महिलाओं ने जाना कैसे उठा सकती हैं घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज

आली और एफपीएआई द्वारा महिला हिंसा के विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय 16 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया...

Deepanshu MishraDeepanshu Mishra   10 Dec 2018 11:41 AM GMT

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महिलाओं ने जाना कैसे उठा सकती हैं घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज

लखनऊ/रांची। एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिवस (आली) और फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (एफपीएआई.) द्वारा महिला हिंसा के विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय 16 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। इस आयोजन में महिलाओं के साथ होने वाली विभिन्न प्रकार की हिंसा के खिलाफ आवाज उठाना है।

अभियान के अंतर्गत आली और (एफ.पी.ए.आई.)द्वारा महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में स्वास्थ्य प्रणाली और डॉक्टर की भूमिका पर लखनऊ में कार्यरत निजी चिकित्सकों के साथ कार्यशाला का आयोजन होटल लिनिएज मे किया गया, जिसमें लखनऊ के लगभग 50 निजी चिकित्सकों की भागीदारी थी।

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कार्यशाला मे मानवाधिकार कार्यकत्री, अधिवक्ता और आली की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा ने क़ानून व नीतियों के अंतर्गत स्वास्थ्य प्रणाली की भूमिका के तकनीकी पहलुओं को निजी चिकित्सकों के साथ साझा किया। इस कार्यशाला में रेनू मिश्रा ने कहा, "एनसीआरबी-2016 में भारत में यौन हिंसा के मामलों में न्यायालय 28% औसत दोषी सिद्ध का रेट है। यौन हिंसा के मामलो में न्यायालय में मेडिकल साक्ष्य एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के तौर पर माना गया है, जिसका सीधा असर दोष सिद्ध रेट से भी है। वर्ष 2013 में धारा 166बी भारतीय दण्ड संहिता में जोड़ा गया। इस कानून में सरकारी व निजी डॉक्टरों की भूमिका तय की गयी है, जिसमे साफ़ तौर पर यह लिखा गया है कि यदि कोई डॉक्टर किसी यौन हिंसा से पीड़ित महिला का इलाज करने से इंकार करते है तो उनके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज कर सकती है लेकिन आज भी सरकारी और गैर सरकारी डॉक्टर इस जानकारी से अनभिग्य है।"

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आली संस्था की केस वर्क यूनिट प्रभारी अपूर्वा श्रीवास्तव ने कहा, "संस्था द्वारा वर्ष 2016 में विभाग के साथ क्षमता वर्धन पहल में उत्तर प्रदेश के लगभग 50 जिलों के सरकारी डाक्टरों के साथ दो-दिवसीय जेंडर संवेदीकरण ज़ोनल कार्यशाला में भाग लिया था, जिसमे उनके साथ घरेलू हिंसा व् यौन हिंसा के अलग अलग पहलू और उनकी भूमिका पर चर्चा की गयी थी।

कार्यशाला में आए निजी डाक्टरों द्वारा अनुभवों के सांझा करने के दौरान यह निकल कर आया कि यौन हिंसा के मामलो और कृत्यों का दायरा बहुत व्यापक है तथा उनके पहल करने से कई महिलाओं को उनके अधिकार प्राप्त हो सकते है और उनका सही इलाज हो सकता है। यौन हिंसा व घरेलू हिंसा कानूनों में निजी चिकित्सक की भूमिका से जुडी भ्रांतियों पर भी चर्चा हुई जिससे वे ऐसे मामलो में सक्रिय रूप से राहत प्रदान कर सकें।

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क्या है आली

एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव्स (आली) एक नारीवादी कानूनी पैरोकारी एंव संदर्भ केन्द्र है। जो वर्ष 1998 से महिला मानवाधिकारो की स्थापना के लिए तकनीकी समर्थन एवं कानूनी सन्दर्भ केन्द्र के रूप में अधिकार आधारित समझ एवं नारीवादी परिपेक्ष्य के साथ कार्य करती रही है। आली अपनी स्थापना के समय से ही महिलाओं तथा बच्चों के साथ होने वाली हिंसा के खिलाफ उत्तर प्रदेश, झारखण्ड व अन्य राज्यो में साथी संस्थाओं के सहयोग से काम करती आ रही है तथा उनसे सम्बन्धित कानूनो के प्रति जागरूकता और कानून के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सक्रिय प्रयास करती रही है।

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एफ.पी.ए.आई.

वर्ष 1949 में स्थापित, फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफ.पी.ए.आई. जिसे अब एफपीए इंडिया कहा जाता है) देश का सबसे बड़ा स्वैच्छिक परिवार नियोजन संगठन है। एफपीएआई ने परिवार नियोजन, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य, लिंग आधारित हिंसा, महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने, किशोरों की विशिष्ट जरूरतों, पुरुषों और समूहों को वंचित और वंचित क्षेत्रों में बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाई है। एफपीए इंडिया, लखनऊ शाखा वर्ष 1965 में स्थापित हुई है।

रांची में हुई मीडिया वर्कशॉप

आली संस्था के लखनऊ कार्यालय की शुभांगी सिंह एवं झारखण्ड कार्यालय की रेशमा सिंह इस कार्यशाला में मीडिया के द्वारा लिखी एवं दिखाई जाने वाली ख़बरों के ऊपर चर्चा की, जिसमे उन्होंने अपना विचार रखते हुए कहा की प्रारम्भ से ही हमारे समाज में मीडिया में आने वाले खबरों का बहुत प्रभाव रहा है। समाज में आने वाले बदलाव में मीडिया की अहम् भूमिका रही है इसलिए मीडिया को संवेदनशील होना बहुत जरुरी है, ताकि समाज पर इसका सकारात्मक बदलाव हो सके। खास कर जहाँ महिलाओं को दोयम दर्जे का समाज व समुदाय में स्थान प्राप्त है वहां यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि महिलाओं से जुड़े मुद्दे को स्वेदंशीलता के साथ प्रदर्शित किया जाये।


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आली की शुभांगी ने कहा, "एक तरफ जहाँ महिलाओं और बच्चो के साथ बलात्कार और यौन हिंसा की घटनाओ की संख्या बढ़ रही है, दूसरी तरफ इन घटनाओं का असंवेदनशील रिपोर्टिंग पीड़ित व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही ‌#metoo के मुहीम के बारे में भी चर्चा हुई।"

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