मिड-डे-मील के भरोसे ज़िन्दा हैं मासूम

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मिड-डे-मील के भरोसे ज़िन्दा हैं मासूमgaoconnection

लखनऊ। सरकार द्वारा चलायी जा रही मिड-डे-मील योजना गुणवत्ता को लेकर हमेशा विवादों में रही है। लेकिन दूसरी ओर यही एमडीएम योजना कई गरीब परिवारों के उन बच्चों के लिए पेट भरने का जरिया है जिनको एक समय का भोजन भी नसीब नहीं होता है। ऐसे ही कई परिवार लखनऊ राज्य मुख्यालय से लगभग 35 किमी. दूर स्थित काकोरी गाँव में देखने को मिले, जिनके परिवार के बच्चों का पेट एक समय एमडीएम के माध्यम से भरता है। 

काकोरी के दसदोई गाँव में स्थित प्राथमिक विद्यालय दसदोई में एक परिवार के 5 बच्चे एमडीएम योजना के तहत वितरित किये जा रहे भोजन का लाभ ले रहे हैं क्योंकि उन बच्चों पर पिता का साया नहीं है और मां घरों में काम करके बमुश्किल जीविका चला रही हैं। कुल 7 बच्चे हैं, जिनमें से दो की शादी हो गयी है और तीन का दाखिला प्राथमिक विद्यालय दसदोई में और दो का दाखिला इसी स्कूल में चलने वाली आंगनबाड़ी में करवा रखा है। 

गाँव में होने वाले नवजात शिशुओं की मालिश का काम करने वाली रामवती (40 वर्ष) बताती हैं, “मेरे पति रामपाल जो गाँव में मजदूरी का काम करते थे उनकी मृत्यु कुछ वर्ष पूर्व हो गयी थी। इसके बाद से घर में दो वक्त का भोजन जुटाना मुश्किल हो गया था। स्कूल में बच्चे पढ़ाई के साथ दोपहर का भर पेट भोजन आसानी से कर लेते हैं और कभी-कभी कुछ घर पर भी ले आते हैं जो शाम को काम आ जाता है। सरकार का बहुत आभार है जो बच्चों को मुफ्त में पढ़ाई के साथ खाना दे रही है।”

प्राथमिक विद्यालय दसदोई में पढ़ाने वाली शिक्षिका तृप्ति (35  वर्ष) बताती हैं, “रामवती का  परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। रामवती के 5 बच्चे इसी स्कूल में हैं जिनको पढ़ाई के साथ दोपहर का भोजन भी आसानी से मिल जाता है तो वहीं जब भोजन बच जाता है तो उनके बच्चे अपने घर ले जाते हैं, जिससे रात के भोजन की व्यवस्था हो जाये। अब पढ़ाई में भी रुचि लेने लगे हैं।” इसी तरह काकोरी के ही एक अन्य गाँव में स्थित प्राथमिक विद्यालय काकोरी दो में पढ़ने वाला बच्चा बताता है, “मेरे पिता की मृत्यु हो गयी है और मां ने दूसरी शादी कर ली है। मैं बहन के पास रहता हूं जिसकी शादी हो चुकी है। स्कूल में दाखिला करवाने से पढ़ाई भी हो जाती है और एक समय का खाना भी मिल जाता है।”

 रिपोर्टर - मीनल 

टिंगल

 

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