नक्सली हमलों की वजह क्या है?
Jamshed Qamar 25 April 2017 12:24 AM GMT

छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए नक्सली हमले में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल की 74वीं बटालियन के 25 जवान शहीद हो गए और 6 घायल हुए हैं। इसके अलावा 8 जवान अबतक लापता हैं, माना जा रहा है कि नक्सली उन्हें बंधक बना कर ले गए हैं। हमला दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर हुआ। राजनीतिक गलियारों से मामले की कड़ी निंदा की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया कि सीआरपीएफ जवानों की बहादुरी पर हमें गर्व है
लेकिन इस हमले के बाद कुछ ऐसे सवाल भी हैं जिन्हें लंबे वक्त से नज़र अंदाज़ किया जा रहा है। क्या नक्सलियों से निपटने की जो नीति राज्य और केंद्र सरकार अपना रही है वो काफी है? आखिर कहां चूक हो रही है जो इस तरह के हमले आए दिन सामने आ जाते हैं। आइये जानते हैं कि वो कौन सी पांच वजहें हैं जिन के चलते नक्सली हमलों पर कुछ हद तक लगाम लगाई जा सकती है।
1. स्थानीय लोगों को साथ लेने की ज़रूरत
नक्सली हमलों में जिस तरह पुलिस और केंद्रीय बल को निपटना चाहिए उस तरह की कोशिश होती नहीं दिख रही है। नक्सली हमला जब भी होता है तो पूर्व सुनियोजित तरीके से होता है। हमलावरों को पता होता है कि किस वक्त हमला करने से सबसे ज़्यादा नुकसान होगा, ऐसे में ज़रूरी है कि पुलिस और सीआरपीएफ स्थानीय लोगों को अपने साथ ले ताकि ऐसे ऑपरेशंस में सूचना तंत्र और बेहतरी से काम कर सके। ताज़ा हमले के बाद सीआरपीएफ के एक घायल जवान ने मीडिया से कहा कि "नक्सलियों ने पहले गांव वालों को हमारी लोकेशन का पता लगाने के लिए भेजा, मैंने कुछ नक्सलियों को देखा भी, वो सब काले कपड़ों में थे" ज़ाहिर है पुलिस और सुरक्षा बलों को लोकल स्तर पर आपसी समझ औऱ बढ़ाने की ज़रूरत है, ताकि रेकी के दौरान ऐसे हमलों की सूचना मिल सके
2. “नक्सलवाद की समस्या पर लगाम लगा ली गई है”
देखा गया है कि सरकारों में इस बात की घोषणा की जल्दबाज़ी रहती है कि नक्सली समस्या को तकरीबन खत्म कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन ने बीते गणतंत्र दिवस पर ये बयान दिया था कि प्रदेश में नक्सली समस्या अब खत्म होने की कगार पर है और बेहतर नीतियों से समस्या पर काबू पा लिया गया है। मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी हाल में एक टीवी चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा था कि विकास कार्यों के चलते नक्सलवाद की समस्या अपने अंतिम दौर में है। दिक्कत ये है कि ऐसी घोषणाओं की जल्दबाज़ी में इस तरह के हमलों की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि तब नक्सलवादी तब अपने होने का सबूत देना चाहते हैं। सुकमा वही जगह है जहां बीते 11 मार्च को भी नक्सली हमला हुआ था जिसमें 12 जवान शहीद हुए थे। इसके अलावा साल 2010 में भी नक्सली हमला हुआ था जिसमें 76 जवान शहीद हुए थे। इतना ही नहीं, पिछले महीने भी दंतेवाड़ा ज़िले में गश्त पर निकले पुलिस बल पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था। हकीकत ये है कि हालात फिलहाल जस के तस बने हुए हैं और राजनीतिक लीपापोती से ज़्यादा उन पर गंभीरता से काम करने की ज़रूरत है।
3. पुलिस और सुरक्षा बल मिलकर लड़ें
