महिलाएं कहां सुरक्षित हैं

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महिलाएं कहां सुरक्षित हैं

हमारे देश के मनीषियों ने कहा था कि जिस देश में महिलाएं पूजी जाती हैं वहां देवता रहते है। उन्होंने यह नहीं बताया कि जहां महिलाओं का अपहरण और बलात्कार होता है वहां कौन रहता है। भले ही उन्होंने कहा नहीं परन्तु वे जानते थे जहां के लोगों ने सीता का अपहरण किया वहां राक्षस रहते थे। दिल्ली  मे दिसम्बर 2012 में सामूहिक बलात्कार की दिल दहलाने वाली घटना घटी थी। सारा देश उद्वेलित हो गया था। इस बात का महत्व नहीं कि पीड़िता का नाम क्या था, उसकी जाति, धर्म या शहर क्या था। महत्व इस बात का है कि यह सब हुए तीन साल बीत गए अभी तक मामले का पूरी तरह निबटारा नहीं हुआ है। हमारा समाज इसे रोकने में लाचार है। 

आज से 25-30 साल पहले सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएॅ शायद ही कभी सुनने में आती थीं और गांवों में तो कभी नहीं। तो फिर इस अन्तराल में ऐसा क्या हो गया कि राक्षसी भावनाओं का उदय हुआ। पिछली एक चौथाई शताब्दी में जो परिवर्तन आए उससे दौलत बढ़ी है, औसत आयु बढ़ी है, शिक्षा और  चिकित्सा की सुविधाएॅ मुहैया हुई हैं और इन सब के साथ ही बढ़ी है असंयमित यौन भावनाएं और उद्ंदंडता। 

पिछले अर्ध शताब्दी में एक और परिवर्तन आया है। सिनेमा, टीवी और इन्टरनेट घर-घर पहुॅचा है और इसे संयोग कहें कि इसी अवधि में हमारे देश में यौन अपराधों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इन्टरनेट पर अच्छी-बुंरी हर प्रकार की जानकारी रहती है जिसका सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों ही हो सकते हैं। फिल्मकारों का कहना है कि समाज सुधार उनका काम नहीं है, उनका काम है समाज का मनोरंजन करना। अपनी समझ से ठीक हीे कहते होंगे। एक फिल्म निर्माता बड़े गर्व से कह रहे थे कि वह कोशिश करते हैं 'टु अराउज़ सेन्सुअलिटी ऐण्ड सेक्शुअलिटी' अर्थात वह सिनेमा के माध्यम से आनन्दभाव और कामुकता जगाने की कोशिश करते हैं। अत: सिनेमा और टीवी जो कुछ दिखाते हैं वह हमेशा स्वस्थ मनोरंजन की श्रेणी में नहीं आता हैं

शहरों में ऐसी घटनाएं अधिक होती हैं क्योंकि यहां छुपने छुपाने के साधन अधिक हैं और मीडिया की जागरूकता के कारण जल्दी प्रकाश में आ जाती हैं। गांवों में भी ऐसी घटनाएं होती हैं परन्तु प्रकाश में नहीं आतीं और जब आती हैं तो समाज के लोग रफा दफा करने की कोशिश करते हैं। कानून व्यवस्था और महिलाओं से बलात्कार की चर्चा भी शहरों में ही खूब होती है। गांवों में लोकलाज के कारण ऐसे अपराध दबे रह जाते हैं।

सभ्य दिखने वाले कुछ लोग टीवी पर कहते हैं कि बलात्कार अमेरिका और जर्मनी में भी होते हैं। सच यह है कि भारत में नाबालिग बच्चियों  के साथ जो कुछ हो रहा है उसे जानवर भी उचित नही मानते हैैं। गॉवों के लोगों ने देखा होगा कि चाहे जितना बिगड़ैल भैंसा क्यों न हो, चाहे जितना उत्तेजित सॉड़ क्यों न हो वे पडिय़ा और बछिया के पीछे नहीं जाते। शारीरिक सम्बन्ध के लिए वे भैंस और गाय से सहज सम्पर्क स्थापित करते हैं। इसके विपरीत अपने को इंसान कहने वाले तमाम लोग हमारे समाज में 5 साल तक की बच्चियों से बलात्कार करते हैं और मार डालते हैं। राजनेता परस्पर दोषारोपण करते हैं कि विरोधी पार्टी के राज्य में ज्यादा बलात्कार हुए हैं, मानो टूर्नामेन्ट का कम्पटीशन हो रहा हो। दूसरे देशों अथवा दूसरे राज्यों में अधिक बलात्कार होने से कम वालो की गम्भीरता कम नहीं हो जाती।

यह सच है कि विदेशों में टीवी पर और सिनेमाघरों में कामुकता जगाने वाले सीन हमारे देश से कहीं अधिक दिखाए जाते है परन्तु वहॉ बलात्कार की घटनाएॅ यदा कदा ही होती हैं। उनकी सामाजिक मान्यताएं हम से अलग हैं। वहॉ 13 साल की उम्र की लड़कियॉ डेटिंग पर अर्थात लड़कों के साथ सिनेमा देखने, डांसबार, रेस्ट्रॅा अथवा पिकनिक पर जाना आरम्भ कर देती हैं। इस प्रक्रिया में वे अपना जीवन साथी स्वयं चुनती हैं और माता पिता को सूचित करती हैं। हमारे यहॉ कठिनाई इसलिए अधिक हो रही है कि जिस तेजी से टीवी, सिनेमा और इन्टरनेट बढ़ा है उस तेजी से हमारा समाज न बदला है और न बदल पाएगा। विकल्प दो ही है, या तो मनोरंजन के माध्यमों पर प्रभावी अंकुश लगे अथवा हमारा समाज किशोरावस्था में लड़के लड़कियों को सहज भाव से मिलने जुलने की अनुमति दे। हमारी सरकार ने वयस्कता की आयु 18 से घटाकर 15 साल करना चाहा था परन्तु बात बनी नहीं। हम जिस कशमकश से गुजर रहे है यूरोप के देश भी इस ऊहापोह से गुजरे हैं। हमें अपना रास्ता खुद ही खोजना होगा ।

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