क़िस्सा मुख़्तसर : चरखा और तांबे का सिक्का
Jamshed Qamar 13 Jan 2017 7:19 PM GMT

उन दिनों गांधी जी ओड़िसा के दौरे पर थे। गांधी जी ने भारत के हर नागरिक को आत्मनिर्भर बनाने की नीयत से 'चरखा संघ' बनाया था और वो पूरे देश में घूम-घूम कर उसके लिए धन इकट्ठा करते हुए लोगों को चरखा चलाने की उपयोगिता समझा रहे थे। ओड़िसा के एक गांव में सभा के दौरान काफी भीड़ थी। चरखा संघ के फंड की देखभाल का ज़िम्मा गांधी जी ने जमनालाल बजाज को दे रखा था।
गांधी जी के भाषण के बाद मंच के सामने एक बूढ़ी महिला आ कर खड़ी हो गई, उसके कपड़े फटे हुए थे और बाल बिखरे थे। झुकी हुई कमर से आहिस्ता-आहिस्ता चलते हुए वो गांधी जी के पास पहुंची और कहा ”मुझे गाँधी जी के पैर छूने हैं” पहले तो उसे मना कर दिया गया पर जब उसने ज़िंद की तो उसे मंच पर पहुंचा दिया गया। उस महिला ने गांधी जी के पैर छुए और फिर अपनी साड़ी के पल्लू में बंधा एक ताम्बे का सिक्का निकाल कर गाँधी जी के पैरों में रख दिया। गाँधी जी ने सावधानी से सिक्का उठाया और अपने पास रख लिया।
जब गांधी जी ने सिक्का अपने पास रख लिया तो जमुना लाल जी ने मज़ाकिया लहजे में कहा, ”मैं चरखा संघ के हज़ारो रूपये के चेक मैं संभालता हूँ, लेकिन सिक्का आपने रख लिया” गांधी जी ने मुस्कुराते हुए कहा ”यह तांबे का सिक्का उन हज़ारों रुपयों से कहीं कीमती है, अगर किसी के पास लाखों हों और वो हज़ार-दो हज़ार दे दे तो उसे कोई फरक नहीं पड़ता, लेकिन ये सिक्का शायद उस औरत की कुल जमा-पूँजी थी। इसका मूल्य मेरे लिए करोड़ों से भी ज़्यादा है”
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