भारत से अब तक चोरी हो चुकी हैं अरबों रुपये की 50 हजार मूर्ति, इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन करवाते हैं चोरी 

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भारत से अब तक चोरी हो चुकी हैं अरबों रुपये की 50 हजार मूर्ति, इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन करवाते हैं चोरी अनुराग सक्सेना की बदौलत पिछले दो वर्षों में कई मूर्तियां देश वापस आई हैं।

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में हजारों फीट ऊंची चोटी पर स्थित भगवान गणेश की करीब एक हजार साल पुरानी प्रतिमा को तोड़ा डाला गया। देश के दूसरे तमाम प्राचीन मंदिरों में हजारों मूर्तियां और कलाकृतियां यूं ही पड़ी रहती हैं उनकी परवाह नहीं होती, लेकिन यही मूर्तियां जब चोर तस्करी कर अमेरिका पहुंचाते हैं तो वो करोड़ों में बिकती हैं। ये मूर्तियां और कलाकृतियां देश की धरोधर और संपदा हैं। जो आप को देश पर गर्व करने का मौका देंती है। देश में कई लोग हैं जो इतिहास और संस्कृति की रक्षा करते हैं, लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जो चोरी हुई इन मूर्तियों को देश में वापस लाने के लिए विदेश तक लड़ाई लड़ता है। इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के अऩुराग सक्सेना के प्रयासों और केंद्र मोदी सरकार की पहल के चलते पिछले दिनों कई मूर्तियां वापस देश लाई गई हैं। ऑफ प्रिंट के अमित ने अनुराग से बात की पेश हैं उसके कुछ संपादित अंश।

प्र. अनुराग जी, इस काम को करने की प्रेरणा कहां से आई?

उ. जब मैं पढ़ाई के लिए यूएस गया तो देखा कि लोग अपने ऐतिहासिक धरोहरों का बहुत सम्मान करते हैं और उनके संरक्षण को लेकर भी बहुत सजग रहते हैं। फिर मैंने इसकी तुलना भारत से की, मैंने पाया कि हमारे यहाँ उतना संरक्षण-सम्मान नहीं किया जाता। उसी दौरान मैंने मंदिरों से होने वाली चोरियों के बारे में सुना और उस पर पढ़ना शुरु किया। मूर्ति चोरी का एक पूरा व्यवस्थित तंत्र है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके बड़े-बड़े तस्कर बैठे हैं और हमें इसकी भनक भी नहीं लगती। किसी गांव से जब कोई मूर्ति चोरी होती है तो शायद ही किसी को अंदाजा होता हो कि इस मूर्ति को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेच दिया गया होगा।

छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों इसी मूर्ति को खंडित कर दिया गया। 1000 साल पुरानी ये मूर्ति हजारों फीट की उंचाई पर एक चोटी पर स्थापित थी।

जब आगे बढ़ता गया तो पता चला कि यूनेस्को के अनुसार भारत से लगभग 50 हज़ार ऐतिहासिक कलाकृतिया चोरी हुईं हैं। ये मेरे लिए शॉकिंग था। मैंने सरकारों को चिठ्ठी-पत्री लिखी लेकिन जल्द ही समझ गया कि खुद ही कुछ करना पड़ेगा। हम इसे चार, साढ़े-चार साल से कर रहे हैं लेकिन पिछले दो साल से हमारे इसे कार्य को गति मिली है और इसका कारण है कि वर्तमान सरकार भारतीय धरोंहरों को बचाने और उन्हें वापस लाने के लिए दूसरों से अधिक सजग है।

प्र. क्या आरंभ में आपके प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर थे या शुरुआत से ही आपके पता था कि चोरी-तस्करी का ये अंतर्राष्ट्रीय मसला है?

उ. ये अंतर्राष्ट्रीय मसला है। न सिर्फ मैं मानता हूँ बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) भी इसे मानता है। पिछले साल संयुक्त राष्ट्र ने इस संबंध में एक (2119) रिज्योल्यूशन भी पास किया था। इसके अनुसार बहुत से देशों से जो मूर्तियां चोरी हो रही हैं, वो आईएस (इस्लामिक स्टेट) या ऐसे ही अन्य संगठन करवा रहे हैं, जो उसके लिए टेरर फंडिंग के स्रोत हैं।

प्र. आज आपके साथ में कितने लोग हैं और ये लोग कैसे आपके साथ जुड़े?

उ. मैं इसे एक पुण्य का काम मानता हूँ कि लोग इसमें अपने आप जुड़ते आ रहे हैं। मुझे कोई बहुत बड़ा प्रयास करने की जरुरत नहीं हुई। हमारी कोर टीम में करीब 14 लोग हैं और 700 से अधिक दुनिया-भर में फैले स्वयंसेवक हैं। जिस देश में जरुरत पड़ती है, वहाँ लोग मदद के लिए आगे आ जाते हैं।

तमिलनाडु के इस मंदिर से नटराज की मूर्ति चोरी होने से वहां वीरानी छा गई थी, लेकिन मूर्ति वापस स्थापित होने के बाद वहां फिर से रौनक आ गई है।

प्र. इस काम के लिए पैसा कहाँ से आता है?

