मल्टी लेवल फार्मिंग से किसान बने खुशहाल

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मल्टी लेवल फार्मिंग से किसान बने खुशहालगाँव कनेक्शन

बहराइच। तराई क्षेत्रों के तंगहाली और कर्ज में डूबे हुए किसानों का चेहरा इन दिनों बदला-बदला सा नजर आ रहा है।

दो वक्त की रोटी के लिए जूझने वाला किसान आज अपनी मोटरसाइकिल पर बच्चों को स्कूल छोडऩे जाता है। ऐसा हुआ मल्टी लेवल फार्मिंग की वजह से। किसान परंपरागत विधियों को छोड़कर मल्टी लेवल फार्मिंग को बढ़ावा देकर पांच बिस्वे में 70-80 हजार रुपये हर छमाही में कमा रहे हैं। 

जिला मुख्यालय से 110 किमी दूर पश्चिम दिशा में मिहींपुरवा ब्लॉक है। इस ब्लॉक को तराई क्षेत्र के लिए जाना जाता है। इसी ब्लॉक के कैलाश नगर, सिरसियन पुरवा, बाजपुरवा बनकटी, हजारी पुरवा, जयश्री पुरवा, भवानीपुर, बिछिया, वर्दियां, फकीरपुरी, लोहरा समेत 15-20 गाँवों के करीब छह सौ छोटे किसानों ने पिछले तीन वर्षों से देहात नामक सामाजिक संस्था के सहयोग से मल्टी लेवल फार्मिंग विधि को अपनाया।

कैलाश नगर निवासी द्वारका (45 वर्ष) बताते है, ''तीन साल पहले हमारे पास पांच बिस्वा खेती थी जिससे परिवार चलाना मुश्किल था। मैं और मेरी पत्नी दोनों मजदूरी करते थे। आर्थिक तंगी के चलते बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते थे। बच्चे भी दूसरे के यहां काम करते थे फिर भी घर का खर्च पूरा नहीं पड़ता था लेकिन मल्टी लेवल फार्मिंग विधि को अपनाने से हमारी तरक्की होने लगी। मैंने दूसरों के यहां मजदूरी छोड़ दी। मेरी पत्नी अब घर संभालती है और बच्चे स्कूल पढऩे जाते है।"

''अभी कुछ महीने पहले हमने मोटरसाइकिल ली है और किराए पर 15-16 बीघे जमीन ले रखी है और खेतों में सिंचाई के लिए पानी वाला इंजन भी खरीद लिया है।" वो आगे बताते है।

इसी गाँव के निवासी गोबरे (38 वर्ष) बताते है,  ''पहले हम छोटे किसान कम भूमि और कम संसाधन के चलते बहुत परेशान रहते थे। पूरी तरह से हम कर्ज में डूबे थे। जमीन नाम मात्र की थी। मजदूरी ही एकमात्र जीवन यापन का सहारा था लेकिन इस विधि के प्रयोग में आने से  छोटे किसानों की बहुत तरक्की हुई है।"

दो चरणों में होती है खेती

देहात संस्था के जीतेन्द्र चतुर्वेदी बताते है, इस तरह की विधि में दो चरण होते हैं।

पहला चरण 

पहला ग्राउंड लेवल है। इसमें दो या दो से अधिक फसलों की खेती एक साथ किया जाता है, जिसमें खेतों में सीधी क्यारियां बनाते हैं। बीच में सीजन के हिसाब से मुख्य फसल जैसे आलू, हल्दी, चना, प्याज आदि लगाते हैं और क्यारियों की मेढ़ पर मूली, मिर्च, गाजर, शलगम आदि लगा देते हैं। परंपरागत खेती में बिना क्यारियों के छिटुवा बुवाई की जाती थी जिससे फसलों को खाद, पानी यूरिया आदि बराबर मात्र में नहीं मिल पाता था। इस कारण उत्पादन में अनिश्चितिता पैदा हो जाती थी। वही एक लाइन में फसलों को लगाने से सभी पौधों को बराबर मात्रा में खाद, पानी आदि मिल जाता है। दूसरा जिन फसलों को मेढ़ों पर लगाते हैं वो भी मुख्य फसल की लागत और समय में तैयार हो जाती है जो किसान का अतिरिक्त मुनाफा होता है।

दूसरा चरण

ह्यूमन हाइट लेवल-ग्राउंड लेवल की फसल लगाने के बाद खेत के चारों और बांस के डंडे लगा देते हैं। फिर नायलॉन के जाल से खेत ढककर पांच फीट ऊपर इन बांसों के सहारे बांध देते हैं। इसके बाद इन पर लौकी, खीरा, करेला, कद्दू आदि को बांसों के सहारे चढ़ाकर जाल पर फैला देते हैं। इसके दो फायदे होते हैं, एक तो फल जाल से लटकते रहते हैं जिससे इनमें रोगों से बचाव और देखरेख में आसानी हो जाती है। दूसरी इनके पत्ते ग्राउंड लेवल की फसलों को ठंड और पक्षियों से बचाते हैं।

रिपोर्टर - प्रशांत श्रीवास्तव

 

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