“भुगतान करें वरना घर ज़ब्त होगा” - सरकारी नोटिस

Jamshed SiddiquiJamshed Siddiqui   8 Feb 2018 5:35 PM GMT

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“भुगतान करें वरना घर ज़ब्त होगा” - सरकारी नोटिसमहादेवी वर्मा नैनीताल में 

दुनिया को तीस साल पहले अलविदा कह चुकी हिंदी साहित्य की मशहूर लेखिका महादेवी वर्मा, इलाहाबाद नगर निगम के लिए ज़िंदा हैं। कम से कम उस नोटिस को देखकर तो ऐसा ही लगता है जो हाउस टैक्स वसूली के लिए बीती चार जनवरी को उनके अशोक नगर वाले मकान पर भेजा गया। निगम द्वारा भेजे गए इस नोटिस में अबतक 28,172 रुपये का बकाया दिखाया गया जिसमें 16,644 रूपये का ब्याज भी शामिल है। इसके अलावा मौजूदा कारोबारी साल के 3234 रुपये के साथ 25 रुपये का शुल्क जोड़कर उन्हें नगर निगम में हाज़िर होने को कहा गया है।

महादेवी वर्मा का नाम हिंदी साहित्य के उन बड़े नामों में अदब के साथ लिया जाता है जिनके बग़ैर साहित्य का छायावाद युग पूरा नहीं कहा जा सकता। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने की वजह से उन्हें आधुनिक ‘मीरा’ के नाम से जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” कहा था लेकिन उनकी मौत के तीन दशकों के बाद नगर निगम की इस चूक ने पूरे प्रशासन और उसके कामकाज के तरीकों पर सवाल उठा दिया है। इस नोटिस से ना सिर्फ साहित्य जगत की हस्तियां बल्कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, जहां से उन्होंने एम.ए. किया था, के शिक्षक भी खासे नाराज़ हैं। अशोक नगर इलाके के लोगों का कहना है कि सभ्यता, संस्कृति और समाज के नाम पर शोर मचाने वाली सरकार के अधिकारियों का ये कारनामा बताता है कि उन्हें न अपनी संस्कृति की कोई समझ है न अपने इतिहास की। इस नोटिस में कहा गया कि नोटिस मिलने के 15 दिन के अंदर महादेवी वर्मा हाउस टैक्स जमा करें वरना अशोक नगर में बने उनके मकान 327/114 ज़ब्त कर लिया जाएगा।

कौन हैं महादेवी वर्मा ?

नैनीताल के कुमाऊं यूनिवर्सिटी के पहले दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा की पैदाइश उत्तर प्रदेश के फ़रुर्खाबाद में साल 1907 की 26 मार्च को हुआ था। उनकी शुरुआती तालीम इंदौर में हुई, वहां एक प्राइमरी शिक्षा मिशन स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की। साल 1932 उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संस्कृत में एम.ए. किया और इसके बाद वो देश में शिक्षा के प्रसार के लिए काम करने लगी। इस दौरान वो गांधी जी के संपर्क में भी रहीं और आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने इस सफर के दौरान हिंदी साहित्य की कई खूबसूरत कृतियां लिखीं, जिन्हें आजतक याद किया जाता है। नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा और अग्निरेखा जैसी तमाम कहानी संग्रह लिखे जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, साहित्य अकादमी फेलोशिफ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उनके काव्य संकलन भी प्रकाशित हुए। उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की व उसकी प्रधानाचार्य के रुप में कार्यरत रही। मासिक पत्रिका चांद का संपादन किया। 11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में महादेवी वर्मा जी का निधन हो गया।

मामले ने पकड़ा तूल

मामले ने तूल पकड़ा तो इलाहाबाद नगर आयुक्त हरिकेश चौरसिया आनन-फानन में मीडिया से मुखातिब हुए और कहा कि ये चूक इसलिए हुई है क्योंकि इन दिनों विभाग टैक्स वसूली के अभियान में पूरी ताकत से लगा है। कर्माचारियों की गलती से कवयित्री महादेवी वर्मा के नाम भी नोटिस जारी करके उन्हें नगर निगम में हाज़िर होने को कह दिया गया। उन्होंने बताया कि अब इस नोटिस को निरस्त कर दिया गया है और पूरी पूछताछ के बाद मौजूदा वक्त में मकान में रहने वाले लोगों के नाम पर फिर से नोटिस भेजा जाएगा। उन्होंने सख्त लहजे में ये भी कहा कि जिन कर्मचारियों से ये गलती हुई है उनपर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। हालांकि जब इस बारे में पत्रकारों मे इलाके की महापौर अभिलाषा गुप्ता से बात की तो उन्होंने कहा कि ये एक महान साहित्यकार का अपमान है, जो हुआ है इसके लिए प्रशासन को खेद है लेकिन अब इस बारे में सारी औपचारिक्ताएं पूरी करते हुए महादेवी वर्मा जी के घर को टैक्स फ्री किया जाएगा। उन्होंने ये भी कहा कि मुख्यकर निर्धारण अधिकारी को महादेवी जी के घर का मुआयना करने का आदेश भी दे दिया गया है।

महादेवी वर्मा

आपको बता दें कि महादेवी वर्मा ने अपनी वसीयत में अपनी सारी संपत्ति एक ट्रस्ट को दे दी थी। मौजूदा वक्त में इस मकान में रानी पांडे जी रहती हैं, जो कि स्वर्गीय रामजी पांडे की पत्नी हैं। उनके ससुर गंगा प्रसाद पांडे हिंदी के मशहूर आलोचक थे। वो बताती हैं कि इस मकान में वो साल पिछले तीस साल से रह रही हैं और ट्रस्ट की संपत्ति की देखभाल करती हैं। उन्होंने कहा कि साल 1998 में उनके पति राम जी पांडे ने पूरा हाउस टैक्स चुका दिया था इसके बाद उन्हें कोई बिल नहीं मिला। हालांकि इस पूरे मामले में मुख्य कर निर्धारण अधिकारी पीके मिश्रा का कहना है कि विभाग की तरफ से कोई चूक नहीं हुई है। सरकारी दस्तावेज़ों में अब भी इस घर की मालिक का नाम महादेवी वर्मा ही दर्ज है। रानी पांडे और उनके परिवार की तरफ से ऐसा कोई कागज़ जमा नहीं किया गया है जिससे ज़ाहिर हो कि ये ट्रस्ट की संपत्ति है लेकिन वो ये भी मानते हैं कि विभाग को महादेवी वर्मा के बारे में पता होना चाहिए था।

   

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