उ. न हमारे पास कोई फंडिंग आती है, न हम कोई संस्था हैं। इस काम में जो भी धन की जरुरत होती है उसे हम अपनी जेब से खर्च कर देते हैं। हम किसी से पैसा नहीं लेते, न ही सरकार से। और न ही भविष्य में किसी के सामने हाथ फैलाएंगे।

प्र. किस तरह से आप लोग काम करते हैं?

उ. देखिए जब लोग किसी नई मूर्ति को अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालयों में देखते हैं तो वे हमें सोशल मीडिया से सूचना देने लगते हैं। दूसरी तरफ भारत के गांवों से, क़स्बों से हमें मूर्तियां चोरी होनी की सूचना मिलती रहती है। इसके बाद हम अपने स्वयंसेवकों के बल पर खोजबीन शुरु करते हैं, जिसमें मूर्तियों की हाई-रिज्योल्यूशन तस्वीर लेना, अन्य डेटा इकठ्ठा करना, फिर विशेषज्ञों और शोधार्थियों की मदद से हम चीजों की कड़ी जोड़ते हैं। इसके बाद सब कुछ पक्का हो जाता है कि यही वो मूर्ति है जो भारत के किसी मंदिर से इस दिन चोरी हुई थी, तो हम सब जानकारी भारत सरकार को दे देते हैं। फिर सरकार अपने स्तर से इन अनमोल कलाकृतियों को वापस लाने का कार्य करती है।

प. क्या-क्या परेशानियां आती हैं आपको इस काम में?

उ. मैंने सोचा था कि अन्य देशों से हमें समस्याएं आएंगी लेकिन आश्चर्य देखिए कि जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा या अमेरिका से तो कोई समस्या नहीं आई लेकिन हमें अपने घर के ही लोगों से समस्याएं आईं। ये समस्या सिस्टम की है। स्वयं कैग (CAG) ने माना है कि जिन कामों को संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को करना चाहिए वे नौकरशाही और लालफीताशाही के कारण अटक जाते हैं या बहुत देर से हो रहे हैं।

प्र. आपके प्रयासों से कितनी कलाकृतियां दुनिया भर से अब तक भारत आ चुकी हैं?

उ. पिछली बार हमारे प्रधानमंत्री जी और अमेरिकी अटॉर्नी जनरल ने ज्वॉन्ट प्रेस कांफ्रेंस कर बताया था कि दो-सौ मूर्तियां वापस लाई जाएंगी। यहाँ दो-सौ का नंबर छोटा (यूनेस्को के 50 हज़ार के सामने) लग सकता है लेकिन एक तथ्य देखिए... कैग (CAG) के अनुसार साल 2000 से 2012 तक एक भी मूर्ति वापस नहीं लाई गई थी, तो इस लिहाज़ से दो-सौ का आंकड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है। अभी तक कुल 28 मूर्तियां वापस आ चुकी हैं।

प्र. इस तरह के काम के लिए भारत सरकार की क्या नीतियां हैं? आपके आलावा भी कोई संगठन हैं जो इस क्षेत्र में प्रयास कर रहे हैं?

उ. जो काम हम कर रहे हैं, वो अन्य देशों में सरकार की एजेंसियां करती हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के रिज्योलूशन से के हिसाब से हर देश की सरकार को एक नोडल एजेंसी बनानी चाहिए जो इस काम को देखे लेकिन दुर्भाग्य से भारत में अभी इस पर कोई काम नहीं हुआ है। तो जब तक सरकार इस पर कोई काम नहीं करती, हम इसे करते रहेंगे।

प्र. आप इन मूर्तियों की कीमत का कोई अनुमान लगा सकते हैं?

उ. हमारे हिसाब से इन मूर्तियों की कोई कीमत नहीं होनी चाहिए। ये हमारे पूर्वजों द्वारा दी गईं अनमोल धरोहरे हैं, ये हमारा गौरवशाली इतिहास हैं। इसीलिए मैं इन्हें अमूल्य मानता हूँ। लेकिन फिर भी चूंकि ये चोरी-तस्करी पैसों के लिए होती है तो इसे आप दो उदाहरणों से समझ सकते हैं।

एक, न्यूयॉर्क में एक तस्कर के यहाँ छापा पड़ा तो उसमें 106 मिलियन डॉलर (लगभग 7 अरब रुपए) की मूर्तियां बरामद की गईं।

दूसरा, मध्यप्रदेश के सतना से यक्ष की मूर्ति जब तस्कर बाजार में 100 करोड़ की बेची गई थी। ये मूर्ति अब वापस आ चुकी है।

अंत में, अपने भारतीय भाई-बहनों से मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि जिस मूर्ति की तरफ आप ठीक से देखना पसंद नहीं करते या जिस मंदिर के सामने खड़े होकर आप चाट-पकौड़े खाते हैं और वहीं कूड़ा फेंक देते हैं और उनका महत्व नहीं समझते, कृपया उनका महत्व समझिए और उस धरोहर का सम्मान कीजिए।

साभार. ऑफ प्रिंट

      

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