मई के तीसरे हफ्ते से बाजारों में मिलेगी दशहरी

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मलिहाबाद-लखनऊ। पछुआ हवाओं के चलने के कारण आम के फल की बढ़वार तेजी से हो रही है और एक महीने में दशहरी आम बाजार में दस्तक दे देगा। देश की प्रमुख मण्डियों के आढ़ती फसल खरीद के लिए पहले से ही पैसे व्यापारियों को पैसे देने मे जुट गये हैं। 

मलीहाबाद की प्रसिद्ध दशहरी को भारत सरकार ने पेटेन्ट किया है, इसका निर्यात विदेशों तक होता है। यहां के करीब 36 हजार हेक्टेयर भू-भाग पर आम के बाग हैं। बदलते मौसम से आम में कीटों व रोगों का प्रकोप 35 प्रतिशत बढ़ गया है लेकिन बची फसल के आम के पेड़ों में बढ़वार को देखकर बागवानों, व्यापारियों व आढ़तियों के चेहरे खिल उठे हैं।

बागवान फहीम उल्ला खां बताते हैं, “सूखी पड़ी नहरों के कारण आम के बागों की सिंचाई नहीं हो पा रही है, जिससे आम के फलों की बढ़वार रूकने के साथ फल मुर्झाकर गिर रहे हैं। लेकिन सरकारी विभाग इसकी अनदेखी कर रहा है।

वहीं व्यापारियों ने भी अपनी तैयारी पहले ही शुरू कर दी है। बागवान रितेन्द्र यादव बताते हैं, “अच्छी फसल देख देश व प्रदेश की प्रमुख मण्डियों दिल्ली, पंजाब, कानपुर, इटावा, गोरखपुर, मलिहाबाद, दुबग्गा, मुम्बई व इलाहाबाद के आम आढ़ती इलाके मे घूमकर  व्यापारियों को बागों की फसल की खरीद के लिए करोड़ों रूपयों पहले ही दे रहे हैं। अब तक लगभग 70 प्रतिशत आम के बागों की फसल को व्यापारियों ने खरीद लिया है। जिसकी देखभाल खरीददारों ने शुरू कर दी है।”

इस समय भी फलों को कीट से बचाने की जरूरत है। इसके बारे में औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र के मुख्य उद्यान विशेषज्ञ डा0 अतुल कुमार सिंह बताते हैं, “इस समय आम के फलों पर बैक्टीरियल कैंकर रोग का प्रकोप हो सकता है, जिसके बचाव के लिए आम उत्पादकों को स्ट्रेप्टोसाइकलीन दवा को कापर आक्सीक्लोराइड के साथ मिलाकर पेड़ों पर छिड़काव करना चाहिए। 

प्रदेश तक भेजने की सरकारी सहायता नहीं

बागवानों व व्यापारियों को ट्रकों व अन्य छोटी गाड़ियों से अपने आम को बिक्री के लिए अन्य प्रदेशों की मण्डियों मे भेजना पड़ता है, जिसमें कई दिन लग जाते हैं। इससे आम की रौनक अत्यधिक कम हो जाती है, जिससे उसका भरपूर मूल्य विक्रेता को नहीं मिल पाता। मलिहाबादी दशहरी आम को पेटेन्ट हुए 3 वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो रहा है। इसका लाभ प्रदेश के अन्य जिलों के बागवान लाभ उठाते हैं क्योंकि दशहरी को मण्डी में भेजने के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था सरकारी स्तर पर नहीं की गयी।        

संरक्षण की तैयारियां शुरु आम को मण्डियों में बिक्री के लिए भेजने हेतु प्लास्टिक के क्रेटों, लकड़ी व गत्ते की पेटियों का इस्तेमाल किया जाता है। लकड़ी की पेटियां बनाने के लिए अवैध रूप से चल रही आरामशीनें फन्टियां काटने मे जुटी हैं। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के निदेशक इंसराम अली बताते हैं,  “सरकार की लापरवाही के कारण फलपट्टी क्षेत्र के बागवानों को आम का सही दाम नहीं मिल पाता। देश की प्रमुख मण्डियों में आम को ले जाने के लिए सरकारी स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि मण्डी शुल्क के नाम पर करोड़ों रूपयों की वसूली व्यापारियों से मण्डी परिषद करता है।” 

रिपोर्टर - सुरेन्द्र कुमार

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