मुनाफे के लिए तरबूज़ों पर शराब और रसायनों का इस्तेमाल

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मुनाफे के लिए तरबूज़ों पर शराब और  रसायनों का इस्तेमालगाँव कनेक्शन

मेरठ। गर्मियों में खुद को तरोताजा और सेहतमंद रखने के लिए आप जो तरबूज और खरबूजे खाते हैं, उन्हें शराब पिलाई जा रही है। इसके साथ ही तरबूज को मीठा करने के लिए उन पर सकरीन रसायन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक सकरीन मिले पद्धार्थों के लगातार सेवन से मुंह के कैंसर समेत कई रोग हो सकते हैं। 

मेरठ जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर पूरब दिशा में मुख्य गढ़ रोड से सटे गाँव मेदपुर के किसान राजपाल सिंह (42 वर्ष) अपनी तरबूज और खीरे की फसल पर देशी शराब का छिड़काव करते हैं। वजह पूछने पर वो तर्क देते हैं, “बीस लीटर पानी में एक बोतल (एक लीटर) देशी शराब मिलाकर फल और सब्जियों पर छिड़काव करने से कीड़े नहीं लगते और फल जल्दी बड़े भी हो जाते हैं। पहले रोजाना चार टोकरे तरबूज निकलते थे, अब 10-12 टोकरे निकल रहे हैं”।

राजपाल आगे बताते हैं, “देशी शराब दो तरह से काम करती है, एक तो उसकी गर्म तासीर से फल जल्दी पकते हैं, दूसरी उसकी गंध से कीड़े-पतंगे पास नहीं आते। वैसे भी रासायनिक दवाएं काफी महंगी आती हैं और फिर ये तो हमारा देशी नुस्खा है। हमें तो इसमें कुछ गलत नहीं लगता।” राजपाल के खेतों के तरबूज मेरठ समेत दिल्ली की मंडियों तक भी पहुंचते हैं। 

एक तरफ किसान खेतों में शराब का छिड़काव कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर फल विक्रेता ऊंचे भाव पर अपने फल बेचने के लिए सकरीन जैसे रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं। 

मेरठ के पॉश इलाके में पानी में तरबूज भिगोते तरबूज विक्रेता पप्पन सिंह ने काफी पड़ताल के बाद गाँव कनेक्शन को बताया, “सकरीन मिले पानी का दिन में कई बार तरबूज के ढेर पर छिड़काव करते हैं और कुछ तरबूजों को सकरीन के पानी में डुबो कर रख देते हैं। सुबह तक सामान्य तरबूज भी खूब मीठा निकलता है।” 

फलों के एक और फुटकर विक्रेता इलियास (36 वर्ष) ने बातों ही बातों में बताया, “लगातार छिड़काव करने और भिगोने से तरबूज, खरबूजा सकरीन मिला पानी सोख लेते हैं, इससे उनका वजन बढ़ता है, साथ में मिठास भी बढ़ जाती है।” 

शराब के छिड़काव और सकरीन को लेकर उद्यान विभाग से लेकर प्रशासन तक सब अवगत हैं लेकिन कार्रवाई नहीं होती। जिला खाद्य निरिक्षक संदीप चौधरी बताते हैं, “फलों पर रसायनों और शराब के छिड़काव की शिकायत मिली है कई बार लेकिन हम लोग फल का सैंपल नहीं ले पाते हैं, अगर लें भी लें तो उसे भेजेंगे कहां?”

रिपोर्टर - सुनील तनेजा 

 

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