनकी पांच नज़्ममखदूम मोहिउद्दीन

मखदूम मोहिउद्दीन या अबू सईद मोहम्मद मखदूम मोहिउद्दीन हुजरी भारत से उर्दू के एक शायर और मार्क्सवादी राजनीतिक कार्यकर्ता थे। वे एक प्रतिष्ठित क्रांतिकारी उर्दू कवि थे। 4 फ़रवरी 1908 को उनका जन्म हुआ था। आज उनके जन्मदिन पर पढ़िए उनकी कुछ नज़्म...

1. ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए

ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए

जिलों (1) में चाँदनी रातों का एहतमाम लिए

चटक रही है किसी याद की कली दिल में

नज़र में रक़्स-ए बहाराँ की सुबहो शाम लिए

हुजूमे बादा-ओ-गुल (2) में हुजूमे याराँ में

किसी निगाह ने झुक कर मेरे सलाम लिए

किसी क़्याल की ख़ुशबू किसी बदन की महक

दर-ए-कफ़स पे खड़ी है सबा पयाम लिए

महक-महक के जगाती रही नसीम-ए-सहर (3)

लबों पे यारे मसीहा नफ़स का नाम लिए

बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई

उठा हूँ, आँखों में इक ख़्वाब-ए नातमाम (4) लिए

1. परछाईं, आभा 2. मदिरा और फूलों के समूह, 3. सुबह की ख़ुशबू, 4. अधूरा स्वप्न

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2. बरसात

इन मस्त हवाओं का ये बरसात का मौसम

तन्हाई में बेयार गुजर जाए, सितम है ।

शग़ले-मय(1)-ओ-महबूब का रंगीन ज़माना

कालिज की खुराफ़ात में कट जाए, सितम है ।

आग़ाज़े-जवानी(2) के गुनाहों का तक़द्दुस(3)

और दफ़्तरे-बेमाना(4) मे दब जाए, सितम है ।

जिस पैकरे(5)-लज़्ज़त (6) से इबारत (7) है मसर्रत (8)

वो हमदमे (9) -देरीना (10) बिछुड़ जाए, सितम है ।

नौ ख़ास्ता[11] महबूब का मुँह चूमने वाले

इस रुत में ये बे बाल-ओ-परी[12], हाय सितम है ।

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3. फिर छिड़ी रात बात फूलों की

फिर छिड़ी रात बात फूलों की

रात है या बारात फूलों की ।

फूल के हार, फूल के गजरे

शाम फूलों की रात फूलों की ।

आपका साथ, साथ फूलों का

आपकी बात, बात फूलों की ।

नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं

मिल रही है हयात फूलों की ।

कौन देता है जान फूलों पर

कौन करता है बात फूलों की ।

वो शराफ़त तो दिल के साथ गई

लुट गई कायनात फूलों की ।

अब किसे है दमाग़े तोहमते इश्क़

कौन सुनता है बात फूलों की ।

मेरे दिल में सरूर-ए-सुबह बहार

तेरी आँखों में रात फूलों की ।

फूल खिलते रहेंगे दुनिया में

रोज़ निकलेगी बात फूलों की ।

ये महकती हुई ग़ज़ल 'मख़दूम'

जैसे सहरा में रात फूलों की ।

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4. ये जंग है जंगे आज़ादी

ये जंग है जंगे आज़ादी

आज़ादी के परचम के तले ।

हम हिन्द के रहने वालों की, महकूमों (1) की मजबूरों की

आज़ादी के मतवालों की दहक़ानों(2) की मज़दूरों की

ये जंग है जंगे आज़ादी

आज़ादी के परचम के तले ।

सारा संसार हमारा है, पूरब पच्छिम उत्तर दक्कन

हम अफ़रंगी हम अमरीकी हम चीनी जांबाज़ाने वतन

हम सुर्ख़ सिपाही जुल्म शिकन,(3) आहनपैकर (4) फ़ौलादबदन (5) ।

ये जंग है जंगे आज़ादी

आज़ादी के परचम के तले ।

वो जंग ही क्या वो अमन ही क्या दुश्मन जिसमें ताराज न हो

वो दुनिया दुनिया क्या होगी जिस दुनिया में स्वराज न हो

वो आज़ादी आज़ादी क्या मज़दूर का जिसमें राज न हो ।

ये जंग है जंगे आज़ादी

आज़ादी के परचम के तले ।

लो सुर्ख़ सवेरा आता है, आज़ादी का आज़ादी का

गुलनार तराना गाता है, आज़ादी का आज़ादी का

देखो परचम लहराता है, आज़ादी का आज़ादी का ।

ये जंग है जंगे आज़ादी

आज़ादी के परचम के तले ।

1. दास , 2. किसान, 3. जुल्मों के ख़िलाफ़ लड़ने वाले, 4. लोहे के शरीर वाले, 5. इस्पाती शरीर वाले

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5. साज़ आहिस्ता ज़रा गरदिशे जाम आहिस्ता

साज़ आहिस्ता ज़रा गरदिशे जाम आहिस्ता

जाने क्या आये निगाहों का पयाम आहिस्ता ।

चाँद उतरा के उतर आए सितारे दिल में

ख़्वाब में होठों पे आया तेरा नाम आहिस्ता ।

कू-ए जानाँ(1) में क़दम पड़ते हैं हल्के-हल्के

आशियाने की तरफ़ तायर-ए बाम(2) आहिस्ता ।

उनके पहलू के महकते हुए शादाँ झोंके(3)

यूँ चले जैसे शराबी का ख़राम(4) आहिस्ता ।

और भी बैठे हैं ऐ दिल ज़रा आहिस्ता धड़क

बज़्म है पहलू-ब-पहलू है कलाम(5) आहिस्ता ।

ये तमन्ना है के उड़ती हुई मंज़िल का ग़ुबार

सुबह के पर्दे में या आ अई शाम आहिस्ता ।

1. प्रेमिका की गली, 2. मुंडेर का पक्षी, 3. सुख पहुँचाने वाले हवा के झोंके, 4. चाल, 5. छंद, काव्य

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