संगीतकार अनिल बिस्वास ने क्यों तलत महमूद से ही पूछा था, ‘मेरा तलत कहां है?’ 

Shivendra Kumar SinghShivendra Kumar Singh   20 Jun 2017 1:39 PM GMT

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संगीतकार अनिल बिस्वास ने क्यों तलत महमूद से ही पूछा था, ‘मेरा तलत कहां है?’ लखनऊ से ताल्लुक रखते थे हरदिल अजीज़ गायक तलत महमूद

आपने ऐसे कुछ किस्से जरूर सुने होंगे जब किसी कलाकार को उसके किसी खास अंदाज के लिए पहले नकार दिया गया हो और बाद में उसी वजह से उसे पहचान मिली हो। ऐसी ही कहानी लखनऊ के भी एक कलाकार की है। उस कलाकार की आवाज में एक किस्म की लरज थी। एक किस्म का कंपन था।

ऊपरवाले ने उस कलाकार की आवाज में ये अंदाज बचपन से ही दिया था। ये अलग बात है कि बचपन में जब उसने गाने की इच्छा जाहिर की तो उसे परिवार में किसी से कोई बढ़ावा नहीं मिला। खैर, बढ़ावा मिले ना मिले उस कलाकार की नसों में संगीत था लिहाजा उसने भी ठान ली कि वो गायक ही बनेगा।

कुछ वक्त बाद गायकी की शुरुआत भी हो गई। थोड़े बहुत मौके मिलने लगे। छोटे-बड़े मंचों पर गायकी की शुरुआत हो गई लेकिन एक रोज उस कलाकार को लगा कि उसकी आवाज की लरज उसकी कामयाबी का रास्ता रोक रही है। उसने अपनी आवाज को बदलकर गाना शुरू किया। अभी ये कोशिश आदत में बदलती उससे पहले ही महान संगीतकार अनिल बिस्वास ने उस गायक को एक रिकॉर्डिंग के लिए बुलाया।

अपनी स्वाभाविक आवाज को बदलकर जब तलत महमूद ने रिकॉर्डिंग शुरू की तो अनिल बिस्वास ने पूछा, ‘मेरा तलत कहां है। ऐसे सवाल को सुनकर तलत महमूद अवाक रह गए। उन्होंने बड़े संकोच और अदब से कहा कि मैं ही तलत हूं।’ अनिल बिस्वास बोले, ‘नहीं, तुम मेरे तलत नहीं हो सकते।

जाहिर है जैसे ही अनिल बिस्वास ने कलाकार की आवाज में फर्क महसूस किया वो रिकॉर्डिंग रोक कर पहुंचे, और सीधा सवाल किया- तलत, तुम्हारी आवाज की वो लरज कहां गई? इस सवाल के जवाब में उस गायक की आंखों में आंसू आ गए। उनसे कहते नहीं बना कि वो अपनी आवाज की उस लरज को त्यागने को तैयार बैठे थे, उन्होंने वापस उसी पुराने अंदाज में गाना गाया। इसके बाद तो बाकी बातें इतिहास हैं।

अनिल बिस्वास और लता मंगेशकर के साथ तलत महमूद

अब आप समझ ही गए होंगे कि आज किस्सागोई में बात तलत महमूद साहब की करेंगे। दरअसल पूरा किस्सा कुछ यूं था कि अपनी स्वाभाविक आवाज को बदलकर जब तलत महमूद ने रिकॉर्डिंग शुरू की तो अनिल बिस्वास ने पूछा, ‘मेरा तलत कहां है। ऐसे सवाल को सुनकर तलत महमूद अवाक रह गए। उन्होंने बड़े संकोच और अदब से कहा कि मैं ही तलत हूं।’ अनिल बिस्वास बोले, ‘नहीं, तुम मेरे तलत नहीं हो सकते।

उस तलत की आवाज में तो एक लरज थी। तुम कोई और ही हो। जाओ, उसे ढूंढ कर लाओ” तलत साहब की आंखों में आंसू आ गए। वो समझ गए कि अनिल बिस्वास क्या कहना चाह रहे हैं। रिकॉर्डिंग फिर से शुरू हुई। इस बार तलत की आवाज में वही लरज थी, जो बाद में उनकी पहचान बन गई। अनिल बिस्वास कोई छोटे-मोटे संगीत निर्देशक नहीं थे, उन्होंने तब तक करीब 50 फिल्मों का संगीत तैयार किया था। उनकी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत इज्जत थी। अपने उसी अनुभव के दम पर तलत महमूद को आइना दिखाने का काम उन्होंने बखूबी किया।

