मंदिरों में भी लागू हुआ ड्रेस कोड

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मंदिरों में भी लागू हुआ ड्रेस कोडगाँव कनेक्शन

वाराणसी। यूनिफॉर्म या ड्रेसकोड जैसे नियम अभी तक स्कूल-कॉलेज परिसर में ही लागू हुआ करते थें। लेकिन अब ये नियम स्कूल-कॉलेजों से निकलकर मंदिर परिसर में आ पहुंची है। 

बनारस में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर जहां पर आने वाले विदेशी सैलानियों के बेढंग और आधे तन के कपड़ों के मद्देनजर मंदिर और स्थानीय प्रशासन को ड्रेस कोड जैसा फैसला लेना पड़ा। इस पूरे मामले पर काशी विश्वनाथ मंदिर के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी पीएन द्विवेदी ने बताया, इस व्यवस्था को 27 नवंबर से लागू कर दिया गया है। उन्होनें बताया, मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के विचार और शिकायत आती रहती थी कि विदेशी बेढंगे कपड़ें पहने हुए हैं। इसलिए ऐसा कदम उठाना पड़ा। उन्होनें बताया, विदेशी पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रकार की धोती यानि साड़ी की व्यवस्था की गई है, ताकि घुटने के नीचे शरीर का खुला हिस्सा ढक जाए। इस धोती को बगैर कपड़ा बदले ही विदेशी अपने तन से लपेट सकते हैं। ये धोती मंदिर परिसर में बने काउंटर पर उपलब्ध है।

स्थानीय और भारतीय लोगो पर ड्रेसकोड लागू न होने के सवाल पर पीएन द्विवेदी ने बताया, स्थानीय और भारतीय घुटनों के ऊपर तक चढ़े कपड़ें पहनकर नहीं आते अगर कोई आ भी गया तो उसकी मदद की जायेगी। विदेशियों को जानकारी नहीं होती है इसलिए वो ऐसी गलती करते हैं।

विदेशी सैैलानी ड्रेस कोड से उत्साहित

जानकर हैरानी होगी कि बनारस घूमने आने वाले विदेशी इस नए नियम को सुनकर काफी उत्साहित और खुश दिखें। पोलैंड की श्रोसा कहती हैं, मुझे साड़ी पहनना बिल्कुल स्वीकार है। भारतीय महिलाओं का साड़ी पहनकर मंदिर जाना निश्चित रूप से सम्मान के काबिल है। मै बहुत खुश हूं कि मुझे साड़ी पहनने का मौका मिलेगा। वहीं स्वीडन के डेविड ने बताया, इस ड्रेसकोड से कोई दिक्कत नहीं है। ये सम्मान प्रकट करने का तरीका है। 

आम तौर पर भारत आने वाले विदेशी सैलानी भारतीय संस्कृति में घुलने-मिलने का अवसर तलाशते रहते हैं। ऐसे में काशी विश्वनाथ मंदिर द्वारा लिया गया ड्रेसकोड का फैसला निश्चित रूप से विदेशी सैलानियों के लिए भारतीय परिधान को आजमाने का एक बढिय़ा मौका है। ड्रेसकोड को लेकर विदेशियों में उत्सुकता तो बढ़ी है। आने वाले दिनों में मंदिर पहुचने वाले सैलानियों की संख्या में भी इजाफा हो तो बड़ी बात नहीं होगी।

 

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