वो कॉमरेड जिसने कहा, “चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है”
Jamshed Qamar 3 Jan 2017 5:53 AM GMT

चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है।
हमको अबतक आशिक़ी का वो ज़माना याद है।।
‘निकाह’ फिल्म की ये ग़ज़ल किसे पसंद नहीं होगी। ये वो ग़ज़ल है जिसे जब भी गुनगुनाया गया ग़ुलाम अली याद आए लेकिन अजीब बात है कि वो शख्स कम ही याद आया जिसने इसे काग़ज़ पर उतारा। इस गज़ल को कहा था जनाब हसरत मोहानी साहब ने। हसरत मोहानी को कॉमरेड हसरत मोहानी भी कहते हैं। एक ही ज़िंदगी में कई ज़िंदगी जीने वाले हसरत मोहानी साहब के बारे में, आइये कुछ जानते हैं।
कौन थे हसरत मोहानी
हसरत मोहानी का नाम सय्यद फ़ज़ल-उल-हसन और ‘तख़ल्लुस’ (शायरों का उपनाम) ‘हसरत’ था। वह उन्नाव के क़स्बा मोहान में एक जनवरी 1875 को पैदा हुए। आपके वालिद का नाम सय्यद अज़हर हुसैन था। हसरत मोहानी ने शुरुआती तालीम घर पर ही हासिल की और 1903 में अलीगढ़ से बीए किया। शुरू ही से उन्हें शायरी का ज़ौक़ था और अपना कलाम तसनीम लखनवी को दिखाने लगे। 1903 में अलीगढ़ से एक रिसाला ‘उर्दू ए मुअल्ला’ जारी किया। इस सब के बीच वो लगातार स्वदेशी मूवमेंट में भी हिस्सा लेते रहे। 1907 में एक मज़मून प्रकाशित करने पर वह जेल भेज दिए गए लेकिन इसके बावजूद वो आज़ादी की जंग में शरीक हुए। ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ का नारा हसरत साहब ने ही दिया था। साल 1947 तक वो कई बार क़ैद और रिहा हुए। हसरत साहब कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के भी संस्थापक सदस्य थे। कम्युनिस्ट पार्टी के देश में हुए पहले अधिवेशन का अध्यक्ष रहे इसलिए उन्हें कॉमरेड हसरत मोहानी भी कहा जाता है। हसरत साहब का इंतकाल 13 मई 1951 को लखनऊ में हुआ था और यहीं उनको सुपर्द ए ख़ाक भी किया गया।
हसरत मोहानी साहब की सालगिरह के मौके पर गांव कनेक्शन ‘महफ़िल’ के साथी हफ़ीज़ किदवई लखनऊ में बनी उनकी मज़ार पर पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि दी। हम हफीज़ क़िदवई की फेसबुक पोस्ट को यहां लगा रहे हैं।
न सिर्फ जंग ए आज़ादी की लड़ाई के एक सिपाही के तौर पर बल्कि एक मशहूर शायर के तौर पर भी हसरत मोहानी को याद किया जाता है। एक दौर था जब उनकी शायरी की जितने कद्रदान हिंदुस्तान में थे उतने ही पाकिस्तान में भी। पाकिस्तान सरकार ने उनकी इज़्ज़त अफ़ज़ाई के तौर पर वहां डाक टिकट भी जारी किये थे।
चलते-चलते आइये सुनते है मशहूर गायक ग़ुलाम अली की आवाज़ में जनाब हसरत मोहानी की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल ‘शेवा ए इश्क़ नहीं हुस्न को रुस्वा करना’
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