जब रामलीला में राम और रावण ने उर्दू में बोले डायलाग्स

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   27 Dec 2016 7:28 PM GMT

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जब रामलीला में राम और रावण ने उर्दू में बोले डायलाग्सउर्दू के लिए गुजरा साल कुछ अफसोसजनक रहा तो कुछ उम्मीदों भरा रहा।

नई दिल्ली (भाषा)। उर्दू के लिए गुजरा साल भरपूर उठा-पटक वाला रहा। जहां एक ओर उर्दू जुबान से भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में नरमी लाने के लिए इसकी हौसला-अफजाई की दलीलें दी गयीं, वहीं दूसरी ओर कुछ राष्ट्रवादी संगठनों ने इसकी पढ़ाई-लिखाई रोक देने की वकालत की।

पिछले साल के दौरान गंगा-जमुनी तहजीब की निशानी उर्दू भाषा से जुडी कुछ दिलचस्प खबरें भी चर्चा में रहीं, वहीं कुछ ऐसी खबरें भी सुनाई दीं, जिसमें इसके साथ होने वाले भेद-भाव एवं पूर्वाग्रह दिखने लगे।

गालिब को भारत रत्न देने की मांग

साल की शुरुआत में उर्दू के महान शायर गालिब की याद में आगरा में एक मेमोरियल बनवाने की मांग उठाई गई। इसके अलावा ब्रज मंडल हैरिटेज कंजरवेशन सोसाइटी के संस्थापक ब्रज खंडेलवाल ने आगरा विश्वविद्यालय में गालिब चेयर स्थापित करने और इस मशहूर मरहूम शायर को भारत रत्न देने की मांग की। यह संगठन लंबे समय से गालिब की सालगिरह पर आगरा में एक बड़ा जलसा करता है।

कई शादी करने वाले भी कर सकेंगे उर्दू शिक्षक पद के लिए आवेदन

साल के पहले महीने में मुस्लिम संगठनों के विरोध के कारण उत्तर प्रदेश सरकार को अपना एक पुराना फरमान वापस लेना पड़ा, जिसमें एक से ज्यादा शादियां करने वाले लोगों को उर्दू शिक्षक पद के लिए आवेदन के अयोग्य ठहराया गया था। इसी महीने उर्दू के लिए एक दूसरी खबर अफसोसजनक रही। शिवसेना ने प्रधानमंत्री से देश के सभी मदरसों में माध्यम के रूप में उर्दू-अरबी का इस्तेमाल बंद करने और उसका स्थान हिन्दी अथवा अंग्रेजी को दिए जाने की मांग की। शिवसेना ने अपने पार्टी मुखपत्र में प्रधानमंत्री को ब्रितानी सरकार से सीख लेने की नसीहत दी। ब्रितानी सरकार ने ब्रिटेन में अपने पति के साथ वीजा पर रह रही ऐसी महिलाओं को उनके देश वापस भेजने की चेतावनी दी थी जो अंग्रेजी नहीं बोल पातीं।

हालांकि इसके कुछ दिन बाद ही एक अन्य खबर ने उर्दू की ताकत को एक भाषा से ज्यादा माना और पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए इसका इस्तेमाल बढ़ाने की अपील की। आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष सुधीर कुलकर्णी ने कहा कि भारत और पाकिस्तान को एक दूसरे के करीब लाने के लिए उर्दू की ताकत का इस्तेमाल नहीं किया गया।

उर्दू के मशहूर शायर राहत इंदौरी को वीजा देने से अमेरिका का इंकार

गुजरे साल के चौथे महीने अप्रैल में उर्दू के मशहूर शायर राहत इंदौरी को वीजा देने से अमेरिका ने इंकार कर दिया। वह अमेरिका के टेक्सास प्रांत के डलास में एक अंतरराष्ट्रीय मुशायरे में हिस्सा लेने के लिए जाने वाले थे। ‘नूर इंटरनेशनल' नाम की साहित्यिक संस्था ने ‘जश्न ए राहत इंदौरी' के नाम से उन्हीं को सम्मानित करने का एक कार्यक्रम आयोजित किया था।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अधिकारियों को उर्दू-अरबी भाषा सिखाने पर जोर

अगस्त माह के दौरान कोलकाता से आई एक खबर ने उर्दू के बारे में लोगों की राय बदल दी। खबर के मुताबिक पूर्वी क्षेत्र के जमात उल मुजाहिद्दीन (जेएमबी) जैसे आतंकी संगठनों के बढ़ते खतरे के मद्देनजर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अधिकारियों को उर्दू-अरबी भाषा सिखाने पर जोर दिया जाने लगा। 2014 में पश्चिम बंगाल के खग्रा में हुए विस्फोट के दौरान जांच एजेंसी ने भारी मात्रा में साहित्य बरामद किया था, जो उर्दू-अरबी-फारसी में था, जिसे पढने और समझने में अधिकारियों को कठिनाई का सामना करना पड़ा था।

