सत्यजीत रे : जिसकी नज़र ने फ़िल्मों को नया आसमान दिया

Jamshed SiddiquiJamshed Siddiqui   2 May 2017 8:17 PM GMT

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सत्यजीत रे : जिसकी नज़र ने फ़िल्मों को नया आसमान दियासत्यजीत रे एक शूट के दौरान

सत्यजीत रे वो नाम है, जिसने भारतीय सिनेमा को पूरी दुनिया में उस वक्त पहचान दिलाई जब भारतीय भाषाओं की फिल्में वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही थी। वो शख्स जिसके फिल्म क्राफ्ट का लोहा पूरी दुनिया ने माना, भारतीय इतिहास में सत्यजीत रे वो पहले शख़्स थे जिनके लिए ऑस्कर खुद कोलकाता चलकर आया।

सत्यजीत रे का जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था, ये ब्रिटिश काल का वो दौर था जब भारत संघर्ष की अंगड़ाई ले रहा था। रे एक ऐसे परिवार में पले बढ़े जिसकी कई पीढ़ियां कला के करीब थी। उनके पिता सुकुमार रे खुद एक पेंटर और लेखक थे। उनके दादा उपेंद्र किशोर रे भी लेखक, समीक्षक, प्रकाशक और साहित्यकार थे। इस माहौल में सत्यजीत ने भी कला को बेहद करीब से देखा और समझा। साल 1948 में जब सत्यजीत रे की उम्र 27 साल की थी, उन्होंने इटालियन डायरेक्टर वितोरियो दे सिका की फिल्म 'बायसिकिल थीव्स' देखी, इस फिल्म ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने तय कर लिया कि वो फिल्म मेकिंग करेंगे।

सत्यजीत रे

एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो अमरीकी फिल्में बहुत ध्यान से देखते थे। साल 1955 में उनकी पहली फिल्म आई, नाम था - पाथेर पांचाली। इस फिल्म ने 11 इंटरनेशनल अवार्ड जीते थे। जिसमें वैंकूवर में बेस्ट फिल्म, रोम में वेटिकन अवॉर्ड, टोक्यो में बेस्ट फॉरेन फिल्म अवॉर्ड और कान फिल्म फेस्टिवल का बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट अवॉर्ड भी शामिल था।

इस फिल्म के बाद सत्यजीत रे वो नाम हो गया जिसे फिल्म का एक चलता-फिरता संस्थान कहा जाने लगा। इसके बाद आई उनकी कुछ और फिल्मों के बाद उन्हें बीसवीं शताब्दी का सबसे बेहतर फिल्मकार माना जाने लगा। रे के बारे में जापान के महान फिल्मकार अकीरो कुरोसावा ने कहा था

अगर आपने सत्यजीत रे का सिनेमा नहीं देखा तो मतलब है आप सूरज या चांद देखे बगैर दुनिया में रह रहे हैं
अकीरो कुरोसावा, जापानी फिल्मकार

रे एक बहुमुखी प्रतिभा वाले शख्स थे, वो खुद ही अपनी फिल्मों के स्क्रीन प्ले लिखते थे, वो खुद ही किरदारों के कपड़े डिज़ाइन करते थे और 1964 में फिल्म 'चारुलता' के बाद से कैमरा भी खुद ही संभालते थे। उनके साथ काम करने वाले लोगों का कहना था कि वो फिल्म के सेट पर खोए-खोए रहते थे, जैसे फिल्म उनके ज़हन में चल रही हो. उन्हें एक-एक सीन, और उसकी बारिकियां इस तरह याद रहती थीं जैसे, वो फिल्म जो अभी बन रही है, उसेवो कई बार देख चुके हों।

राय को जीवन में कई पुरस्कार मिले जिनमें अकादमी मानद पुरस्कार और भारत रत्न शामिल हैं। इंटरनेट पर रे की एक छोटी सी वीडियो मौजूद है जिसमें वो सेट पर हैं और फिल्म शूट कर रहे हैं, ये शायद इकलौती ऐसी वीडियो है जिसमें रे शूट के दौरान दिख रहे हैं।

    

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