पढ़िए हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' सहित उनकी कुछ ख़ास कविताएं

Anusha MishraAnusha Mishra   27 Nov 2018 5:45 AM GMT

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पढ़िए हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला सहित उनकी कुछ ख़ास कविताएंहरिवंश राय बच्चन

हरिवंश राय बच्चन किसी ख़ास परिचय के मोहताज नहीं हैं। वो हरिवंश राय बच्चन जिनकी कविताओं को आपने अपने स्कूल के दिनों में यकीनन पढ़ा होगा। वो हरिवंश राय बच्चन जिनका काव्य संग्रह 'मधुशाला' गुनगुनाकर न जाने कितने लोग बड़े हुए होंगे। वैसे तो 'मधुशाला' मशहूर शायर उमर खैय्याम की 'रूबाईयों' से प्रेरित थी लेकिन इसे कहीं ज़्यादा प्रसिद्धि मिली। अंग्रेजी सहित कई भारतीय भाषाओं में इस काव्य का अनुवाद हुआ। पढ़िए उनकी कुछ कविताएं....

1. मधुशाला (भाग 1)

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,

प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,

पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,

सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,

एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,

जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,

आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,

अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,

मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,

एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,

कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,

कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!

पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,

भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,

उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,

अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,

'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,

अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -

'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!

'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,

हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,

किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।

मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,

हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,

ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,

और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,

अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,

बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,

रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।

सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,

सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,

बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,

चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।

जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,

वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,

डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,

मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।

मेहंदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,

अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,

पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,

इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।

हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,

अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,

बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,

पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।

लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,

फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,

दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,

पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।

जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,

जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,

ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,

जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।

बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,

देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,

'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'

ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,

मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,

पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,

कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,

हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,

हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,

व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।

बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,

रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'

'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'

मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।

बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,

बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,

लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,

रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।

बेटे अमिताभ बच्चन के साथ हरिवंश राय बच्चन

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2 . शहीद की माँ

इसी घर से

एक दिन

शहीद का जनाज़ा निकला था,

तिरंगे में लिपटा,

हज़ारों की भीड़ में।

काँधा देने की होड़ में

सैकड़ो के कुर्ते फटे थे,

पुट्ठे छिले थे।

भारत माता की जय,

इंकलाब ज़िन्दाबाद,

अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद

के नारों में शहीद की माँ का रोदन

डूब गया था।

उसके आँसुओ की लड़ी

फूल, खील, बताशों की झडी में

छिप गई थी,

जनता चिल्लाई थी-

तेरा नाम सोने के अक्षरों में लिखा जाएगा।

गली किसी गर्व से

दिप गई थी।

इसी घर से

तीस बरस बाद

शहीद की माँ का जनाजा निकला है,

तिरंगे में लिपटा नहीं,

(क्योंकि वह ख़ास-ख़ास

लोगों के लिये विहित है)

केवल चार काँधों पर

राम नाम सत्य है

गोपाल नाम सत्य है

के पुराने नारों पर;

चर्चा है, बुढिया बे-सहारा थी,

जीवन के कष्टों से मुक्त हुई,

गली किसी राहत से

छुई छुई।

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3 .क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,

पलक संपुटों में मदिरा भर

तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

'यह अधिकार कहाँ से लाया?'

और न कुछ मैं कहने पाया -

मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

वह क्षण अमर हुआ जीवन में,

आज राग जो उठता मन में -

यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

पत्नी तेजी बच्चन और बेटे अमिताभ बच्चन के साथ हरिवंश राय बच्च्न

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4. टूटा हुआ इंसान

(मुक्तिबोध का शव देखने की स्मृति)*

...और उसकी चेतना जब जगी

मौजों के थपेड़े लग रहे थे,

आर-पार-विहीन पारावार में

वह आ पड़ा था,

किंतु वह दिल का कड़ा था।

फाड़ कर जबड़े हड़पने को

तरंगो पर तरंगे उठ रही थीं,

फेन मुख पर मार कर अंधा बनातीं,

बधिर कर, दिगविदारी

क्रूर ध्वनियों में ठठाती

और जग की कृपा, करुण सहायता-संवेदना से दूर

चारो ओर के उत्पात की लेती चुनौती

धड़कती थी एक छाती।

और दोनों हाँथ

छाती से सटाये हुए थे

कुछ बिम्ब, कुछ प्रतिबिम्ब, कुछ रूपक अनोखे

शब्द कुछ, कुछ लयें नव जन्मी, अनूठी-

ध्वस्त जब नौका हुई थी

वह इन्ही को बचा लाया था

समझ अनमोल थाती!

और जब प्लावन-प्रलय का सामना हो

कौन संबल कौन साथी!

इन तरंगों, लहर, भँवरो के समर में

टूटना ही, डूबना ही था उसे

वह टूट कर डूबा, मगर

कुछ बिम्ब, कुछ प्रतिबिम्ब, कुछ रूपक अनोखे

आज भी उतरा रहे हैं

और उसके साहसी अभियान की

सहसा उठे तूफान की

टूटे हुए जलयान की

जल और नभ में ठने रन घमासान में

टूटे हुए इंसान की

गाथा सुनाते जा रहे हैं।

(मुक्तिबोध की मृत्यु का समाचार सुबह पत्र में पढ़ कर मैं अस्पताल पहुँचा। एक कर्मचारी नें एक कमरे का ताला खोल कर मुझे उनकी लाश दिखायी जो वहाँ अकेली एक नीली चादर में लिपटी पड़ी थी। कमरे से बाहर निकलते हुए मेरी दृष्टि दरवाजे पर गई, उस पर लिखा था - 'ट्वायलेट' - हरिवंश राय बच्चन।)

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5. मरता हुआ गुलाब

गुलाब

तू बदरंग हो गया है

बदरूप हो गया है

झुक गया है

तेरा मुंह चुचुक गया है

तू चुक गया है ।

ऐसा तुझे देख कर

मेरा मन डरता है

फूल इतना डरावाना हो कर मरता है!

खुशनुमा गुलदस्ते में

सजे हुए कमरे में

तू जब

ऋतु-राज राजदूत बन आया था

कितना मन भाया था-

रंग-रूप, रस-गंध टटका

क्षण भर को

पंखुरी की परतो में

जैसे हो अमरत्व अटका!

कृत्रिमता देती है कितना बडा झटका!

तू आसमान के नीचे सोता

तो ओस से मुंह धोता

हवा के झोंके से झरता

पंखुरी पंखुरी बिखरता

धरती पर संवरता

प्रकृति में भी है सुंदरता

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