सूफी तबस्सुम की पुण्यतिथि पर पढ़िए उनकी 5 नज़्म 

Anusha MishraAnusha Mishra   7 Feb 2018 5:05 PM GMT

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सूफी तबस्सुम की पुण्यतिथि पर पढ़िए उनकी 5 नज़्म सूफी तबस्सुम 

ग़ुलाम मुस्तफा तबस्सुम (4 अगस्त 1899 - 7 फरवरी 1978) जिन्हें लोग सूफी तबस्सुम के नाम से जानते हैं, 20वीं सदी के मशहूर कवि थे। बच्चों के लिए उर्दू की मशहरू कॉमिक्स टोट बटोट उन्होंने ही लिखी थी। उनका जन्म अमृतसर, पंजाब में हुआ था लेकिन उनके माता - पिता कश्मीरी थे। पचास वर्षों तक, वह सक्रिय रूप से रेडियो पाकिस्तान और पाकिस्तान टेलीविजन कविताओं के कार्यक्रम में भाग लेते रहे। उनके लिखे गीतों को नूरजहां, नसीम बेगम, फरीदा खानम और गुलाम अली ने गाया है। आज उनकी पुण्यतिथि पर पढ़िए उनकी 5 नज़्म...

1. ज़िंदगी दूर हुई जाती है

ज़िंदगी दूर हुई जाती है

और कुछ मेरे क़रीब आ जाओ

जल्वा-ए-हुस्न को कुछ और ज़िया-रेज़ करो

अपने सीने से उभरने वाले

आतिशीं साँस की लौ तेज़ करो

मेरी इस पीरी-ए-दरमांदा की

ख़ुश्क़ और ख़स्ता भी ख़ाकिस्तार अफ़्सुर्दा में

सोज़-ए-ग़म को शरर-अँगेज़ करो

यूँ ही पल भर ही सही

मेरे क़रीब आ जाओ

ज़िंदगी दूर हुई जाती है

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2. मैं आ रहा हूँ

मैं जानता हूँ

ये रात को चुपके चुपके ख़्वाबों में

यूँ तिरा बार बार आना

वो सहमे सहमे हुए से रूकना

वो बे-कसी में क़दम उठाना

वो हसरत-ए-गुफ़्तुगू में तेरे

ख़मोश होंटों का तिलमिलाना

समझ गया हूँ

कि मुझ से मिलने की आरज़ू

तुझ को कैसे बे-ताब कर रही है

मगर मिरी जान !

तू ऐसी मंज़िल पे जा रही है

जहाँ से पीछे को

लौट आने का कोई इम्कान ही नहीं है

तो फिर क्या होगा

जहाँ ये बे-रोज़-ओ-शब के इतने

तवील लम्हे गुज़र गए हैं

कुछ और दिल को ज़रा सँभालो

कुछ और अभी इंतिज़ार कर लो

मैं आ रहा हूँ

मैं आ रहा हूँ

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3. तुझ को आते ही नहीं छुपने के अंदाज़ अभी

तुझ को आते ही नहीं छुपने के अंदाज़ अभी

मिरे सीने में है लर्ज़ां तिरी आवाज़ अभी

उस ने देखा ही नहीं दर्द का आग़ाज़ अभी

इश्क़ को अपनी तमन्नाओं पे है नाज़ अभी

तुझ को मंज़िल पे पहुँचने का है दावा हमदम

मुझ को अंजाम नज़र आता है आग़ाज़ अभी

किस क़दर गोश-बर-आवाज़ है ख़ामोशी-ए-शब

कोई नाला कि है फ़रियाद का दर बाज़ अभी

मिरे चेहरे की हँसी रंग-ए-शिकस्ता मेरा

तेरे अश्कों में तबस्सुम का है अंदाज़ अभी

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4. नज़रों से ग़ुबार छट गए हैं

नज़रों से ग़ुबार छट गए हैं

चेहरों से नक़ाब उलट गए हैं

फ़ुर्क़त के तवील रास्ते थे

यादों से तिरी सिमट गए हैं

जिस रह पे पड़े हैं तेरे साए

उस राह से हम लिपट गए हैं

दिन कैसे कठिन थे ज़िंदगी के

क्या जानिए कैसे कट गए हैं

तक़्सीम हुए थे कुछ नसीबे

क्या कहिए कहाँ पे बट गए हैं

उभरे थे भँवर से कुछ सफ़ीने

क्या जाने कहाँ उलट गए हैं

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5. दिल को आए कि निगाहों को यक़ीं आ जाए

दिल को आए कि निगाहों को यक़ीं आ जाए

किसी उनवाँ तो कोई मेरे क़रीं आ जाए

बिखरे रहने दो सर-ए-राह निशान-ए-कफ़-ए-पा

जाने किस दम कोई आवारा-जबीं आ जाए

सुनते जाओ मिरा बे-रब्त फ़साना शायद

इन्ही बातों में कोई बात हसीं आ जाए

और फिर इस के सिवा सेहर-ए-मोहब्बत क्या है?

यक-ब-यक जैसे कोई दिल के क़रीं आ जाए

जाम क्या चीज़ है मय-ख़ाना उड़ाओ यारो!

जाने किस दम लब-ए-साक़ी पे ''नहीं'' आ जाए

वो तिरी याद का परतव हो कि हो साया-ए-ज़ुल्फ़

चैन आ जाए तबीअत को कहीं आ जाए

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