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की समस्या से लड़ने की ज़िम्मेदारी सीआरपीएफ और राज्य पुलिस दोनों की है, ऐसे में ज़रूरी है कि दोनों के बीच आपसी तालमेल बेहतर हो। स्थानीय स्तर पर पुलिस के पास सीआरपीएफ के मुकाबले बेहतर सूचना तंत्र है और इसलिए ज़रूरी है कि पुलिस आगे रहे और सीआरपीएफ पुलिस का साथ दे। लेकिन देखा ये गया है कि इस मोर्चे पर सुरक्षा बल पुलिस से आगे हैं, दोनों के बीच इंटेलिजेंस की कोई कड़ी नहीं है। पुलिस अपने स्तर पर काम करती है और सीआरपीएफ अपने स्तर पर। सोमवार को हुए हमले में पुलिस का कोई भी जवान हताहत नहीं हुआ लेकिन सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हुए और 6 घायल हुए। आमतौर पर देखा जाता है कि इस तरह की समस्याओं से निपटने के ऑपरेशंस में पुलिस लड़ाई में आगे होती है और केंद्रीय बल उसको समर्थन देते हैं लेकिन छत्तसीगढ़ में ऐसा नहीं हो रहा।
4. अधिकारियों में भ्रष्टाचार
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नक्सलवाद के खिलाफ हो रही तमाम कोशिशों में से सबसे कारगर कोशिश विकास है। छत्तीसगढ़ के प्रभावित इलाकों में केंद्र सरकार की तरफ से विकास कार्यों के लिए बड़ी रकम भेजी जाती है जिसमें स्कूल, नागरिक सेवाएं, बिजली, पानी और सड़क शामिल हैं लेकिन जिन अधिकारियों पर ये ज़िम्मेदारी है उनके भ्रष्टाचार के चलते आम लोगों तक ये सहूलियतें नहीं पहुंच पाती। कुछ वक्त पहले ही भारत में अब तक के सबसे बड़े पीडीएस यानि पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम का स्कैम छत्तीसगढ़ में सामने आया था। राज्य सरकार की ‘एक रुपये प्रति किलो में चावल’ की योजना में अनाज आम लोगों तक नहीं पहुंचा। माना जा रहा था कि इस मामले में डेढ़ लाख करोड़ का घोटाला हुआ था। फरवरी 2015 में एंटी करप्शन ब्यूरो ने राज्य के 36 बड़े अफसरों के दफ्तर पर छापेमारी की थी। एक सर्वे के मुताबिक, देशभर के गावों को शहर से जोड़ने के लिए शुरु की गई प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में हुए भ्रष्टाचार में छत्तीसगढ़ देश में पांचवे स्थान पर था।
5. राज्य सरकारों की अलग-अलग नीतियां
नक्सलवाद भारत के लिए लंबे समय से चुनौती रही है। ये समस्या सिर्फ छत्तीसगढ़ की नहीं बल्कि देश के 8 राज्यों के 60 ज़िलों की है। इनमें ओडिशा के 5, झारखंड के 14, बिहार के 5, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 10, मध्यप्रदेश के 8, महाराष्ट्र के 2 और बंगाल के 8 ज़िले आते हैं। ज़ाहिर है इस समस्या पर सभी राज्यों को मिलकर एक सख़्त नीति बनाने की ज़रूरत है ताकि व्यापक तरीके से नक्सलवाद के खिलाफ देश की नीति को परिभाषित किया जा सके। जबकि हकीकत ये है कि राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर इस चुनौती से लड़ती हैं। ऐसा कोई तय एक्शन प्लान नहीं है जिसके ज़रिये नक्सलवाद की समस्या का सामना किया जाए। इस मामले में एक समस्या ये भी है कि नक्सलवादी हमलों को अबतक सिर्फ कानून व्यवस्था से जोड़कर देखा जाता है लिहाज़ा इस चुनौती के लिए पूरी तरह से राज्य सरकारों को ही फैसला लेना होता है, केंद्र सरकार मामले में सिर्फ मदद कर सकती है। राज्य में चुनाव के नज़दीक हर सरकार ये दिखाना चाहती है कि नक्सलवाद पर काफी हद तक लगाम लग गई है, इसलिए उसकी नीतियां भी बदलती रहती हैं और ये ही वजह है कि नक्सलवाद के खिलाफ कोई मज़बूत और स्थिर नीति नहीं बन पाती, जिसका नतीजे सुकमा में हुए हमले के तौर पर सामने आते हैं।
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