फरीदाबाद में उर्दू में रामलीला का मंचन

साल के आखिर में राजधानी दिल्ली के उपनगर फरीदाबाद से उर्दू में रामलीला आयोजित होने की एक दिलचस्प खबर आई। हिन्दुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब वाली यह रोचक खबर निश्चि तौर पर देश के हिन्दू और मुसलमानों को एक दूसरे के करीब लाने की नजीर बनती दिखाई दी। इसके मुताबिक फरीदाबाद के सेक्टर-15 में उर्दू में एक रामलीला का मंचन होता है और इस रामलीला के निर्देशक विश्वबंधु शर्मा नाम के हिंदू व्यक्ति हैं।

प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने उर्दू की तारीफ में पढ़े कसीदे

साल के जाते-जाते देश के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने उर्दू की तारीफ करके लगभग अंतिम तौर पर इसकी अहमियत की वकालत की। ठाकुर ने जम्मू में आयोजित एक मुशायरे में शिरकत करते हुए कहा कि उर्दू शायरी ने खासकर उस जम्मू कश्मीर के लोगों के दिलों को सुकून देने का करामाती काम किया है, जिसने इतनी हिंसा और रक्तपात देखा है। उन्होंने हिंसाग्रस्त कश्मीर घाटी की असलियत सामने लाने के लिए उर्दू और उर्दू शायरी की तारीफ भी की।

कुछ गए तो कुछ ने लोगों के दिलों में बनाई जगह

हालांकि उर्दू के कुछ नामचीन शायरों और लेखकों का इंतकाल हो जाने से पिछला साल उर्दू के लिए कुछ गमजदा जरूर रहा, लेकिन नौजवान शायरों की बड़ी खेप आने और कुछ उम्दा किताबों के साया होने से कुछ हद तक इसकी भरपाई भी हो सकी।

निदा फाजली:- पिछले साल के फरवरी में मशहूर शायर और गीतकार निदा फाजली का दिल का दौरा पड़ने से मुंबई में इंतकाल हो गया। भारत सरकार ने 2013 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। फरवरी में ही पाकिस्तान के महान उर्दू उपन्यासकार, कहानीकार और आलोचक इंतजार हुसैन का भी इंतकाल हो गया।

डा. मलिकजादा मंजूर अहमद:- इसके दो महीने बाद ही 80 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजे जा चुके डा. मलिकजादा मंजूर अहमद इस फानी दुनिया से रखसत हो गए। मंजूर अहमद ने उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष के रूप में उर्दू के प्रचार-प्रसार में बड़ा योगदान दिया।

जुबैर रिजवी :- इसी माह उर्दू अकादमी के सचिव रह चुके जुबैर रिजवी का इंतकाल हो गया। करीब 30 साल तक आकाशवाणी से जुड़े रहने वाले इस शायर का निधन उर्दू अकादमी के एक सेमिनार में भाषण के दौरान दिल का दौरा पडने से हो गया। रिजवी मशहूर उर्दू पत्रिका ‘जहन-ए-जदीद' के संपादक थे।

बेकल उत्साही:-दिसंबर में शायर, लेखक और राजनीतिज्ञ बेकल उत्साही का राजधानी के राममनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वह कांग्रेस पार्टी से जुडे थे। 1976 में उत्साही को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था।

उम्दा किताबों को पाठकों ने अपने सिर-आंखों पर रखा

दूसरी ओर पिछले साल उर्दू की कुछ बेहद उम्दा किताबों को पाठकों ने अपने सिर-आंखों पर रखा। पिछले साल राहत इंदौरी की किताब ‘मेरे बाद' का प्रकाशन हुआ। इसके अलावा जॉन एलिया की ‘गुमान' और कुमार विश्वास के संपादन के आयी एक अन्य किताब ‘मैं जो हूं, जान एलिया हूं' को भी काफी पसंद किया गया। साहिर लुधियानवी की शायरी का समग्र भी देवनागरी में प्रकाशित हुआ। शकील जमाली का ‘कटोरे में चांद', खुशवीर सिंह ‘शाद' की ‘शहर के शोर से जुदा' और राजनारायण राज का समग्र दो खंडो में प्रकाशित हुआ।

इरफान सिद्दकी का समग्र, अहमद मुश्ताक, सुबोधलाल साकी, इरफान सत्तार की किताबें भी पिछले साल के उर्दू साहित्य में काफी पढ़ी और पसंद की गयीं। नए शायरों में इरशाद खान ‘सिंकदर' की किताब ‘आंसुओं का तर्जुमा' भी गुजरे साल की उल्लेखनीय किताब रही।

    

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