महिला कैदी ले रहीं सिलाई, कढ़ाई, मेंहदी का प्रशिक्षण

Swati ShuklaSwati Shukla   2 Jan 2016 5:30 AM GMT

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महिला कैदी ले रहीं सिलाई, कढ़ाई, मेंहदी का प्रशिक्षणगाँव कनेक्शन

बाराबंकी। चाहरदिवारी के अंदर बंद महिलाओं को उम्मीद है कि वो एक दिन जेल से बाहर निकलेंगी और अपनी नई जिंदगी शुरू कर सकेंगी। इसलिए वो सिलाई, कढ़ाई और मेंहदी का प्रशिक्षण ले रही हैं, इसमें सरकार भी उनकी पूरी मदद कर रही है। 

बाराबंकी जिला कारागार में पिछले दो वर्षों से बंद राधा (35 वर्ष) पिछले सात महीनों से अपने बेटे से नहीं मिल पाई हैं। उनके दो बच्चे अपने दादी के पास रहते हैं। राधा पर उनके पति की हत्या का आरोप है, जो अभी साबित नहीं हुआ है। वो बताती हैं, ''जेल में इन दो वर्षों में मैंने मेंहदी और सिलाई का प्रशिक्षण लिया है। मैंने कोई हत्या नहीं की है और मुझे उम्मीद है कि मैं जल्दी ही अपने बच्चों और परिवार से मिलूंगी। मैं यहां से निकलकर अपना खुद का काम शुरू करूंगी और इज्जत से कमाकर खाऊंगी।"

जिला कारागार में इस समय कुल 40 महिलाएं हैं जिनमें से ज्यादातर दहेज के केस में बंद हैं। 

''महिलाओं को यहां समय समय पर सिलाई, मेंहदी और कम्प्यूटर जैसे कौशल प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं अभी पिछले महीने इनका तीन महीने का सिलाई प्रशिक्षण खत्म हुआ है। इस प्रयास से यहां से निकलकर समाज इन्हें अपराधी की नजर से न देखकर एक आम नागरिक की तरह देखेगा। इन प्रशिक्षण से महिलाओं के अंदर आत्मविश्वास आता है और वो अपना भविष्य सुधारने की कोशिश करती हैं।" डिप्टी जेलर मोनिका राना बताती हैं।

इन कैदी महिलाओं में कुछ ऐसी भी हैं, जिनके साथ उनके बच्चे भी रह रहे हैं और उनके खेलने और पढऩे की जेल में ही व्यवस्था की गई है। ''अपने बच्चे को स्कूल जाते हुए देखकर बहुत खुशी होती है। कम से कम उनकी जिंदगी तो बर्बाद नहीं हो रही है, यहां वो मेरे आंखों के सामने हैं और पढ़ाई भी कर रहे हैं, जब यहां से वो बाहर जाएगा तो आगे की कक्षा में उसे आराम से दाखिला मिल जाएगा।" नम आंखों से मंजू (34वर्ष) बताती हैं। मंजू की जेठानी जलकर मर गई थी और घर में केवल मंजू , उनके पति और जेठ थे, तीनों को जेल हो गई है। 

जेल अधीक्षक आलोक सिंह बताते हैं, ''जेल तो जेल ही रहेगा लेकिन कोशिश यही रहती है कि वातावरण स्वच्छ और शांत हो क्योंकि परिवार से दूर रहना ही इनकी सबसे बड़ी सजा है। हम कोशिश करते हैं कि इनके अंदर से अपराधिक प्रवृत्ति खत्म हो जाए और यहां से बाहर जाकर ये अपना कोई छोटा-मोटा काम शुरू करके सम्मान से जी सकें। यहां इन महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण भी इसीलिए दिया जाता है, जिससे ये सजा के साथ-साथ कुछ नया और उपयोगी सीख पाएं।"

वो आगे बताते हैं, ''कई महिलाएं ऐसी हैं, जो सजा काटकर बाहर निकलीं हैं और अब सिलाई सेंटर खोलकर पैसे भी कमा रही हैं, वो अपना अतीत भूलकर नए सिरे से जिंदगी जी रही हैं।"

जेल में जल्द ही लगेंगे पीसीओ

जेल में कैदियों की सुविधा के लिए जल्दी ही पीसीओ लगने जा रहे हैं। जेलर आलोक सिंह बताते हैं, ''इसकी प्रक्रिया चल रही है, बजट आते ही पीसीओ लग जाएंगे और उसके नियम निर्धारित होंगे। अभी कैदियों से मिलने के लिए सुबह 11 बजे तक एक आवेदन दिया जाता है और उसके बाद उन्हें आधे घंटें मिलने की अनुमति रहती है।"

उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले है और कुल कारागार की संख्या 66 है। वर्ष 2010 से अभी तक कुल 381 महिला कैदी विचाराधीन हैं, 19 महिला कैदी सजायाफ्ता हैं और 11 महिला कैदी को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से कानूनी सहायता प्राप्त हुई है।

रिपोर्टिंग - श्रृंखला पाण्डेय/स्वाती शुक्ला

 

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