"फैज़ साहब, आप लिखते ख़ूबसूरत हैं, पढ़ते बहुत ख़राब हैं" 

Jamshed QamarJamshed Qamar   8 Sep 2018 6:25 AM GMT

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फ़ैज़ अहमद फैज़ साहब के बारे में एक बात दीगर किताबों और हवालों से आती है कि वो जितना बेहतरीन लिखते थे उतना ही ख़राब पढ़ते थे। बताया जाता है कि अपनी कीमती से कीमती नज़्म और ग़ज़ल को वो यूं पढ़ते थे जैसे अख़बार पढ़ रहे हों। इस बारे में एक वाक्या भी अक्सर मुशायरों में याद किया जाता है।

फैज़ अहमद फैज़ एक मुशायरे में नज़्म पढ़ रहे थे तो उनके एक दोस्त, फैन और साथी शायर ने उनसे कहा फैज़ साहब आप लिखते इतना ख़ूबसूरत हैं, लेकिन पढ़ते इतना ख़राब क्यों हैं, सारा मज़ा खराब हो जाता है। इस पर फैज़ साहब ने जवाब दिया मैं अच्छा लिखूं भी और पढ़ूं भी? सब काम मैं ही करूं, कुछ आप भी कीजिए। पूरे मुशायरे में हसी गूजनें लगी।

फैज़ साहब के पढ़ने के अंदाज़ के बारे में उनके समकालीन शायरों की यही राय थी। बहरहाल, फैज़ साहब की वीडियोज़ बहुत कम हैं, एक वीडियो नीचे लिंक में हम आपके लिए लगा रहे हैं ताकि आप खुद देख-सुन सकें, वो नज़्म जो एक दौर में इतनी मकबूल हुई कि हर ज़बान पर थी, उसे उन्होंने किस लापरवाही के साथ पढ़ा। बहरहाल, शायर का काम लिखना होता है पढ़ना नहीं लेकिन ये बात आजकल के उन शायरों की समझना चाहिए जो मंच पर माइक के सामने खड़े होकर हलकी से हलकी नज़्म को भी चीख-पुकार कर सुनाते हैं। वो कहते हैं ना, बात अच्छी हो तो हल्की लहजे में भी असरदार लगती है। ख़ैर आप सुनिेए फैज़ साहब की नज़्म उन्ही के अंदाज़ में..

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