महिलाओं में भेदभाव मिटा सकेंगे मोदी?

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महिलाओं में भेदभाव मिटा सकेंगे मोदी?gaonconnection

सेकुलर भारत में महिलाओं के साथ मज़हबी भेदभाव बेमानी है। हिन्दू महिलाओं ने शनि मन्दिर में प्रवेश के लिए महीनों तक संघर्ष किया और माननीय उच्च न्यायालय ने उन्हें राहत दी है। इसी प्रकर की राहत माननीय उच्चतम न्यायालय ने शाहबानो नाम की मुस्लिम महिला को दी थी। हो सकता है हिन्दू महिलाएं न्यायिक राहत का लाभ उठा सकें परन्तु शाहबानो उसका लाभ नहीं उठा पाई थी। क्या हमारा संविधान ऐसे पक्षपाती व्यवहार का पक्षधर है?

जहां तक इबादत का सवाल है हिन्दू महिलाएं अधिकांश मन्दिरों में जाती हैं और पूजा-अर्चना करती हैं। मुस्लिम महिलाएं भी दरगाहों और मज़ारों पर चादर चढ़ाती हैं और दुआ मांगती हैं। लेकिन जहां तक मैं समझता हूं मस्जिद में जाकर मर्दों के साथ बैठकर नमाज़ नहीं पढ़तीं। यदि वे अपनी मर्जी से ऐसा करती हैं तब बात अलग है परन्तु यदि वे बराबरी की सुविधाएं चाहें तो मज़हबी आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।

राजनीति, व्यापार, नौकरी और सामाजिक व्यवस्था में कोई भेदभाव नहीं है। अनेक हिन्दू और मुस्लिम महिलाएं गाँवों में प्रधान चुनी गई हैं और अच्छा काम भी कर रही हैं, भले ही दोनों समुदायों में प्रधानपति हीं काम करते हैं। मुस्लिम महिलाओं में पर्दा प्रथा के कारण अन्तर दिखाई पड़ता है लेकिन यह फैसला तो उन्हीं को करना है कि पर्दा चाहिए या नहीं। इतना जरूर है यदि वे अपने ढंग से जीना चाहे और पुरुष वर्ग पाबंदी लगाए तो शाहबानो प्रकरण की तरह संविधान को उलट पलट नहीं करना चाहिए। यह बेमानी होगी।

जमीन जायदाद के मामले में पहले से ही मुस्लिम महिलाओं की पोजीशन बेहतर रही है क्योंकि उन्हें अपने माता-पिता की सम्पत्ति में हक मिलता है। अब हिन्दू महिलाओं को भी यह हक दे दिया गया है। शादी ब्याह के मामले में दहेज का डंक तो मुस्लिम महिलाओं को उतना नहीं झेलना पड़ता जितना हिन्दू महिलाओं को झेलना पड़ता है लेकिन तलाक के मामले में गैर-बराबरी है। पुरुष तो तीन बार तलाक बोलकर अलग हो सकता है परन्तु महिलाओं को अलग होने का अधिकार नहीं है। या तो तीन तलाक को अमान्य घोषित करना चाहिए अथवा महिलाएं भी जब चाहें तीन बार तलाक कहकर वैधानिक छुटकारा पा लें।

सेकुलर भारत में गैर बराबरी नहीं होनी चाहिए, चाहे जाति, धर्म, प्रान्त या किसी दूसरे आधार की बात हो। वर्ग विशेष की सुविधा के लिए संविधान को छिन्न भिन्न नहीं करना चाहिए अन्यथा जिसके पास ताकत होगी वह अपनी सुविधानुसार संविधान बदलता रहेगा। बदलना हो तो मिल बैठकर एक बार बदल लिया जाए लेकिन संविधान से बढ़कर कोई परम्परा अथवा नियम नहीं होना चाहिए। आशा है प्रधानमंत्री मोदी अपना वादा निभाएंगे।

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