वो तोड़ती पत्थर ... इलाहाबाद के पथ पर

Jamshed SiddiquiJamshed Siddiqui   1 May 2017 4:28 PM GMT

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वो तोड़ती पत्थर ... इलाहाबाद के पथ परवो तोड़ती पत्थर 

एक मई को पूरी दुनिया में मज़दूर दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसे ‘मे डे’ भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत साल 1886 में अमेरिका में हुई थी, जब 1 मई को मज़दूर यूनियनों ने आठ घंटे से ज़्यादा काम कराए जाने के विरोध में चक्का जाम कर दिया था। इसे दुनिया की पहली मज़दूर क्रांति माना जाता है। हालांकि इस क्रांति में हिंसा भी हुई थी, लेकिन इस मज़दूर हड़ताल के बाद दुनियाभर में मज़दूरों के लिए 8 घंटे का समय तय कर दिया गया था। भारत में मज़दूर दिवस की शुरुआत मज़दूर किसान पार्टी के कॉमरेड नेता सिंगरावेलू चेट्यार ने शुरु की थी। उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के सामने एक बड़ा प्रदर्शन करते हुए ये मांग की थी कि भारत में 1 मई को मज़दूर दिवस के तौर पर घोषित किया जाए और उस दिन छुट्टी का ऐलान किया जाए।

भारत में मज़दूरों की आवाज़ को लेकर तमाम लेखकों और शायरों ने भी रचनाएं रची हैं। प्रोगरेसिव राइटर्स एसोसिएशन के तहत लखनऊ के शायर सज्जाद ज़हीर ने तमाम लेखकों को एक छत के नीचे लाकर तय किया था कि अब रचनाएं सिर्फ फूल और इश्क से आगे बढ़कर मज़दूरों और ग़रीबों पर हो रहे ज़ुल्मों सितम पर भी चोट करेंगी। इस प्रगतिशील लेखक संघ की अध्यषता मशहूर कहानीकार मुंशी प्रेम चंद कर रहे थे। इस ऐलान के बाद तमाम लेखकों ने मज़दूरों के हितों और उनके हालात पर रचनाएं कही।

अतंर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर याद आती है महाकवि निराला की एक कविता, वो तोड़ती पत्थर

वह तोड़ती पत्थर,

देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर

वह तोड़ती पत्थर।

कोई न छायादार

पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;

श्याम तन, भर बंधा यौवन,

नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,

गुरु हथौड़ा हाथ,

करती बार-बार प्रहार:-

सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।

चढ़ रही थी धूप;

गर्मियों के दिन,

दिवा का तमतमाता रूप;

उठी झुलसाती हुई लू

रुई ज्यों जलती हुई भू,

गर्द चिनगीं छा गई,

प्रायः हुई दुपहर :-

वह तोड़ती पत्थर।

देखते देखा मुझे तो एक बार

उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;

देखकर कोई नहीं,

देखा मुझे उस दृष्टि से

जो मार खा रोई नहीं,

सज़ा सहज सितार,

सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।

एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,

ढुलक माथे से गिरे सीकर,

लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-

"मैं तोड़ती पत्थर।"

सर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

     

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