महंगाई की मार से ईंट के भट्ठे हो रहे ठंडे

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महंगाई की मार से ईंट के भट्ठे हो रहे ठंडेgaonconnection

बाराबंकी। आज हर एक इंसान की जरूरत है रोटी, कपड़ा और मकान। रोटी, कपड़ा तो लोग मेहनत मजदूरी करके किसी न किसी तरह कमा लेते हैं, लेकिन मकान बनाने की बात जब आती है तो जिन्दगी भर की गाढ़ी कमाई एक मकान बनवाने में चली जाती है।

जिस दिन मकान की नींव रखी जाती है उसी दिन से ईंट की आवश्यकता पड़ती है और उस एक ईंट की कीमत आज साढ़े सात रुपए हो चुकी है और उस एक ईंट की लागत क्या होती है? आज हम आपकों बता रहे हैं।

जिले में वैसे सैकड़ों ईंट भट्ठे हैं, बहुत से भट्ठे महंगाई की वजह से बंद हो चुके हं  और जो बचे हैं वो भट्ठे बंद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं, क्योंकि अब मिट्टी, मजदूरी, ईधन और भाड़ा भी काफी महंगा हो चुका है। भट्ठा मालिकों की अगर सुनी जाए तो तमाम तरह के सरकारी खर्च देने के बाद भी मौसम की मार झेलनी पड़ रही है। ईंट भट्ठे मालिकों के सामने सबसे बड़ी समस्या मजदूरों की होती है, साथ ही किसान के खेत की मिट्टी भी अब काफी महंगी हो चुकी है।

जिला मुख्यालय से मात्र पांच किमी. दूर रामदास राजकुमारी ईंट भट्ठे पर काम करने वाले मुंशी हनुमान प्रसाद (70 वर्ष) बताते हैं, “मैं कई वर्षों से ईंट भट्ठे पर काम कर रहा हूं। पहले कम लागत लगती थी, इसलिए ईंट की कीमत सही थी, लेकिन महंगाई की मार यहां भी झेलनी पड़ती है, इसलिए ईंट लगातार महंगी होती जा रही है।” वो आगे बताते हैं, “1984-1985 में एक बीघा खेत से मिट्टी निकालने के लिए किसान को चार से पांच हजार रुपए देने पड़ते थे लेकिन आज उसी खेत की मिट्टी के लिए किसान को एक लाख रुपए कच्चा बीघा साढ़े तीन फुट गहरी मिट्टी खोदायी करवाने के लिए दे रहे हैं।” वो कहते हैं,  “उस समय एक हजार रुपए में ढाई हजार अव्वल ईंटें बिकती थीं, आज सिर्फ एक हजार ईंटों की कीमत साढ़े सात हजार तक पहुंच चुकी है और लगातार दाम बढ़ने की सम्भावनाएं बनी रहती हैं।” 

भट्ठा मालिक अनिल कुमार ने बताया, “सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है नहीं तो भट्ठों की हालात की सुधर जाए। सरकारी कानून तो बहुत है पर जो अधिकारी है इनमें सुधार की आवश्यकता है।” उन्होंने बातचीत के दौरान बताया बिहार से ईंट पथाई के लिए काफी संख्या में मजदूर आते हैं। मजदूरों को पैसे भी एडवांस देने पड़ते हैं क्योंकि हमारे यहां के लोग ईंट भट्ठे पर मजदूरी करने से कतराते रहते हैं। वो कहते हैं, “जब बिहार के मजदूर कम पड़ते हैं तो बलिया से भी मजदूरों को लाना पड़ता है।” 

ईंट भट्ठा मालिक कृष्ण कुमार वर्मा बताते हैं, “ईंधन भी बहुत महंगा है कोयला और लकड़ी के भी दाम आसमान छू रहे हैं। कच्ची ईंट की पथाई 180 रुपए से लेकर 200 रुपए एक हजार प्रति है। अगर बारिश हो गयी तो समझो सबसे बड़ा नुकसान क्योंकि पथाई के बाद ईंट की सारी जिम्मेदारी भट्ठा मालिक की हो जाती है। 

कुल मिलाकर पथाई, भरवाई, निकासी से लेकर तमाम तरह के खर्चों को झेलने के बाद ईंट आपके दरवाजे पर पहुंच पाती है। बिहार के नवादा जिले के रहने वाले ईश्वरदीन अपने पूरे परिवार के साथ भट्ठे पर काम करते हैं, लेकिन आजकल वो बेकार बैठे हैं क्योंकि इन दिनों भट्ठे पर काम बंद हो जाता है सिर्फ ईंट की बिक्री ही की जाती है।

रिपोर्टर - सतीश कश्यप

 

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