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तलत महमूद का जन्म 24 फरवरी 1924 को हुआ था। परिवार रूढ़िवादी था लिहाजा गाने बजाने को बहुत इज्जत की निगाहों से नहीं देखा जाता था। वो तो जब तलत ने ठान लिया कि वो संगीत की दुनिया का ही हिस्सा बनेंगे तब कहीं जाकर उन्हें ऐसा करने की छूट मिली। कुछ साल बाद उनके परिवार को भी समझ आ गया कि तलत को रोकना ठीक नहीं है। 16 साल की उम्र थी, जब तलत महमूद ने लखनऊ आकाशवाणी के लिए ग़ज़लें गाना शुरू कर दिया।

उन दिनों तलत गालिब, दाग, मीर और जिगर जैसे बड़े शायरों के कलाम गाया करते थे। संगीत की दुनिया की जानी-मानी कंपनी एचएमवी को तलत महमूद में एक बड़ा कलाकार दिख गया था। अगले ही साल यानी 1941 में एचएमवी ने तलत महमूद को उनकी पहली डिस्क के तैयार कर लिया। इसके बाद अगले 7-8 साल तक तलत महमूद फिल्मी और गैर फिल्मी गाने गाते रहे।

मीना कपूर व गीता दत्त के साथ तलत महमूद

वो 1950 का साल था। जानी मानी लेखिका इस्मत चुगताई की लिखी कहानी पर फिल्म बन रही थी-आरजू। हितेन चौधरी फिल्म के प्रोड्यूसर थे, शाहिद लतीफ डायरेक्टर और अनिल बिस्वास म्यूजिक डायरेक्टर। इस फिल्म में दिलीप कुमार पर एक गाना फिल्माया गया था- ‘ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल।’ मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे इन गाने को तलत महमूद ने गाया था। इस गाने की रिलीज के आस-पास ही तलत महमूद संगीतकारों के चहेते ‘प्लेबैक सिंगर’ बन गए थे। ‘ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहां कोई न हो’ के अलावा ‘हमसे आया न गया उनसे बुलाया न गया’, ‘जाएं तो जाएं कहां’, ‘दिले नादां तुझे हुआ क्या है’, ‘सीने में सुलगते हैं अरमां’, ‘शाम ए गम की कसम’, ‘जलते हैं जिसके लिए’, ‘फिर वही शाम वही गम’, ‘रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिए’ जैसे सुपरहिट गाने तलत महमूद ने गाए।

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1970-80 का दशक था जब तलत महमूद की आवाज का जादू हर तरफ सुनाई दे रहा था। उनकी ग़ज़लों के लोग दीवाने थे। 1979 में उन्हें लंदन के बहुप्रतिष्ठित रॉयल एल्बर्ट हॉल में कार्यक्रम के लिए बुलाया गया। उनकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ चुकी थी कि कार्यक्रम की तय तारीख से दो हफ्ते पहले ही सभी टिकट बिक चुके थे। तलत उस दौर में लता मंगेशकर के बाद दूसरे ऐसे भारतीय गायक थे जिन्हें इतने प्रतिष्ठित हॉल में कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया था।

गुरुदत्त और गीतादत्त की शादी में तलत महमूद

तलत महमूद ने उस कार्यक्रम में श्रोताओं को झूमा दिया। लोगों ने बाकयदा उन्हें ‘स्टैंडिंग ओवेशन’ दिया। ये तलत महमूद की लोकप्रियता ही थी कि शम्मी कपूर जैसे बड़े अभिनेता ने सार्वजनिक तौर पर इस बात को कहाकि उनके गानों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय मोहम्मद रफी से भी पहले तलत महमूद को जाता है।

1982 के वेस्टइंडीज के एक ‘टूर’ का भी जिक्र जमकर होता है जिसमें ऋषि कपूर, नीतू सिंह और माला सिन्हा जैसी फिल्मी हस्तियां गई थीं लेकिन उस ‘टूर’ के पोस्टर पर उन सबसे कहीं ज्यादा बड़ी तस्वीर तलत महमूद साहब की छपी थी, जो उनकी लोकप्रियता को बताती है। शायद इसकी एक वजह ये भी रही होगी कि तलत महमूद ने कुछ फिल्मों में बाकयदा लीड एक्टर रोल भी किया था। करीब एक दर्जन फिल्में ऐसी होंगी जिसमें तलत महमूद ने एक्टिंग की, जिसमें उनके साथ उस दौर की बड़ी अभिनेत्रियों ने काम किया जिसमें सुरैया, माला सिन्हा और नूतन का नाम लिया जा सकता है।

बाद में प्लेबैक सिंगिग पर ध्यान देने के लिए तलत महमूद ने एक्टिंग करना छोड़ दिया। 1992 में तलत महमूद को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए दिया गया। 9 मई 1998 को तलत महमूद ने दुनिया को अलविदा कहा। अगली बार जब आप तलत महमूद को सुनें तो उनकी आवाज की वो लरज, वो कंपन जरूर महसूस कीजिएगा।

       

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