पत्रकार महात्मा गांधी , जिन्होंने अख़बार के लिए कभी विज्ञापन नहीं लिया 

Jamshed QamarJamshed Qamar   2 Oct 2018 6:55 AM GMT

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पत्रकार महात्मा गांधी , जिन्होंने अख़बार के लिए कभी विज्ञापन नहीं लिया Mahatma Gandhi 

बीसवीं सदी की शुरुआत में, एक दौर था जब गांधी जी को भारत में कोई नहीं जानता था। वो उस वक्त अफ़्रीका में वकालत करते थे। ये वही दौर था जब अफ़ीका में भी अश्वेत लोगों के खिलाफ ज़ुल्म की कहानियां पूरी दुनिया सुन रही थी। गांधी जी ने ऐसे में अपनी वकालत के ज़रिये उन्हे उनका हक़ दिलाने की कोशिश की। इसी प्रक्रिया में एक बार, वहां के एक कोर्ट परिसर में गांधी जी को पगड़ी पहनने से मना कर दिया गया। कहा गया कि उन्हे केस की कार्रवाई बिना पगड़ी के करनी होगी। गांधी जी ने पगड़ी उतार दी, केस लड़ा लेकिन वो इस मुद्दे को आगे ले जाने का मन बना चुके थे।

Gandhi Ji in Turban

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अगले ही दिन गांधी जी ने डरबन के एक स्थानीय संपादक को खत लिखकर इस मामले पर अपना विरोध जताया। विरोध के तौर पर लिखी उनकी चिट्टी को अख़बार में जस का तस प्रकाशित किया गया। ये पहली बार था जब गांधी जी का कोई लेख अख़बार में प्रकाशित हुआ था। इस में उन्होंने लिखा कि किसी भी देश में ऐसा कानून नहीं हो सकता जो किसी की व्यक्तिगत या सांस्कृतिक आज़ादी के खिलाफ हो। इस लेख के बाद पगड़ी पर रोक लगाने वाले कोर्ट के कार्यवाहक को कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी और इसी विरोध की अभिव्यक्ति से शुरु हुआ था गांधी जी की पत्रकारिता का सफ़र।

Gandhi Ji in Africa

वो वक्त था साल 1903 जब गांधी ने अफ्रीका में ही 'इन्डियन ओपिनियन' का प्रकाशन शुरु करवाया। इस अख़बार ने उस दौर के रंगभेद समेत ऐसे कई मुद्दों को प्रकाशित किया जिनपर दूसरे अख़बार बात करने से घबरा रहे थे। गांधी जी के सत्ता से बेख़ौफ अंदाज़ का पता इससे भी चलता है कि उस दौर में उन्होनें इस अख़बार को पांच भारतीय भाषाओं में प्रकाशित किया, संपादक रहते हुए उन्होने कभी भी अख़बार के लिए कोई विज्ञापन नहीं लिया।

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Harijan

संपादकीय पन्ने पर उनके लेख धीरे-घीरे हर तरफ गूंजने लगे और ये वही वक्त था जब गांधी जी एक पत्रकार के तौर पर पूरी तरह स्थापित हो गए थे। गांधी के लिए पत्रकार होना किसी चुनौती से कम नहीं था। सत्ता के विरोध में आवाज़ बुलंद करने पर साल 1906 में अफ्रीकी प्रशासन ने उन्हें जोहान्सवर्ग की जेल में बंद कर दिया। लेकिन जेल में रहने के बावजूद भी गांधी जी ने सच के साथ समझौता नहीं किया, बल्कि जेल से ही अख़बार का संपादन का काम किया। यहीं से शुरु हुआ गांधी जी का पत्रकारिता का सफ़र दूर तक चला। भारत की आज़ादी की लड़ाई के दौरान भी उन्होने अख़बार का इस्तेमाल किया। उन्होने 'हरिजन' नाम से तीन समाचार पत्रों का संपादन किया जिसने भारतीयों को अंग्रेज़ों के खिलाफ एकजुट होने में मदद की।

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