नसीरुद्दीन शाह की सालगिरह पर ख़ास ...

Jamshed SiddiquiJamshed Siddiqui   20 July 2018 5:34 AM GMT

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नसीरुद्दीन शाह की सालगिरह पर ख़ास ...‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ के एक दृश्य में नसीरुद्दीन शाह

गहराई तक दिल में उतर जाने वाली आंखे, चेहरे पर सफेद घुंघराली दाढ़ी, कंधे पर एक अचकन और सर पर ऊंची टोपी पहने एक शख्स छड़ी टेकता हुआ चला जा रहा है। इस शख्स की चाल में एक लड़खड़ाहट है, चेहरे पर कंपकपाहट है.. वो हाज़िर जवाब भी है और मज़ाहिया भी... ये शख्स है उर्दू शायरी की पेशानी पर लिखा हुआ नाम - मिर्ज़ा ग़ालिब। साल 1988 में छोटे पर्दे पर लोगों ने 'मिर्ज़ा ग़ालिब' को देखा तो उन्हें यकीन हो गया कि वो जिसे देख रहे हैं वो कोई अदाकार नहीं, बल्कि मिर्ज़ा ग़ालिब है, ये उस अदाकार की जीत थी, जिसे तमाम ज़मानों तक याद किया गया। उसने लोगों के ज़हन में कभी न मिटने वाली ग़ालिब की वो तस्वीर ज़िंदा कर दी जो आने वाले लंबे वक्त तक ज़िंदा रहेगी। इस अदाकार का नाम है नसीरुद्दीन शाह,
जिनकी आज सालगिरह है।

धारावाहिक 'मिर्ज़ा ग़ालिब' के दृश्य में नसीरुद्दीन शाह

20 जुलाई 1949 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पैदा हुए नसीरुद्दीन शाह ने यूं तो अपने करियर की शुरुआत फिल्म 'निशांत' से की थी, लेकिन छोटे पर्दे पर गुलज़ार के सीरियल 'मिर्ज़ा ग़ालिब' उस मील के पत्थर की तरह है जिसे उन्होंने हर कामयाबी के बाद पलट कर देखा। ये और बात है कि साल 1988 में बने 'मिर्ज़ा ग़ालिब' से पहले वो खुद को 1983 में आई 'जाने भी दो यारों', साल 1986 में आई 'कर्मा' और 1987 में गुलज़ार की ही फिल्म 'इजाज़त' में खुद को साबित कर चुके थे लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब का किरदार करना उनके लिए भी एक चुनौती की तरह था। ग़ालिब को गुज़रे हुए ज़माना हो चुका था, कोई नहीं जानता था कि वो कैसे चलते थे, कैसे उठते थे कैसे बैठते थे.. सिर्फ एक अंदाज़ा था जिसे एक मुकम्मल किरदार की शक्ल देना था। कम लोग जानते हैं कि इस सीरियल के लिए गुलज़ार की पहली पसंद अभिनेता संजीव कुमार थे। यहां तक की उनसे बात भी हो चुकी थी, नसीरुद्दीन शाह को जब पता चला कि गुलज़ार मिर्ज़ा ग़ालिब पर सीरियल बना रहे हैं तो उन्होंने गुलज़ार को खत लिखा और कहा कि उन्हें उनको इस मिर्ज़ा ग़ालिब में कास्ट करना चाहिए।

मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फिल्म में आपको मुझे लेना चाहिए
नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह और गुलज़ार

ये किरदार शायद उनके दिल के बहुत करीब था लेकिन गुलज़ार को लगता था कि संजीव कुमार इस रोल को बेहतर कर पाएंगे। लेकिन होने को कुछ और ही मंज़ूर था। संजीव कपूर को उन्हीं दिनों दिल का दौरा पड़ गया, उनकी सेहत गिरने लगी और शूटिंग मुश्किल हो गई। अब गुलज़ार को लगा कि अमिताभ बच्चन इस रोल के साथ इंसाफ कर पाएंगे लेकिन वहां भी बात नहीं बना। गुज़ार बताते हैं कि इस वजह से 'मिर्ज़ा ग़ालिब' को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था और एक लंबे वक्त तक उस बारे में दोबारा कोई बात नहीं हुई। फिर एक रोज़ उन्हें जाने क्यों ये ख्याल आया कि नसीरुद्दीन शाह, वाकई इस रोल के साथ इंसाफ कर पाएंगे।

एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे, मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया वही 'मिर्ज़ा ग़ालिब', मैंने फौरन हां कह दिया
नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह ने किरदार के साथ पूरी तरह इंसाफ किया, लोगों ने जब छोटे पर्दे पर नसीरुद्दीन शाह को 'मिर्ज़ा ग़ालिब' के तौर पर देखा तो उन्हें इस बात का यकीन हो गया कि वो 'ग़ालिब' को ही देख रहे हैं। लहजा ऐसा कि ज़ुबान पर मज़बूत पकड़, चेहरे के तास्सुरात ऐसे कि हर लफ्ज़ जैसे किसी समुंदर की गहराई रखता हो, आंखों में इतने रंग की पहचान पाना मुश्किल था कि जिसे देख रहे हैं वो किरदार है या असल मिर्ज़ा ग़ालिब। नसीरुद्दीन शाह ने जो अदाकारी उस सीरियल में की, उसने किताबों में एक लंबे अर्से से बंद मिर्ज़ा ग़ालिब और उनकी शायरी को फिर से ज़िंदा कर दिया था। जिसने सोहराब मोदी की 'मिर्ज़ा ग़ालिब' के मिर्ज़ा भारत भूषण को नहीं देखा है, वो नसीर को देख कर यही कहेगा कि मिर्ज़ा ग़ालिब ऐसे ही रहे होंगे।

नसीर का फ़िल्मी सफर घटनाओं से भरा हुआ है। जब वो एफटीआईआई में थे तो उनके एक क्लासमेट राजेंद्र जसपाल ने उन्हें ईर्ष्यावश चाकू मार दिया। हेमा मालिनी की पहली फिल्म 'सपनों का सौदागर' में नसीर का भी एक छोटा सा किरदार था। मगर ऐन रिलीज़ से पहले उनका किरदार काट दिया गया। फिरोजखान ने 'प्रेम अगन' में बेटे फरदीन के पिता के रोल के लिए नसीर को लेना चाहा था। लेकिन इसलिए मना कर दिया क्योंकि रोल का चित्रण उनके कद से छोटा था। फ़िरोज़ ने बहुत तारीफ़ की थी नसीर की। जब कामयाबी सर पर चढ़ती है तो जाने-अनजाने हंगामा खड़े करने वाले बयान मुंह से निकल ही जाते हैं। एक इंटरव्यू में नसीर ने कह दिया कि वो दिलीप कुमार को बड़ा आर्टिस्ट नहीं मानते।

नसीरुद्दीन शाह

नकारात्‍मक भूमिकाओं में भी छोड़ी पहचान बेजोड़ एक्टिंग और गजब की रेंज से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी एक खास छाप छोड़ी नेगेटिव रोल्स में. पैरेलल सिनेमा का ये बड़ा हीरो कमर्शियल फिल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा। हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने. वैसे विलेन के तौर पर ये उनकी एक दो फिल्में नहीं था। 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी. लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी।नसीर का पहला प्‍यार है पैरेलल सिनेमा नसीर की असली पहचान पैरेलल सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। पैरेलल सिनेमा के इस सबसे बड़े सितारे ने स्मिता पाटील, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी सरीखे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फिल्मों को एक नई पहचान दी. 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फिल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' सरीखी फिल्मों में अभिनय का नई मिसाल पेश कर दी। किरदारों के साथ दोस्ती कर लेने वाले नसीरुद्दीन शाह जब पर्दे पर उतरते हैं तो कैरेक्टर ही एक्टर हो जाता है और नसीर सिर्फ वो करते हैं जो उस सिचुएशन में कैरेक्टर करता। नसीरुद्दीन शाह को उनकी सालगिरह के मौके पर उनके तमाम चाहने वालों की तरफ से मुबारकबाद। उम्मीद करते हैं कि आने वाले वक्त में भी वो इसी तरह अपने करोड़ों फैंस का दिल जीतते रहेंगे।

नसीरुद्दीन शाह साहब को सालगिरह की बहुत मुबारकबाद

       

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