बच्चों के आश्रय गृह या जेल?

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बच्चों के आश्रय गृह या जेल?gaonconnection

लखनऊ। मंगलवार को राजकीय बालिका गृह में एक 21 वर्ष की लड़की के गर्भवती होने की खबर सामने आई तो पूरा प्रशासन हिल गया। बालिका गृह की अधीक्षिका रुपिंदर कौर के तत्काल निलंबन का आदेश भी दे दिया गया। लेकिन इस आश्रय गृह के एक अन्य पहलू पर किसी की नज़र नहीं गई।

उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में स्थित इन राजकीय बालिका गृहों में रहने वाली हज़ारों बच्चियां किसी जेल जैसे माहौल में रहती हैं, जिसका इनके मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ता है।

इन आश्रय गृहों में लड़कियों को मुफ्त में पढ़ाया जा रहा है, मुफ्त में खाना भी दिया जा रहा है, लेकिन न तो बाहर जाने की अनुमति, न किसी से मिलने की। आश्रय गृहों द्वारा भी इनके विकास के लिए खेल-कूद या सैर जैसा कोई प्रबंध नहीं। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे माहौल में रहने से बच्चे बाहरी दुनिया से कटने लगते हैं। 

लखनऊ के मोती नगर स्थित राजकीय बालिका आश्रय गृह का ही उदाहरण लें तो दस फुट ऊंचे गेट और 15 फुट उंची दीवारों से घिरी यहां की 72 लड़कियों की जिंदगी में किसी भी तरह की सामाजिक भागीदारी नहीं है। 

लखनऊ के आश्रयगृह की अधीक्षिका रुपिंदर कौर (निलंबन कार्यवाही चल रही है) बताती हैं, “इस आवास में किसी भी लड़की को किसी से मिलने की इजाज़त नहीं है”।

स्कूल या कॉलेज जाने के अलावा उन्हें कहीं बाहर नहीं निकलने दिया जाता, और जब भी कोई लड़की स्कूल या कॉलेज जाती है तो उसके साथ एक गार्ड ज़रूर होता है”। रुपिंदर कौर आगे बताती हैं कि अगर यहां किसी लड़की को किसी सामान की भी ज़रुरत होती है तो वो गार्ड को लिख के दे देती हैं, वही ला के देते है।

लड़कियों को आवास और सुरक्षा प्रदान करने के नाम पर कैद जैसा माहौल उनके मानसिक विकास में बाधक है। लखनऊ की मनोचिकित्सक शाज़िया सिद्दकी के अनुसार इस तरह का माहौल लड़कियों के लिए एक तरह का मानसिक उत्पीड़न है। 

शाजि़या बताती हैं, “इस माहौल में रह रहे बच्चों का दिमागी स्तर सामान्य बच्चों से भी कम पाया जाता है। समाज़ से इनका कोई सम्बन्ध नहीं होता इसलिए इनमे सही और गलत की ज़्यादा समझ भी नहीं होती”। उन्होंने कहा कि इन आश्रय गृहों में बच्चों को जेल जैसे माहौल में रखा जाता है। हर एक बच्चा प्यार और अपनापन चाहता है, जो उसे इन जगहों से नहीं मिलता। ऐसे में वो इंसान वहीं प्यार और अपनापन बहार ढूंढता है। इस तरह के माहौल में रह रहा बच्चा बस वहां से भागने के बारे में ही सोचता रहता है।

मंगलवार देर शाम बाल गृह की जांच करने पहुचे महिला कल्याण विभाग के निदेशक ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी के अनुसार विभाग द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से नियम सख्त बनाए गए हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “ऐसा माहौल उनकी सुरक्षा के लिए दिया जाता है ताकि कुछ गलत न हो सके”। 

बच्चों के मानसिक विकास के लखनऊ के इस आश्रय गृह में सिर्फ एक कंप्यूटर टीचर रखी गई हैं जो कभी-कभार ही आती हैं।

ये माहौल न सिर्फ इन हज़ारों बच्चों को कूप-मंडूक बना रहा है बल्कि उनके मूलभूत अधिकारों के भी खिलाफ है। चाइल्ड वेलफेयर के लिए सरकारों के साथ देशभर में कार्य कर रही संस्था ‘चाइल्ड लाइन’ की बाराबंकी शाखा की प्रमुख नाहिद अकील बताती हैं, “किसी भी कानून में ये नहीं लिखा है कि बच्चों की सुरक्षा के नाम पर आप उन्हें कैद में रखोगे। किसी भी बच्चे का ये अधिकार है कि उसे एक सामान्य बच्चे की तरह ही जीवन जीने दिया जाये, जो कि इन आश्रय गृहों में नहीं हो रहा।”

नाहिद बताती हैं, “जब हम ऐसे किसी बच्चे से मिलने जाते हैं जिसे हमने ही यहां कहीं से बचाकर दिया था, तो उससे भी हम लोगों को बड़ी मुश्किल से मिलने दिया जाता है।”

आश्रय गृहों के साथ अपने एक पुराने अनुभव को साझा करते हुए नाहिद बताती हैं कि एक बार सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिए गए एक छह साल के मूक बच्चे को हमने बाल आश्रय में दिया था। एक महीने बाद जब हम उस बच्चे से दोबारा मिलने आये तो पहले तो उस बच्चे से मिलने नहीं दिया गया, बहुत हंगामे और आला अधिकारीयों से सहायता लेने के बाद जब उस बच्चे से हम मिल पाए तो हमने पाया कि उसका हाथ टूटा है, और वो बहुत डरा हुआ भी था। अगर वो बच्चा बोल सकता होता तो शायद अपनी-अपनी आप बीती बता पाता।

कंपनी ने हर गाँव में अनाज संग्रहण केंद्र बनाया है। कंपनी की सदस्य महिलाएं अपने गेहूं की तौल करवाकर यहां जमा करवा देती हैं। कंपनी फिर ऑनलाइन सौदे करती है। अनाज बिक्री के बाद कंपनी की बोर्ड बैठक होती है। इसमें कंपनी के खर्च निकाल पूरी राशि अनाज के अनुपात में किसानों को बांट दी जाती है।

 

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