मनरेगा मजदूर की काम पर मौत, बिना स्वीकृति चल रहा था काम

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   21 Jan 2016 5:30 AM GMT

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मनरेगा मजदूर की काम पर मौत, बिना स्वीकृति चल रहा था काम

छपरट (ललितपुर)। जनवरी 18 को महरौनी ब्लॉक के छपरट गांव निवासी हरचरन (42 वर्ष) मनरेगा के तहत सड़क के किनारे खुदाई कर रहा था। अचानक चक्कर आ गया और हरचरन की मौत हो गई।

ललितपुर से 34 किलोमीटर दूर महरौनी ब्लॉक के गांव छपरट में जब ये घटना हुई 50 दूसरे मजदूर भी काम कर रहे थे। लेकिन अब न तो हरचरन के परिजनों को कोई आर्थिक मदद मिलेगी और न ही बाकी 50 मजदूरों को उस दिन की मजदूरी। ऐसा इसलिए क्योंकि ग्राम प्रधान ने बिना सरकारी स्वीकृति के यह काम शुरू कराया। ग्राम प्रधान, पंचायत सचिव और संबंधित अधिकारियों ने इस काम को श्रमदान बता दिया।

हादसे के दौरान हरचरन की पत्नी पार्वती (40 वर्ष) भी यहीं काम कर रही थीं, वो बिलखती रह गईं लेकिन न किसी अधिकारी ने सुध ली, न कोई सरकारी मदद मिली। आंखों से आंसू पोछते हुए पार्वती बताती हैं, “मेरे एक लड़की (17 वर्ष) और दो बेटे (14 वर्ष और 13 वर्ष) हैं। सूखे से खेत में कुछ बचा नहीं तो पति-पत्नी दोनों मज़दूरी कर रहे थे। लेकिन अब वो (पति) भी नहीं नहीं रहे। कोई अधिकारी देखने नहीं आया। समझ में नहीं आ रहा कैसे गुज़ारा होगा।”

दरअसल पंचायतें मनरेगा नियमों के विरुद्ध कार्य कराती हैं। कई बार बिना मस्टर रोल जारी (सरकारी स्वीकृति) किये काम शुरू करा देती हैं, कार्यरत मजदूरों की ‘वर्क आईडी’ जारी नहीं हो पाती है। ऐसे में अगर कोई हादसा हो जाता है तो मनरेगा के तहत स्वीकृत न होने पर पीड़ित को मदद नहीं मिल पाती और विवाद से बचने के लिए प्रधान और संबंधित अधिकारी इसे श्रमदान की श्रेणी में डाल देते हैं।

इस बारे में बात करने पर छपरट ग्राम पंचायत के प्रधान मोहन सहरिया ने बताया, “हमें नियम की कोई जानकारी नहीं है। लोगों ने काम मांगा तो हमने मुनादी करवाकर काम शुरू करवा दिए।”

उपायुक्त श्रम, नरेन्द्र देव द्विवेदी तो सीधे ही बोलते हैं, “कार्य की वर्क आईडी जारी ना होने कि वजह से इनको मनरेगा का लाभ नहीं मिल सकता।”

इस संबंध में गॉव कनेक्शन संवाददाता ने कई ग्राम पंचायतों में पता किया तो सामने आया कि पंचायतों में अधिकतर कामों में मजदूरों को गुमराह किया जाता है। 

ऐसी ही अनियमितता का शिकार हो चुके छायन ग्राम जगजीवन राम (27 वर्ष) बताते हैं, "कुछ साल पहले हमारे चाचा के खेत पर बंदी निर्माण में 60 मजदूरों ने 12 दिन काम किया था, जब मजदूरों ने मजदूरी माँगने के लिए लिखित शिकायतें कि तो पता चला कि कार्य का स्टीमेट नहीं बना था, इसलिए पैसा नहीं मिल सकता।”

मामले की होगी जाँच

अगर मजदूर के पास जॉब कार्ड है, तो वही उसकी सबसे बड़ा आईकार्ड है। अगर कार्य के दौरान मौत होती है। तो मृतक के परिजनों को सरकारी मदद मिलनी चाहिए। डीएम और सीडीओ के स्तर पर मुआवजे के राशि तय की जाती है। इस मामले में कोई मदद क्यों नहीं मिली मैं इसकी जांच कराउंगी

- प्रतिभा सिंह, डिप्टी कमिश्नर, मनरेगा

 

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