कहीं गर्भपात की दवाओं से आप जान जोखिम में तो नहीं डाल रहीं

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   1 Sep 2017 5:13 PM GMT

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कहीं गर्भपात की दवाओं से आप जान जोखिम में तो नहीं डाल रहींगर्भपात की दवाएं जान के लिए बन सकती हैं खतरा।

लखनऊ। गर्भपात कराना कानूनी अपराध है ऐसा आपको हर क्लीनिक और अस्पताल पर लिखा मिल जाएगा लेकिन अगर ये घर पर ही होने लगे तो अपराध के साथ साथ जान भी खतरे में आ सकती है। कई बार महिलाएं बिना डॉक्टरी सलाह के दवाएं लेकर घर पर ही अनचाहे गर्भ को गिरा देती हैं, जिसके कई बार साइड इफेक्ट भी होते हैं यहां तक की उनकी जान भी जा सकती है।

दिल्ली के लक्ष्मीनगर की रहने वाली साक्षी गौतम (32) वर्ष बताती हैं, “शादी के बाद मैं तुरंत बच्चा नहीं चाहती थी, तो मेरी एक सहेली ने मुझे सलाह दी कि ऐसी दवाएं आती हैं जिनसे मैं आसानी से घर पर ही एर्बोशन कर सकती हूं।” साक्षी बताती हैं कि उन्होंने गूगल पर देखकर मेडिकल स्टोर से दवा ले ली और मेडिकल स्टोर वाले ने भी किसी तरह के डॉक्टर का पर्चा वगैरह नहीं मांगा बस 700 रुपए की एक किट दे दी थी।

साक्षी बताती हैं, “दवा का इस्तेमाल करने के बाद मैं बहुत कमजोर हो गई, लगातार कई दिनों तक ब्लीडिंग होती रही और अब जब हम दोबारा बच्चा चाहते हैं तो 4 साल बाद भी मैं दोबारा प्रेगनेंट नहीं हो पा रही हूं इसके लिए ट्रीटमेंट भी चल रहा है।”

16 मई 2016 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे आंकड़े के मुताबिक, साल 2015-16 में भारत में 34,790 महिलाओं ने गर्भपात कराया, जबकि साल 2014-2015 में गर्भपात के 13 प्रतशित कम यानि 30,742 मामले सामने आए थे। इनमें बड़ी संख्या उनकी होती है, जो इंटरनेट आदि से पढ़कर खुद दवाएं लेती हैं, यानि गूगल वाली दाई का दुरुपयोग नुकसान दे रहा है।

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कानूनन इस किट का इस्तेमाल दो महीने सात दिन की गर्भावस्था तक ही किया जा सकता है। बिना जांच किए अगर अधिक अवधि के गर्भ में यह दवा दे दी जाए तो जान का भी खतरा हो सकता है। ये दवाइयां अस्पताल या ऐसी जगह पर ही ली जा सकती हैं जहां खून चढ़ाने की भी व्यवस्था हो क्योंकि इन दवाओं के इस्तेमाल से मरीज को खतरा बढ़ जाता है।

गर्भपात किट का इस्तेमाल करने से महिलाओं को साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। इसके बारे में आगरा के स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ शिवानी चतुर्वेदी बताती हैं, “ये पिल्स सिर्फ 50 दिन के अंदर तक ली जानी चाहिए लेकिन लोग बिना जानकारी के इसे तीन महीने चार महीने तक ले लेते हैं जिससे ब्लीडिंग बहुत ज्यादा होने लगती हैं, इंफेक्शन हो जाता है और कई बार सफाई के लिए ऑपरेशन तक की नौबत आ जाती है। दोबारा प्रेगनेंसी भी मुश्किल हो जाती है।”

जब डॉक्टर इस तरह के केस देखती हैं तो दो बार एल्ट्रासांउड होता है उसके बाद ये सलाह दी जाती है लेकिन मेडिकल स्टोर पर तो बिना कुछ पूछे जांचें दवा दे देते हैं वो भी रेट बढ़ाकर। अन्य राज्यों में इसे बैन कर दिया गया है यूपी में भी ऐसा कर देना चाहिए।”
डॉ शिवानी चतुर्वेदी, स्त्री रोग विशेषज्ञ, आगरा

अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए प्रतिवर्ष गर्भपात कराने वाली 1.50 करोड़ महिलाओं में से करीब 13 प्रतिशत यानी 20 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। यह जानकारी इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट 'दि गुटमाकर' और 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पापुलेशन साइंसेज' ने सरकार को सौंपी एक रिपोर्ट में दी है।

बिना डॉक्टरी सलाह इन्हें लेना पड़ सकता है भारी।

लखनऊ की विकास नगर की रहने वाली अर्चना पांडेय (28वर्ष) बताती हैं, “मैं दूसरा बच्चा देर से चाहती थी इसलिए दवा का इस्तेमाल किया था। पति के एक दोस्त हैं जिनका मेडिकल स्टोर है उन्होंने ही दी थी दवा। दवा का इस्तेमाल करने के कई दिन तक चक्कर आना, कमजोरी बनी रही।ׂ” वो आगे बताती हैं, “दिक्कत जब ज्यादा बढ़ी तो मैनें डॉक्टर को दिखाया उन्हें पूरी बात बताई उसके बाद इलाज से मैं पूरी तरह सेहतमंद हो पाई।”

गर्भपात कराने वाली ये दवाएं हर मेडिकल स्टोर पर आसानी से मिल जाती हैं और इनका इस्तेमाल पढ़ी लिखी शहरों में रहने वाली महिलाएं ज्यादा कर रही हैं, जबकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के अनुसार डॉक्टर द्वारा दिए गए पर्चे पर ही यह दवा बेची जा सकती है। वहीं दवा विक्रेता को दवाइयां बेचने से पहले पर्चे की फोटो कापी, बिल का रिकार्ड रखना अनिवार्य है।

मेडिकल स्टोर पर इन दवाओं के लिए क्या मानक तय हैं इसके बारे में लखनऊ के मुख्यचिकित्सा अधिकारी डॉ जीएस बाजपेई बताते हैं, “बिना डॉक्टर के पर्चे के ये दवाएं देना मना है। दिल्ली में ये दवाएं इतनी आसानी से नहीं मिलती। लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी इस पर बहुत सुधार की जरूरत है। दिल्ली में ये दवाएं इतनी आयानी से नहीं मिलती।”

गर्भनिरोधक दवाओं के इस्तेमाल में गिरावट लेकिन गर्भपात में बढ़ोत्तरी

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले आठ वर्षों में गर्भनिरोधक के इस्तेमाल में 52 फीसदी और पुरुष नसबंदी में 73 फीसदी की गिरावट हुई है। ये आंकड़े निश्चित रूप से पुरुषों द्वारा गर्भ निरोधक इस्तेमाल करने की अनिच्छा का संकेत देते हैं। 2008 और 2016 के बीच ओरल गर्भनिरोधक गोलियों के इस्तेमाल में 35 फीसदी की गिरावट हुई है। जबकि गर्भपात और इमरजेंसी गोलियों की खपत दोगुनी हुई है।

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