कविता : अमृता तो मुबारक रहेगी......
गाँव कनेक्शन 30 Sep 2019 6:11 AM GMT
.. सुनो अमृता
किस मिट्टी की बनी थीं तुम...
कि उम्र भर उस नाम को भी रुसवा ना होने दिया...
सोलह बरस की कच्ची उम्र में जो नाम
तुमसे पूछे बिना
तुम्हारी पहचान पे चस्पा हो गया ...
प्रीतम, ये सिर्फ एक नाम तो नहीं था ........
किस मिट्टी की बनी थी तुम
कि मोहब्बत के लिए
समाज से सौगात में मिले सारे नाते
खूंटी पर टांग दिए थे तुमने
और सिगरेट के टुकड़े ओंठो से लगाए थे...
कि आइंदा उन टुकड़ों का
धुआं सांसों में साहिर बनके घुलता रहे...
किस मिट्टी की बनी थीं तुम
कि पकती उम्र वाले दिनों में भी
बेसाख्ता कह दिया था तुमने....
अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले आखिर .....
कि उस रोज जिस्म छोड़ के ये इश्क...,
इमरोज हुआ था....
इश्क किया नहीं.....
तुमने,
इश्क हर्फ हर्फ जीया था....
साल की गिरहें टूट भी जाएं
छूट भी जाएं...
अमृता तो मुबारक रहेगी......
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