मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री ने अनेकों का भ्रम तोड़ा

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मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री ने अनेकों का भ्रम तोड़ाgaonconnection

प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से आज भी लोग स्नेह और उनका सम्मान करते हैं लेकिन यह आभास कि प्रदेश में साढ़े तीन मुख्यमंत्री हैं, शुभचिन्तकों को पीड़ा दे रहा था। लगने लगा था कि जो व्यक्ति डीपी यादव को टिकट देने के मामले में इतना स्पष्ट और मुखर था, वही अब अनिश्चय और अनिर्णय के भंवरजाल में कैसे फंस रहा है। क़ौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय को निरस्त कराकर और यह कहकर कि मुख्तार अंसारी जैसों की समाजवादी पार्टी में कोई जगह नहीं है, साबित कर दिया है कि प्रदेश में एक ही मुख्यमंत्री है साढ़े तीन नहीं।

लोगों को एक और भ्रम होने लगा था कि उत्तर प्रदेश में यादव होना ही सबसे बड़ी योग्यता और सर्टिफिकेट है। यह भ्रम भी टूटना आरम्भ हुआ है। अभी तक प्रदेश के थानाध्यक्षों और कार्यालय प्रमुखों की जाति के आंकड़े इस भ्रम को मजबूत करते थे लेकिन पहले डीपी यादव, फिर यादव सिंह, रामवृक्ष सिंह, बलराम यादव के प्रकरणों से यह संकेत मिलता है कि अखिलेश यादव की परख इतनी कच्ची नहीं है कि वह आधुनिक शिक्षा पाकर भी जाति जंजाल से बाहर न निकल सकें। हमारे देश और प्रदेश की जनता स्पष्ट, कठोर और त्वरित निर्णय पसन्द करती है फिर चाहे इन्दिरा गांधी रही हों या अब नरेन्द्र मोदी। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विषय में धारणा बनी थी कि वह कठोर फैसले कर सकते हैं बशर्ते उन फैसलों का सम्बन्ध संघ परिवार से न हो। जब सुब्रह्मणयम स्वामी को सांसद बनाया तो धारणा सही साबित होती दिखी। जगजाहिर है कि स्वामी ने बहुतों की नाव डुबोई है और वह कल्पना भी नहीं कर रहे होंगे विश्व हिन्दू परिषद का एजेंडा आगे बढ़ाने के बावजूद उन्हें मोदी झिड़क देंगे। जब अरुण जेटली ने खुलकर रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का पक्ष लिया और स्वामी की आलोचनाओं को नजरअंदाज किया तो स्वामी को दीवार पर लिखी इबारत पढ़ लेनी चाहिए थी। मोदी ने यह काम अपने अंदाज़ में कराया था लेकिन स्वामी नहीं समझे तो मोदी ने मुखर होकर कहा] जितना स्पष्ट शायद पहली बार कहा होगा। इसके पहले बड़बोले हिन्दू नेताओं को उन्होंने अपने ढंग से शान्त किया था लेकिन सार्वजनिक रूप से कभी कुछ नहीं कहा जितना मुखर सन्देश कि सिस्टम से बड़ा कोई नहीं है। 

हो सकता है नरेन्द्र मोदी संघ और संघ परिवार का प्रत्यक्ष विरोध न कर पाएं लेकिन यदि संघ की बैसाखी लेकर कोई अपनी रोटियां सेंकेगा तो बर्दाश्त नहीं करेंगे, इतना तो साफ़ हो गया है। स्वामी ने शायद सोचा होगा कि जिस तरह चौधरी चरण सिंह, चन्द्रशेखर, वीपी सिंह और यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें पहचान नहीं पाए थे, मोदी भी नहीं पहचान पाएंगे। मोदी ने लक्ष्मण रेखा पर नज़र रखी और शायद अब स्वामी का भ्रम टूट गया होगा। 

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विषय में कानून व्यवस्था को लेकर शिकायतें जरूर हैं। अनेक स्थानों पर उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कानून तोड़ा और पुलिस तक को पीटा इसलिए लम्बी राजनीति करने के लिए जाति, परिवार और पार्टी से बाहर मुख्यमंत्री का अपना व्यक्तित्व उभर कर सामने आना चाहिए। किसी को उनकी योग्यता, क्षमता पर सन्देह नहीं है लेकिन थोड़ा साहस जुटाने की आवश्यकता है। यदि इसी प्रकार सभी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री निष्पक्ष होकर फ़ैसले लेना आरम्भ कर दें तो शायद राजनेताओं का खोया हुआ सम्मान वापस आ जाए और उनकी विश्वसनीयता बढ़ जाए। यही उम्मीदों की उम्मीद है।  

 

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