कवि प्रदीप : जिनके लिखे गाने ने नेहरू की आंखों में आंसू ला दिए थे
गाँव कनेक्शन 6 Feb 2018 12:32 PM GMT

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल, ऐ मेरे वतन के लोगों, हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के... इन सारे गीतों को आपने सुना होगा और गाया भी होगा। आज इन्हीं गीतों को लिखने वाली कवि प्रदीप की जयंती है।
1931 का वो दौर जब ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी पाने के लिए भारतीयों में जोश और जुनून भरा हुआ था। 1930 में भगतसिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई थी। महान क्रांतिकारियों की इस शहादत से पूरे देश में उबाल था। स्वतंत्रता आदोलन उस वक्त अपने चरम था। एक तरफ स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आज़ाद कराने का ज़िम्मा ले लिया था तो दूसरी ओर कुछ कवि थे जो उन अपनी रचनाओं से उन स्वतंत्रता सेनानियों का हौसला बढ़ाते थे। उसी दौर में एक कवि था जिसका नाम हर ज़ुबां पर था - रामचंद्र नारायण द्विवेदी। इनके लिखे गानों ने लोगों में आज़ादी पाने के लिए एक नई ऊर्जा दी थी। वही रामचंद्र द्विवेदी यानि कवि प्रदीप जिनके लिखे गाने को जब लता मंगेशकर ने गाया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों से आंसू बहने लगे थे।
कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को उज्जैन के वडनगर में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था लेकिन तब लोग उन्हें रामचंद्र द्विवेदी के नाम से ही जानते थे। 1939 में वे लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद शिक्षक बनने की तैयारी करने लगे। उस समय उन्हें मुंबई में हो रहे एक कवि सम्मेलन में गए। जहां उनका परिचय बॉम्बे टॉकीज में काम करने वाले एक व्यक्ति से हुआ जो कवि प्रदीप की कविताओं से काफी प्रभावित था। उस शख़्स ने बॉम्बे टॉकीज के संस्थापक हिमांशु राय को कवि प्रदीप के बारे में बताया और हिमांशु राय ने उनको बुलावा भेज दिया। बस फिर क्या था, हिमांशु राय ने कवि प्रदीप कुछ सुनाने के लिए कहा और उनकी रचनाओं से इतना खुश हुए कि उन्हें अपने स्टूडियो में 200 रुपए प्रति माह पर नौकरी पर रख लिया।
जब वे मुंबई में रहने लगे उस समय हिंदी फिल्मों के अभिनेता प्रदीप कुमार बहुत मशहूर थे। हिमांशु राय ने कवि प्रदीप को सुझाव दिया कि इतना लंबा नाम जल्दी जल्दी लोगों को याद नहीं रहता है इसलिए आपको अपना नाम प्रदीप रख लेना चाहिए। लेकिन लोग प्रदीप कुमार और उनके नाम में कंनफ्यूज़ हो जाते थे इसलिए उन्होंने अपने नाम के आगे कवि लगा लिया।
बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कवि प्रदीप ने बताया था कि देशभक्ति के सबसे लोकप्रिय गाने 'ऐ मेरे वतन के लोगों' को बनाने का भी एक क़िस्सा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी। उस समय पूरे देश का मनोबल गिरा हुआ था। ऐसे में सबकी निगाहें फ़िल्म जगत और कवियों की तरफ़ जम गईं कि वे कैसे सबके उत्साह को बढ़ाने का काम कर सकते हैं। उस समय के नेता भी ऐसा मानते थे कि कविताएं और गाने काफी कुछ बदल सकते हैं। सरकार की तरफ़ से फ़िल्म जगत को कहा जाने लगा कि भई अब आप लोग ही कुछ करिए. कुछ ऐसी रचना करिए कि पूरे देश में एक बार फिर से जोश आ जाए और चीन से मिली हार के ग़म पर मरहम लगाया जा सके।
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कवि प्रदीप ने इस इंटरव्यू में बताया कि मुझे पता था कि ये काम फ़ोकट का है। इसमें पैसा तो मिलना नहीं तो मैं बचता रहा लेकिन आख़िर कब तक बचता मैं लोगों की निगाह में आ गया। उस दौर में तीन महान आवाज़ें हुआ करती थीं. मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और लता मंगेशकर। उसी दौरान नौशाद भाई ने तो मोहम्मद रफ़ी से 'अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं', गीत गवा लिया, जो बाद में फ़िल्म 'लीडर' में इस्तेमाल हुआ। राज साहब ने मुकेश से 'जिस देश में गंगा बहती है' गीत गवा लिया.तो इस तरह से रफ़ी और मुकेश तो पहले ही रिज़र्व हो गए। अब बचीं लता बाई। उनकी मखमली आवाज़ में कोई जोशीला गाना फ़िट नहीं बैठता। ये बात मैं जानता था। तो मैंने एक भावनात्मक गाना लिखने की सोची। इस तरह से 'ऐ मेरे वतन के लोगों' का जन्म हुआ जिसे लता ने पंडित जी के सामने गाया और उनकी आंखों से भी आंसू छलक आए।
1954 में कवि प्रदीप ने एक गीत लिखा था 'देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान... कितना बदल गया इंसान', ये गाना आज के दौर में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 60 साल पहले था। 'टूट गई है माला मोती बिखर गए...', 'पिंजड़े के पंछी रे, तेरा दर्द न जाने कोय...', 'मैंने जग की अजब तस्वीर देखी, एक हंसता है दस रोते हैं...' 'कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे ना भाई'... समाज की स्थिति को बयां करते उनके लिखे ये गाने आज भी लोग सुनते हैं।
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कवि प्रदीप ने अपने जीवन में 71 फिल्मों में 1700 गाने लिखे जिनमें देशभक्ति सहित धार्मिक गाने भी शामिल थे। इन गानों में से कई गाने कवि प्रदीप ने खुद भी गाए जो काफी लोकप्रिय हुए। इनमें 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की' आज भी लोगों की जुबान पर रहता है। कवि प्रदीप को 1998 में दादा साहब फालके पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने गीतों से फिल्मी जगत का एक स्तर और बढ़ाने वाले कवि प्रदीप का 11 दिसंबर 1998 को निधन हो गया। आज उनके जन्मदिन के मौके पर उनको याद करते हुए पढ़िए उनके लिखे कुछ गीत
1. आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं
आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम ...
उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है
जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है
बाट-बाट पे हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है
देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की,
इस मिट्टी से ...
ये है अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे
इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे
ये प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्मिनियाँ अंगारों पे
बोल रही है कण कण से कुरबानी राजस्थान की
इस मिट्टी से ...
देखो मुल्क मराठों का ये यहाँ शिवाजी डोला था
मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था
हर पावत पे आग लगी थी हर पत्थर एक शोला था
बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था
यहाँ शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की
इस मिट्टी से ...
जलियाँ वाला बाग ये देखो यहाँ चली थी गोलियाँ
ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियाँ
मरनेवाले बोल रहे थे इंक़लाब की बोलियाँ
यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जान की
इस मिट्टी से ...
ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है
यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है
ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है
जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की
इस मिट्टी से ...
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2. साबरमती के सन्त
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ...
धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह रे फ़कीर खूब करामात दिखाई
चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ...
रघुपति राघव राजा राम
शतरंज बिछा कर यहाँ बैठा था ज़माना
लगता था मुश्किल है फ़िरंगी को हराना
टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था ताना
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना
मारा वो कस के दांव के उलटी सभी की चाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ...
रघुपति राघव राजा राम
जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े
मज़दूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े
हिंदू और मुसलमान, सिख पठान चल पड़े
कदमों में तेरी कोटि कोटि प्राण चल पड़े
फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ...
रघुपति राघव राजा राम
मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी
लाखों में घूमता था लिये सत्य की सोटी
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी
दुनिया में भी बापू तू था इन्सान बेमिसाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ...
रघुपति राघव राजा राम
जग में जिया है कोई तो बापू तू ही जिया
तूने वतन की राह में सब कुछ लुटा दिया
माँगा न कोई तख्त न कोई ताज भी लिया
अमृत दिया तो ठीक मगर खुद ज़हर पिया
जिस दिन तेरी चिता जली, रोया था महाकाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव राजा राम
3. देख तेरे संसार की हालत
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्
कितना बदल गया इंसान कितना बदल गया इंसान
सूरज न बदला चाँद न बदला न बदला रे आसमान
कितना बदल गया इंसान कितना बदल गया इंसान
राम के भक्त रहीम के बन्दे
रचते आज फरेब के फंदे
कितने ये मक्कार ये अंधे
देख लिए इनके भी फंदे
इन्ही की काली करतूतों से
बना ये मुल्क मसान
कितना बदल गया इंसान
क्यूँ ये नर आपस में झगड़ते
काहे लाखों घर ये उजड़ते
क्यूँ ये बच्चे माँ से बिछड़ते
फूट फूट कर क्यूँ रो
ते प्यारे बापू के प्राण
कितना बदल गया इंसान
कितना बदल गया इंसान
3. हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के
पासे सभी उलट गए दुश्मन की चाल के
अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के
मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के
सदियों के बाद फ़िर उड़े बादल गुलाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा
इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा
रक्खा है ये चिराग़ शहीदों ने बाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
दुनियाँ के दांव पेंच से रखना न वास्ता
मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता
भटका न दे कोई तुम्हें धोखे में डाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनियाँ
बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनियाँ
तुम हर कदम उठाना जरा देखभाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
आराम की तुम भूल-भुलैया में न भूलो
सपनों के हिंडोलों में मगन हो के न झूलो
अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलों
उठो छलांग मार के आकाश को छू लो
तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
4. आज हिमालय की चोटी से
आज हिमालय की चोटी से फिर हम ने ललकरा है
दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है।
जहाँ हमारा ताज-महल है और क़ुतब-मीनारा है
जहाँ हमारे मन्दिर मस्जिद सिखों का गुरुद्वारा है
इस धरती पर क़दम बढ़ाना अत्याचार तुम्हारा है।
शुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिन्दुस्तानी
तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी
आज सभी के लिये हमारा यही क़ौमी नारा है।
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5. ऐ मेरे वतन के लोगों
ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने हैं प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो -२
जो लौट के घर न आये -२
ऐ मेरे वतन के लोगों
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
जब घायल हुआ हिमालय
खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा
सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर
वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
थी खून से लथ-पथ काया
फिर भी बन्दूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा
फिर गिर गये होश गँवा के
जब अन्त-समय आया तो
कह गये के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको
इसलिये कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
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जय हिन्द की सेना -२
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